सोमवार, मई 02, 2016

जो आदमी को, इनसान बना सके...

एक धर्म था
वैदिक धर्म
एक जाती थी
मानव जाती,
एक भाषा थी
जिस में वेद रचे,
एक शिक्षा थी,
वैदिक शिक्षा,
एक लोक था
भूलोक....
नाम के लिये,
आज धर्म कई हैं,
जातियों की तो
गिनती नहीं हैं,
हर भाग की
अपनी भाषाएं हैं,
शिक्षा का कोई
अब आधार नहीं है,
धरा बंट चुकी है
कई भागों में...
जब से बंटा है
ये सब कुछ,
बंटा है तब से 
 मानव भी  कई भागों में।
न अमन है कहीं,
न सुखी है कोई।
न वेदों का ज्ञाता है कोई,
जो पथ दिखा सके।
वो धर्म ही  खंडित हुआ है,
जो आदमी को, इनसान बना सके...




मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

ये जाति वंश का भेद

मैं करण हूं
मुझे याद है
अपनी भूलों पर
मिले हर श्राप
पर मैं मुक्त हो चुका था
हर श्राप  से।
मैंने तो बस
सब कुछ लुटाया ही था
किसी से कुछ नहीं मांगा,
अपनी मां से भी नहीं।
हे कृष्ण
तुम साक्षी हो....
मैं नहीं जानता
ये वंश  भेद का
श्राप  मुझे किसने दिया
न मैं ये जानता हूं,
ये श्राप  मुझे क्यों मिला
न निवारण ही जानता हूं।
ये श्राप मुझे
मेरे हर जन्म में
मेरी योग्यता पर
प्रश्न चिन्ह लगाता है।
कल सूत पुत्र था
और आज क्षत्रीय....
कल रंगभूमि  में
भी  मेरा वंश पूछा गया था
आज हर साक्षातकार में
मेरी जाति   देखी जाती है।
सब जानते थे
सर्वश्रेष्ट धनुर धारी हूं मैं
आज भी मेरे पास
अनुभव,  नंबर अधिक है  सब से।
मैं कल भी छला गया था
और आज भी।
ये  जाति वंश का भेद
बाधक है प्रगती में
मारता है योग्यता को  
बांटता है राष्ट्र   को....


  


शुक्रवार, अप्रैल 08, 2016

ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।


हुआ नव वर्ष का  आगमन,
कह रहा प्रकृति का कण कण 
न जरूरत किसी  केलेंडर की
न हो पास पंचांग  भी,
प्रकृति और आकाश  को देखो,
ये सब  खुद बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
दिवाली,  दशहरा,  होली,
 विवाह  शुभ मुहूर्त, यज्ञ,  कथा,
 सभी  महापुरुषों के  जन्म दिवस,
हिंदू  संवत के अनुसार मनाते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
उदय हुआ था प्रथम सूरज जब,
उस दिन को क्यों भूल जाते हैं।
क्यों भारत में  हम नव वर्ष,
पोष  माह में मनाते हैं,
नहीं दिखती कहीं  नवीनता ह
उपवन खेत बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
मैकाले की शिक्षा याद रही,
वेद-पूराण हम  भूल गये,
बस इंडिया ही याद रहा,
भारत को हम भूल गये।
आया है हमारा नव वर्ष,
चैत्र नवरात्र बताते हैं।
 हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
 आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..

 

बुधवार, अप्रैल 06, 2016

आवशयक्ता है जीवन की।

बीते कल ने
अनुभव दिये,
उन अनुभवों से
आज कर्म किये,
अब कल के लिये
कई ख्वाब सजाए,
मन में हैं
कई आशाएं।
आशाएं हैं
जब तक मन में
तब तक मानव
 सुखी है।
जब निर्ाशा
बस गयी मन में,
समझो   मानव
अब  दुखी है।
खुशी और गम
अवस्था है मन की,
ये दोनों ही
आवशयक्ता है जीवन की।


शुक्रवार, मार्च 11, 2016

जरूरत है...

भारत को आज फिर से
श्री राम की जरूरत है,
अर्जुन धर्म संकट में है,
श्री गीता की जरूरत है।
उठ रही है फिर आवाजें
भारत को खंडित करने की,
अखंड भारत कह रहा है,
सरदार पटेल की जरूरत है,
  देश की रक्षक  सैना आज भी
निर्भय खड़ी है सरहदों पर,
मां भारती से कह रहे हैं,
नेता सुभाष    की  जरूरत है।
भारत मां की जय कहने में
लाज आती है जिन को आज,
उनको समझाने की खातिर,
विवेकानंद की जरूरत है।
बताओ उनहें सिख गुरुों ने,
कैसे-कैसे कुर्वानी की,
आजाती के शहीदों की,
 कथा सुनाने की जरूरत है।
 

शुक्रवार, मार्च 04, 2016

राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।

kकभी राष्ट्र गीत का विरोध,
कभी गायत्रि मंत्र का
कभी पाकिस्तानी झंडा लहराना
 कभी राष्ट्र विरोधी नारे।
तब कहते सुना है सब को,
ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
  वंदे मातरम,   भारत माता की जय।
 नारे लगाने वालों को
राष्ट्रप्रेम की बात करने वालों को
सामप्रदाइक कहा जाता है।
देश के नेता सत्ता के लिये
कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं।
मां भारती को गाली भी दे सकते हैं,
मां के लिये गाली भी सुन सकते हैं।
 मैं सोचता हूं,
अच्छे थे गुलामी के दिन
क्योंकि उस समय भारतीयों का
राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।

नया शड़यंत्र रचा रही।

अफज़ल गुरु,  मक़बूल भट
को शहीद कहना,  आजादी हो गयी,
जिन्हे दिया दंड कानून ने
उनकी फांसी भी,  शहादत हो गयी।
जो शहीद हुए देश पर
उनकी याद तक नहीं,
जो दहशत फैलाते हैं
उनकी जयजयकार हो रही।
दिखाएगा अब कौन पथ,
द्रौण भी  चक्रव्युह रचा रहे
शिक्षा के मंदिरों में भी  अब
घनघोर  रात हो गयी।
कहां है अर्जुन?
 श्रीकृष्ण कहां है?
कपटी शकुनी की चालें
नया शड़यंत्र रचा रही।



शनिवार, फ़रवरी 27, 2016

कल भी हमारे आज पर होगा....

हम आए थे जब
याद करो दुनियां में
ईश्वर की तरह निश्छल आए   थे
न जानते थे कुछ
न कुछ पाने की इच्छा थी...
ये भी जानते हैं हम
जब दुनियां से जाएंगे
कोई साथ न चलेगा
छूट जाएगा सब कुछ यहीं,
साथ न कुछ ले जा पाएंगे...
अतृप्त वासनाए थी पूर्व जन्म में
उन्हे पूरी करने आए जन्म लेकर
इस जन्म में भी अगर
 लोभ, स्वार्थ, उच्च आकांक्षाएं होगी 
पुनः आना पड़ेगा जन्म लेकर...
 ईश्वर ने दुःख और सुख
जन्म के साथ नहीं भेजे
जो कल किये कर्म हमने
उस पर   हमारा आज है
कल भी  हमारे आज पर  होगा....


बुधवार, फ़रवरी 17, 2016

दुर्योधन को चुने या युधिष्ठिर को।

हम  अब
 नागरिक नहीं
रोबोट हैं
वोट हैं
लोकतंत्र में

हम बिकते हैं
खरीदे जाते हैं
डराए जाते हैं
रहना पड़ता है खामोश
हर चुनाव के पहले।

चुनाव के बाद
हमे होना पड़ता है
हर जीतने वाले के साथ
हारने वाला तो
अपनों को ही  दोष देता है।

ऐसा भी नहीं कि
हमे कुछ नहीं मिला
कागजों के मत पत्र की जगह
 इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन 
और हजारों  एग्जिट पोल के नतीजे।
भले ही
हम बांटे जाते हैं
जाति और क्षेत्र के नाम पर
पर मतदान केंद्रों पर
हम एक हो जाते हैं।

अगर  हम सब  एक हैं
फिर बंटते क्यों हैं?
डरते क्यों हैं?
हमारे पास शक्ती है
दुर्योधन को चुने या युधिष्ठिर   को।

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2016

कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

 आती है  जब
बसंत पंचमी
झूमती है
समस्त प्रकृति
 हर्षित होता है
हर जीव
गाती है धरा
यौवन के गीत...
 विद्यालय की दिवारें भी
करती हैं प्रतीक्षा
सोचती हैं
होगा उतसव
मां सरस्वती के
जन्मदिवस  पर
पूजा तक भी नहीं होती
बस  वेलेन्टाइन डे की चर्चा...
मां शारदे 
की पूजा से
आती है विद्या
विद्या से विनम्रता,
विनम्रता से पात्रता,    
 पात्रता से धन,
धन से खुशहाली।... 
हम शिक्षित हैं
धन भी हैं
अधिक से ज्यादा
पर संतोष नहीं है।
हम भूल चुके हैं
शिक्षा की देवी को
इसी लिये आज
कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2016

जो थोड़े में आनंद लेता है...

न खुश हैं
वो
जिन के पास
पैसा बेशुमार हैं।
सोने के लिये
मखमल के बिसतर है
पर क्या करे
नींद नहीं आती।
भूख नहीं लगती
देखो उन्हे
जिनका एक वक्त का  खाना ही
हजार जनों  की रोटी से महंगा है...
क्योंकि वो
भाग  रहे हैं
पैसे के पीछे
पैसा फिर भी कम लगता है।
वो और तेज
भागते हैं
जब   नींद आना चाहती है
या  खाने का वक्त होता है।
भाग्यशाली वो नहीं
जिसके पास सब कुछ है,
नसीब उसका है
जो थोड़े में आनंद लेता है...

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2016

पथ और मंजिल।

मेरा हर कदम
बढ़ रहा है
यूं तो
मंजिल की ओर ही।
पर मुझे
मंजिल नहीं
प्रीय तो
पथ ही है।
आज मेरे पास
केवल पथ है
मंजिल तो
कोसों दूर है।
मंजिल तो
मिले न मिले
 पथ तो
मेरे पास है।
जब मिला मुझे
ये पथ
चाह हुई तभी
मंजिल पाने की।

गुरुवार, फ़रवरी 04, 2016

अगर चलते रहे तो बहुत मिलेंगे

थका नहीं
न पथ भूला
ख्वाबों के टूटने का
गम भी नहीं।
साथ भी हैं
कई चलने वाले
जो छोड़ गये
उनसे गिला भी  नहीं।
ठहरा हूं जब से
हो गया अकेला
सब चलते रहे
कोई रुका भी नहीं
अगर चलते रहे
तो बहुत मिलेंगे
अगर ठहर गये
रहेगी  रुह भी नहीं।

मंगलवार, जनवरी 26, 2016

झुलस रहा है गणतंत्र भी

तिरंगा तो
लहरा रहा है
सुनो, समझो,
कुछ कह रहा है।
हम भूल रहे हैं
संविधान  को
देते हैं गाली
राष्ट्र गान को...

आज हजारों
माखन चोर
पीड़ित  हैं
कुपोषण  से।
मासूम किशोरों
के सपने
बेबस हैं

कारखानों में...
चाहते थे करना
जो अथक काम
उनके पास
रोजगार नहीं है।
जिन के पास
अनुभव हैं
वो सीमित कर दिये
आश्रमों में...

न जान सकी
जनता अब तक
अपने मत का
मोल ही।
बन गया चुनाव
खेल अब
जीतते  हैं
केवल पैसे वाले...
हर तऱफ
भ्रष्टाचार है
संसद देश की
बिलकुल लाचार है।
देखो आज
झुलस  रहा है
गणतंत्र भी
धर्म की आग में...

शनिवार, जनवरी 23, 2016

कहां गुमनाम हो गये।

तुम्हारी कुर्वानी से
हम आजाद हो गये
तुम गये कहां
कहां गुमनाम हो गये।
आजादी के बाद
राज मिला उनको
जो देश को भूलकर
राज भोग में खो गये।
जो देखा था
आजादी का सपना तुमने
सपना पूरा हुआ ही था
हम फिर सपनों में खो गये।
अगर होते तुम
देश का ये हाल न होता
तुम्हें मिटाकर वो
खुद दावेदार हो गये।

तब तक  कैसे बदलेगा समाज  और देश।

हम सब
चाहते हैं बदलना
समाज  को,
देश  को।
चाहते हैं हम
कड़े कानून बने
पर क्या हम खुद
हर कानून का पालन करते हैं?।
  चाहते हैं सभी
भ्रष्टाचार न हो
जब देते हैं हम
तभी कोई रिशवत लेता है।
दशम गुरु ने पहले खुद
अर्पण किये  चार लाल
फिर कहा सब से
शहादत दो।
नहीं बदलते
जब तक खुद को
तब तक  कैसे बदलेगा
समाज  और देश।

गुरुवार, जनवरी 21, 2016

बंटवारा


नहीं बिखरते परिवार
अगर घर के
 छोटे-मोटे  झगड़े
 सुलझ चाए,
घर में ही।
जब घर के झगड़े
आस-पड़ोस की
चर्चाओं में सुनाई देने लगे
समझ लो
घर टूटने वाला है।
जब एक  भाई का
 दूसरे भाई से
बंटवारा होता है
मां तो रोती है
पर ईश्वर हंसता है।

शुक्रवार, जनवरी 15, 2016

तलाश...

जयचंद
और
पृथ्वीराज
दोनों का ही
 जन्म होता है
हर काल  में
हर देश में।
गौरी  को
तलाश रहती है
हर हमले से पहले
जयचंद  की
वह जानता है
बिना जयचंद के
मुमकिन नहीं विजय।
पृथ्वीराज
अगर पहचान जाए
जयचंद को
तो दंड देता है,
न पहचान सका तो
खुद ही मारा जाता है।

गुरुवार, जनवरी 14, 2016

मकर संक्रांति वर्ष में, दिवस है सब से पावन...


मकर संक्रांति वर्ष में,
दिवस है सब से पावन,
जीवन और वातावरण में
 होता है दिव्य परिवर्तन।
सूर्य देव  का होने लगा
उत्तर को अब  गमन
 अंधकार सब दूर हुआ,
हुआ धरा पर चानण।
प्रातः ही  नदियों पर जाकर
करना  पावन स्नान,
फिर ईश्वर की वंदना करके,
दोनों हाथों से करना दान।
नकारात्मकता  को नष्ट करो,
कहता है ये पर्व,
    जीवन में उच्च कर्म करो,
धरा ही है स्वर्ग।

बुधवार, जनवरी 13, 2016

कर रही है लोहड़ी   आवाहन सबसे।

आयी लोहड़ी ,
लेकर खुशिया।
बदली रुत
दूर हुई ठंड
आलस्य सुस्ती
दूर हुई अब।
लोहड़ी  जलाओ
जी भर के खाओ,
नशवर है जीवन
बस नाचो-गाओ...
लोहड़ी    केवल
पर्व नहीं है।
लोहड़ी   है
एक  संदेश,
नफरत भुलाओं,
न रखो क्लेश।
बच्चों की हुडदंग
बालाओं के गीत
जलता अलाव
है भाईचारे की जीत...
कर रही है लोहड़ी  
आवाहन सबसे।
न डाकू कहो
दुल्ला भट्टी को,
न होने देता था
अन्याय वो।
वो लूटता था
लुटेरों का खजाना,
चाहता था देश में
पुनः स्वराज लाना...

सोमवार, जनवरी 11, 2016

शहरों की ओर जाते रहे...

घर नहीं, मकान  बनाते रहे
रंगीन नकाशियों से, चमकाते रहे,
मकान तो बन गया राजमहल सा
 सब शहरों  की ओर   जाते रहे...
ये बड़ा शहर हैं
यहां मोटे किराए  का छोटा घर है,
रौनक थी गांव के घरों में
यहां आवाज़  को भी  अपनी दबाते रहे...
अपनी दाल थी अपनी रोटी,
 नहीं पड़ता था कहीं दूर जाना,
सुविधाएं तो बेशुमार हैं,
भाईचारे को भूलाते रहे...
होते थे हम हैरान
जब आयी थी गांव में नयी मशीने,
अब बन गये खुद ही  मशीन,
उन मशीनों को भूलाते रहे...
कहां खो गया वो    मेरा गांव
वो मक्की की रोटी, उस पेड़ की छांव,
सावन सूना,  सूना माघ भी,
बिल भर भर कर घबराते रहे...


गुरुवार, जनवरी 07, 2016

...पर उनकी तलाश पूरी नहीं होती...

मुझे याद है
जाते वक़्त उसने
कहा था मुझसे
...तुम जैसे हज़ार मिलेंगे...
मैं ये  सुनकर
चौंका पर मौन रहा
मुझे ठुकराकर
 ...फिर मुझ जैसे की ही  तलाश क्यों?...
कुछ लोग जीवन भर ही
एक अच्छे के बाद और अच्छे की तलाश में
 न जाने कितनों को तबाह कर देते हैं
...पर उनकी तलाश पूरी नहीं होती...


मंगलवार, जनवरी 05, 2016

नमन है उस शहादत को...

ये सत्य है
जो आया है
उसे जाना भी है,
मौत निश्चित है सब की।
कुछ तो
दोड़ देते हैं दम
बिसतर पर ही,
किसी को पता भी नहीं चलता।
कोई मरता है
गले में लगा कर फंदा
जिस की मौत पर
केवल चर्चा होती है।
एक घटोत्कच  की तरह
देश की लिये शहीद होता है
जो मरते हुए भी
हजारों को मारता है।
नमन हैं
उस शहादत को
जो अपनी अल्प आयु देकर
सब को लंबी आयु देते हैं...
 

गुरुवार, दिसंबर 31, 2015

नव वर्ष का अभिनन्दन है...

कहता है कलैंडर
आगे बढ़ो
रुको नहीं,
पर भागो नहीं,
अपनी गति में चलो।
बदलता है
सब कुछ ही।
हर पुराने के बाद
एक नये का उदय
क्रम चलता है यही...

कहता है पुराना वर्ष
पहुंच चुके हो जहां,
उससे आगे चलना,
रुकना नहीं
न भय लाना मन में।
जो भूल हुई,
 न दौहराना उसे,
जो न पा सके,
अब पाना उसे
इस नव वर्ष में...
लाया है नव वर्ष,
सब के लिये
नया उत्साह
 नयी उमंगे
नये सपने।
जब उदय होगा
नव वर्ष का सूरज,
जल उठेंगे
नव आशाओं के दीप
नव वर्ष का अभिनन्दन है...

शनिवार, दिसंबर 26, 2015

ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...

हर राज सब को बताए नहीं जाते,
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर जिंदगी यूं तो
एक फूल की तरह होती है
खिलते हैं फूल प्रेम से
नफरत से हैं मुर्झाते...
कौन कहता है
आदमी एक बार मरता है,
दुनिया के ठुकराए हुए,
बस दफनाए नहीं जाते...
कहने वाले समझते हैं
 वो अब  हमारा  घर है,
मासूम हैं वो कहने वाले
जो मकान को घर हैं बताते...

बुधवार, दिसंबर 23, 2015

मानव...

ईश्वर ने
हर प्राणी के लिये
बनाई है एक धरा
जहां सब स्वतंत्र विचरे।
इन सब में, 
सबसे श्रेष्ट   मानव है
जिसे बनाया है
इस धरा के लिये...
मानव तन में
वास है
अनश्वर  आत्मा का
नष्ट नहीं होती जो।
मानव कर सकता है कर्म
बुद्धि और   विवेक से
पा सकता है मोक्ष
इस लिये सबसे श्रेष्ट    है वो...
पांच तत्वों से
 हर मानव बना है
   अविभाज्य है
समान हैं सब।
वैदिक धर्म  है सब का एक
जीवन है सबका करम-क्षेत्र 
मानव जिये मानवता के लिये
मरे भी तो  मानवता  के लिये...

आज कर्म ही
धर्म है  उसका
वो कर्म करे
मानव  हित  के लिये
रक्षा करे हर जीव की
पर्यावरण का  संरक्षण करे।
न होने दे शोषण,
किसी भी मानव का...

रावण को मारा मानव के लिये
कंस संहारा मानव के लिये
दधिची  ने अपनी हड्डियों  का दान
दिया  था मानव के लिये।
नानक आये मानव के लिये
 दिया ज्ञान बुद्ध  ने मानव के लिये।
गोविंद ने अपने चार लाल
कुर्वान किये मानव के लिये।

सोमवार, दिसंबर 21, 2015

भूख...

कभी सोचा है
शेर मांस ही  क्यों खाता है?
उसे चाहे कुछ भी मिले
पर उसकी भूख मांस से ही मिटती है।
 एक चिड़िया
केवल अन्न ही खाती है
अन्न न  भी मिले
वह किसी जीव को नहीं खाती।
जानते हो क्यों?
इन दोनों की भूख में फर्क है....
एक रहीस का बच्चा
थाली से पूरा भोजन कभी नहीं खाता,
रेलवे स्टेशन पर हाथ फैलाता हुआ बच्चा
फैंके  गए  छिलके को भी  मुंह में डाल देता है
मैं सोचता हूं
इन दोनों की भूख में फर्क है
पर खतरनाक
रहीस के बच्चे की भूख है...

कोई बिना रोटी से भूखा  हैं
 किसी को दवाइयों से  भी भूख नहीं लगती
हैं तो दोनों भूखे हैं
इन दोनों की भूख में भी फर्क    है.
एक की आवश्यक्ता रोटी है
और दूसरे की भूख ही आवश्यक्ता है...
पर मैं उस भूख की बात कर रहा हूं
जिससे एक विद्वान पंडित,  रावण बन जाता है,
क्षण भर में ही उसका सारा  ज्ञान नष्ट हो जाता है।

मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो औरंगजेब को लगी थी,
जिसने अपने जनक को ही कारावास में डाल दिया था।
मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो कीचक को पांचाली  को देखकर लगी थी।
जिससे डर कर आज हर लड़की भयभीत है....

अखंड भारत देश  चाहिये।

जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
 कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
 जनतंत्र ही होगा,
राज्य राम का
न खंडित होगा
न होता जयचंद
हम गुलाम न होते,
कई सदियों तक
 गुम नाम न होते।
हमे एक दल नहीं
स्वदेश चाहिये,
केवल देश नहीं
अखंड भारत देश  चाहिये।

शनिवार, दिसंबर 19, 2015

 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

हर बार
जब आती है सर्दी
गिरती है बरफ
होती है रात
मुझे याद आता है
वो एक एक पल
कडाके की ठंड में 
जब हम सब
 आग के सामने बैठकर
बुजुर्ग   और बच्चे
सुनते और
सुनाते थे कहानियां...
अब बरफ तो गिरती है
पर उतनी नहीं
अब देर रात तक जागते तो हैं
पर अपने अपने कमरों में
बुजुर्ग   पड़े रहते हैं
एक कौने में किसी सामान की तरह।
बच्चों को फुरसत नहीं
टीवी,  Internet   से।
अब आग भी नहीं जलती
हीटर से काम चलता है।
अब नहीं आयेंगे लौटकर
 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

गुरुवार, दिसंबर 17, 2015

बलिदान नवम गुरु का...[गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर]

जब जब धर्म की
होती है हानी
आते हैं ईश्वर
जन्म मानव का लेकर
करते हैं अधर्म का नाश...
धर्म की पुनः स्थापना के लिये
नवम गुरु  थे धरा पर
 औरंगजेब का दुसाहस देखो
 जो चाहता था मिटाना
सनातन धर्म को ही...
 "करवा रहा है औरंगजेब
जबरन हमारा   धर्म परिवर्तन
हम अपवित्र हो जाएंगे
नहीं कोई अब  हमारा रक्षक
गुरु जी  आप ही  रक्षा करो"...
"ये कहो उससे
हम पथ पे चलेंगे केवल गुरु  के"
एक स्वर में कहा सबने
कर लेंगे  हम इस्लाम कबूल
अगर हमारे गुरु जी   करेंगे"...
औरंगजेब  ने गुरु जी  से कहा
"इस्लाम कबूल करो,
अगर ईश्वर  हो
 कोई करामात  दिखाओ,
वर्ना काट दूंगा शीश  तुम्हारा"...
श्रेष्ठ   धर्म है
क्यों परिवर्तन करूं
तुम इस योग्य नहीं
तुम्हें चमत्कार   दिखाऊं
 जो इच्छा हो तुम वोही करो"...
शीश गंज'  साक्षी है
गुरु जी की    शहादत का
उनके अनुपम  बलिदान ने
देश धर्म का महत्व बताया
  आजादी के लिये असंख्य  बलिदान  हुए...

शनिवार, दिसंबर 12, 2015

माता सुनी कुमाता  

पूत कपूत सुने है
 पर न माता सुनी कुमाता
 अगर ये कहावत
पशु-पक्षियों  के लिये कही गयी होती
तो सत्य मान लेता...
क्योंकि मैंने
एक जानवर को
उसके अपने  बच्चे से
बिछड़ने पर
रोते देखा है...
न देखा है कभी
किसी पक्षी को
त्यागते हुए
अपने बच्चों को
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...
ये बात वेद-पुर्ाणों में
कही गयी है
हो सकता है
किसी युग में
माता केवल सुमाता ही होती हो...
पर आज  ये  बालक
जिन्हे त्याग दिया
बेवजह ही इनकी माताओं ने
 करण की तरह जानते हैं
 अपनी माताओं का सत्य...
ये भले ही
प्रसन्न दिखते हों
पर जीवन का  सबसे बड़ा अभाव
इन के उदास नेत्रों में
कभीकभार झलकता तो   है ही है...
इन की माताएं
किसी उच्च कुल की महारानी बन
अपने अतीत का सत्य छुपाए
एक और महाभारत के बहाने
इनके शवों पर रोने के लिये तैयार बैठी हैं...


शुक्रवार, दिसंबर 11, 2015

जैसी संगत वैसी ही रंगत

कुंति गांधारी और द्रौण
ये सभी जीवन भर
करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
 एक अध्यापक  से
पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक  मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता  है...
 पांडव धर्म के पथ पे चले
क्योंकि उन्हे श्रीकृष्ण मिले
कौरवों को साथ मिला
कपटी शकुनी का
वो अधर्मी बनाए गये...
मां केकेयी धर्मआत्मा थी
सब से प्रीय थे उसे राम
मंथरा  की प्रेर्णा  से
एक असंभव कार्य को   भी
पल भर में संभव किया...
मैं सोचता हूं कि
वास्तविक चरित्र निर्माण
 संगत से होता है
जैसी संगत होती है
वैसी ही रंगत दिखती  है...
कोई आसमान छूता है
या तबाह होता है
 ये उस पर निर्भर नहीं करता
ये उसके मित्र, साथी  या 
  प्रेरक  पर निर्भर करता  है...

गुरुवार, दिसंबर 10, 2015

जीवन का है लक्ष्य यहीं।

मैं चल रहा हूं
कहीं रुका नहीं
आयी बाधाएं
मैं झुका नहीं।
जब कहा कदमों ने
ठहरों यहीं
कहा मन ने
ये  मंजिल नहीं।
निश्चय मेरा अटल है,
चाल मेरी धीमे  सही
पहुंचना है मंजिल तक
जीवन का है  लक्ष्य यहीं।

 

बुधवार, दिसंबर 09, 2015

हमे कुछ नहीं चाहिये मुफ्त का कुछ भी

एक नेता
सरकारी स्कूल के
छोटे-छोटे बच्चों को भी
सरकारी योजनाएं
गिनवा रहा था...
दोपहर का भोजन
मिलता है मुफ्त
नहीं लगता
स्कूल आने में किराया
न सिलवानी पड़ती है
वर्दी भी अब...
एक बच्चा
उसी वक्त
मंच के सामने आया
जिसकी फटी   हुई  वर्दी
नेता जी के भाषण पर
मानो व्यंग कर रही हो...
वह कांपते हुए बोला
हमे कुछ नहीं चाहिये
मुफ्त का कुछ भी
बस आप
मेरे पापा की
 शराब छुड़वा दो...

शुक्रवार, नवंबर 27, 2015

ये राजनितिक कटरपंथी हैं

अब नहीं होते
 चौराहों पर पंगे
न धर्म के नाम पे
हिन्दू  मुस्लिम के दंगे।
न सुनाई देता है
मंदिर मस्जिद  का शोर
अमन है
अब चारों ओर।
थम  जाएगा
भ्रष्टाचार भी
चल रही है लाठी
कड़े कानून की।
पर खतरा है अभी
लोकतंत्र पे,
कटरपंथियों   की
विचार धारा से।
चो कह रहे हैं
असहिष्णुता  है
नयी सरकार से
खतरा है।
ये साहित्यकार  या
अभिनेता नहीं है
ये राजनितिक
कटरपंथी  हैं
  जब देश में
दल परिवर्तन हुआ।
तभी इनका
उदय हुआ।
 कल कहां थे
जब दंगे हुए
आपातकाल में
पंगे हुए।
ये हितेशी नहीं 
भारत देश  के
ये बोलते हैं
बस पैसों से।
जन मत का
संमान करो
न लोकतंत्र का
अपमान करो।
देश को देखो
किसी दल को नहीं
यहां जनतंत्र है
राज एक दल का नहीं।

गुरुवार, नवंबर 26, 2015

अब जंता जाग रही है।

देख लिया है
अजमाकर उन को
जो राजा है
बहलाकर हम को।
हम भूल गये थे
अब तक खुद को
समझे थे आजादी
केवल शोषण को।
होते रहे खुश
हार पहनाकर
नेताओं की सभाओं में
तालियां बजाकर।
कुछ भी न बदला
सब कुछ वहीं है
अब जंता
जाग रही है।

नहीं सोचा कभी
हमे क्या दिया
अपनी जेवों  से भी
उनको ही दिया।
बदनाम हुए खुद
नयी पार्टी बनाई,
दागी छवी
नये चेहरों मे छुपाई।
भाषण-भरोसों पर
 विश्वास नहीं अब,
 फ्रेब चेहरे
और नहीं अब।
लोकतंत्र का
भविष्य यही है
अब जंता
जाग रही है।

हमे शासन नहीं
सुशासन चाहिये,
संसद में भी
अनुशासन चाहिये।
हमे वोट का
अधिकार मिला है
आजादी का
 उपहार मिला है।
आओ हम सब
कसम खाएं,
अपने वोटों को
पानी में न बहाएं।
गांव-गलियों में
आवाज यही है
अब जंता
जाग रही है।



मंगलवार, नवंबर 24, 2015

जय बोलो Guru Nanak की...

जब कलियुग में भी
होने लगा
 सनातन  धर्म का
अस्त सूरज...
विदेशी लुटेरे
बनकर राजा
बनाना चाहते थे
राम राज्य को लंका...
वेदों की ज्शिक्षाएं
भूल गये थे सब
पाखंडों का
अंधकार था...
पंडित ज्ञानी
जब न समझा सके
अर्जुनों को
वो गीता ज्ञान...
धर्म को बचाने
 ईश्वर आये फीर
बनकर Guru Nanak
इस धरा पर...
  दस रूपों में
आये नानक
वेदों का ज्ञान
Guru  ग्रंथ में समझाया...
नानक के रूप में
प्रेम से समझाया
गोविंद के रूप में
शस्त्र उठाए...
प्रेम की भाषा
जब न समझी
शस्त्रों से
अस्तित्व मिटाया...
की  धर्म की
पुनः स्थापना
जय बोलो
Guru Nanak की...




गुरुवार, नवंबर 19, 2015

जिंदगी की किताब...

हर जिंदगी
भी शायद
किसी लेखक की
लिखी हुई
किताब होती है...
पर हम
नहीं जान पाते
अपनी किताब के
लेखक को
न पढ़ पाते अगले पन्ने...
कहते हैं
रामायण भी
श्री राम जन्म से
कयी हजार वर्ष पूर्व
लिखी गयी थी...
वो ईश्वर थे
इस लिये शायद
हम जान पाये
उनकी जिंदगी की
किताब के लेखक को...

मंगलवार, नवंबर 10, 2015

मनाते हैं हम दिवाली...


[आप सब को पावन पर्व दिवाली की शुभकामनाएं...]
 पे राम
तुम दूर रहे
14 वर्षों तक
अंधकार सा लगा
 सब को तुम बिन
पर अंधकार नहीं था
न अन्याय था
राजा थे भरत...
वनवास काटकर
जब आये तुम
माएं हर्षित  हुई
जंता झूम उठी
पंछियों ने भी
जी भर के खाया
सब ने मिलकर
मनाई दिवाली...
पर आज
न तुम हो
न भरत
न तुम्हारी चरणपादुका।
है केवल
अन्याय,  भ्रष्टाचार
भय, हिंसा,
अनैतिकता और  आतंकवाद... 
हमे  विश्वास है
तुम्हारे वचन पर
होती है  जब-जब
धर्म की हानी
आते हो तुम
मानव बनकर
इस विश्वास से ही
मनाते हैं हम दिवाली...

शनिवार, नवंबर 07, 2015

हर जंग कलम ने ही जीती है...

ओ लिखने वालो
तुम्हारे पास
वो शब्द हैं
जो बदल सकते हैं
पवन की दिशा
जिन के बल पर
तुम
क्रांती ला सकते हो...
तुम्हारे पास
कलम की ताकत है
वो कलम
जिसका लिखा
रामायण का
एक एक शब्द
भविष्य में
सत्य हुआ...
आद तुम ही
और शस्त्र
हाथ में लिये
कलम के बिना भी
बदलना चाहते हो
आज के हालातों को
कैसे लिखने वाले हो
जो कलम को ही  भूल गये...
साक्षी है समय
कलम के  सिपाहियों ने
विश्व में आज तक
असंख्य क्रांतियां लाई है
कौन कहता है
शस्त्रों से जीती जाती है जंग
जानो, पढ़ो इतिहास
हर जंग कलम ने ही जीती है...

गुरुवार, नवंबर 05, 2015

मेरा महत्व कितना है..

बोला पुष्प
हंस कर
निज वृक्ष से
तुम्हारा महत्व
मेरे बिना
कुछ भी नहीं है...
जब खिलता हूं मैं
तभी आते हैं सब
वर्ना तुम्हारे पास
मानव तो क्या
पंछी भी नहीं आते
निहारते हैं सब मुझे ही...
कहा वृक्ष ने
सुनो प्रीय
तुम खिलते रहो
सदा ऐसे ही
होता बस में
तुम्हे अमर बनाता...
मैं तो बस
जीवन देता हूं
सब को ही
जैसे दिया तुम्हे भी
न सोचा कभी भी
मेरा महत्व कितना है..

गुरुवार, अक्टूबर 29, 2015

जिंदगी की किताब...

मैं
वर्षों से
जिंदगी पर
एक किताब लिख रहा था...
हर दिन
सोचता था
आज ये किताब
पूरी हो जाएगी...
पर तभी
अतीत की
कोई न कोई घटना
याद आ जाती थी.....
एक के बाद एक
नया पन्ना
मेरी किताब में
शामिल हो रहा था...
पर कल
देखा मैंने
पुराने लिखे पनेने
दिमकों ने नष्ट कर दिये हैं...
मैंने
नष्ट हुए
सारे पन्ने
निकाल कर फैंक दिये...
अब मेरी
ये किताब
बचे हुए
पन्नों के साथ ही पूरी होगी...

गुरुवार, अक्टूबर 22, 2015

पावन चरित्र सीता का...

श्री राम
सामान्य पुरूष नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम
आदर्श राजा थे...
ईश्वर थे
भले ही राम
पर सीता   के बिना
 पूर्ण  नहीं थे...
सुख में भी
वो  साथ   रही
दुख  में भी
साथ दिया...
महलों में रही
या वनों में
पालन किया
पतिव्रत धर्म  का...
अगर न होती
अग्नि परीक्षा
 शंका के बादल
बार-बार घिर आते...
आदर्श राजा
कहलाते कैसे
रघु-कुल की रीत
बचाते कैसे...
अग्नि परीक्षा
ने दिखाया  जग को
पावन चरित्र
 सीता का...  
न छुह सका रावण
न जला सकी अग्नि
देकर अग्नी  परीक्षा
सर्वश्रेष्ठ,   बनी...
श्री राम ने
नारी का
सदा ही
 संमान किया......
राम को जानो
 सीता  को पहचानो
राजा के धर्म को 
अन्याय न कहो...


मंगलवार, अक्टूबर 20, 2015

राम नहीं मिलते...

आज हम
अपने बच्चों को
उच्च शिक्षा देकर
बड़ा  आदमी बनाने का
ख्वाब देखते हैं
ख्वाब पूरा भी हो जाता है...
पर हम भूल जाते हैं
उच्च शिक्षा के साथ
बच्चों के सामने
चरित्र निर्माण के लिये
राम का चरित्र होना चाहिये... 
इसी लिये आज
रावण की तरह
बड़े तो बहुत हैं
भरत, Laxman,
राम नहीं मिलते...

शुक्रवार, अक्टूबर 16, 2015

विश्वास....

जब तक
विश्वास था
 मुझे तुम पर
अटूट प्रेम था
मुझे तुम से...
जिंदगी
 और रंग-मंच
एक नहीं
 अलग हैं
जिंदगी हकीकत है....
विश्वास तोड़ने
से पहले ही
तुम कह देती
मैं मिट जाता
प्रेम  तो न मरता....
विश्वास
मात्र  शब्द नहीं
हृदय में
प्रेम का दीप
जलाने वाला तेल है....
जब तक तेल है
दीपक में
जलता है दीपक
 तब तक ही
वर्ना दीपक  दिखावा है...

गुरुवार, अक्टूबर 15, 2015

पुष्प और कवि....

मैं पुष्प हूं
भावनाओं से युक्त
मुझे माली नहीं
कवि प्रीय है...
कवि  मुझे
कभी नहीं तोड़ता
न वो केवल
सौंदर्य ही देखता है...
वो  अक्सर
आता है
पूछता है मुझसे
मेरे मन की बात...
दिखावा तो
करते हैं सब
प्रेम हम से भी
करता है कवि ही...
मुझे माली ने
लगाया भी
और पाला भी
पर स्वार्थ के लिये...
कौन कहता है
मैं नशवर हूं
मेरा मिटना तो
परोपकार का संदेश है...

सोमवार, अक्टूबर 05, 2015

हमेशा के लिये ही...

ऐ आंसू
मैं रिणी हो गया
आज से तुम्हारा
शायद ये रिण
न चुका पाऊंगा
आजीवन ही...
मन  से निकलकर
 तुम आँखों में उतरे
 मैंने देखा तुमको
गिरते हुए भी
क्षण भर में ही
तुम गये कहां
दे कर  शीतलता
मेरे मन को...

तुमने मेरा साथ
दिया तब
जब मैं अकेला ही
अपने मन का दर्द
मन में दबाए
भटक रहा था
उस परवाने की तरह
शमा ने जिसे
जलाना  तो चाहा
पर उसके प्राण नहीं निकल सके...

तुम सा
परोपकारी भी
कौन होगा जग में
ले गया बहाकर
मेरे मन  के दर्द को
और खुद मिट गया
हमेशा के लिये ही...

मंगलवार, सितंबर 29, 2015

कल के लिये....

बालक बनकर
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी  तब.....
 जवानी में
अथक काम करके
महल बनाए
खूब पैसा कमाया
न तपती धूप
से डगमगाया
न शरद  रातों
 को ही  सोया
काम किया बस
कल के लिये...
देखते ही देखते
आ गया गल भी
यानी तीसरा दिन
जीवन का
ये तीसरा दिन
कल  के काम का नहीं है
इस लिये अर्जुन
बिछा  रहा है
बाणों की एक और शया 
सोना पड़ेगा मृत्यु  तक
अब केवल उस पर ही...

गुरुवार, सितंबर 24, 2015

जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मैं सोचता था
भ्रष्टाचार केवल
नेता, अधिकारी,
बड़े व्यपारी
या सरकारी तंत्र के
लोग  ही करते हैं
इन्हे करते देखा भी है...
जब मैंने देखा
1 माह का बच्चा
दूध की बौटल को
मुंह से दूर करते हुए
 जैसे मानो कह रहा हो
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार
रोते हुए अपनी मां  को
तुम भी भ्रष्टाचारी हो
जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मंगलवार, सितंबर 22, 2015

हम दूर हो गये...

सोचा था
कुठ गीत लिखुंगा
आयेगा जब
समय सुहाना...
दिन बीते
बीत गये वर्ष
पर आज तक
न वो गीत लिखे...
चला एक दिन
चमन की ओर
पर चमन तब तक
उजड़ चुका था...
नींद में ही सही
हसीन ख्वाब  देखूं
पर रातों  को
कभी  नींद न आयी...
तुम्हारा हमारा
मिलन था तन का
मन मिले बिना ही
हम दूर हो गये...

सोमवार, सितंबर 21, 2015

यही है सैनिक धर्म मेरा...

मैं और तुम
नहीं  जानते
एक दूसरे को
न मिले कभी
न हम दोनों का
बैर है कोई...

अगर मिलते
दिल्ली या लाहौर में
पूछता तुम से परिचय
परिचय देता अपना भी
संकट में होते
मदद भी  करता...

हो भले ही
तुम भी मुझसे
आज जंग है
दो देशों में
यहां तो  हम  केवल
  शत्रु हैं...

पर आज
हम दोनों का मिलन
रण-क्षेत्र में
हुआ है
हम दोनों को ही आज
सैनिक धर्म निभाना है...

हम दोनों में
जो मारा गया
वो शहीद कहलाएगा
जो  जिवित बचेगा
वो संमान पाएगा
अपने देश में...


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जिवित तुम्हे
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...

शनिवार, सितंबर 05, 2015

देश पर संकट है...

देख भारत की
दुर्दशा आज
उमीद है
परिवर्तन होगा
विश्वास है सब को
तुम आओगे...

जब जब भी
आया संकट
हम डरे नहीं
बुलाया तुमको
एक बार नहीं
 हर बार आये हो...

तुम्हारा दिया
गीता का ज्ञान
अब नहीं आता
समझ में किसी के
पुनः दो
हमे  वोही ज्ञान...

आज सनातन
धर्म फिर
बुला रहा है
श्याम तुम को
सनातन का  खतरा ही
देश पर संकट है...

गुरुवार, सितंबर 03, 2015

केकयी सा ही अनादर होता है...

मां केकयी को
आज सभी
मानते हैं दुर्ात्मा,
 दोनों माओं की तरह ही
 वो भी  एक
 महान नारी थी...
नहीं जानना चाहा किसीने
भरत से अधिक
प्रीय थे जेसे   राम
फिर पल भर में ही
क्यों मांग लिया
 श्री राम को वनवास...

उन्हे तो केवल
देवताओं ने
भ्रमित करके
मांगने भेजे दो वचन,
 ताकि राम वनों में जाए
वध करे रावण का...


भरत की जननी
श्रीराम की मां
दशरत की रानी
उच्च कुल की बेटी
कुल वधु अवध   की
दुर्ात्मा कैसे...


किसी का किया
एक तुच्छ कर्म
उसके जीवन के
सारे उच्च कर्मों  को
नष्ट नहीं कर सकता
ये हमारी भूल है...

कभी कभी पराई मां भी
एक पुत्र को
उसकी जननी से भी
अधिक प्रेम करती है
पर उसका  सदा ही
केकयी सा ही अनादर होता है...

शनिवार, अगस्त 29, 2015

...बहनें अब जाग रही हैं...

सदियों से
अटूट समझा जाता  था
भाई-भहन का
 पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...

जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...

ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
 छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...

सोमवार, अगस्त 24, 2015

पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

अब जब भी चाहो
कहीं   भी
कर लेते हैं
बातें जी भरके
मुबाइल पर
एक दूसरे के साथ...
पर बार बार
बातें करने में भी
नहीं  मिलता वो आनंद
जो मिलता था
बार बार एक ही
चिठ्ठी  पड़ने में...
मिट गये हैं
दूरियों  के फांसले
मगर दिलों की दूरियां
बढ़ती जा रही है
आज सब के पास ही मोबाइल है
पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

शनिवार, अगस्त 22, 2015

प्रीय तिमिर

मैं और तुम
साथ हैं
तब से
जब से मैं
आया हूं यहां...
क्या कहा था
ईश्वर ने तुमसे
जब तुम्हे मेरे पास
भेजा था
मेरे जन्म के साथ ही...

मुझे तो
याद नहीं
अपने पूर्व जन्म
 की कोई  कहानी
न इस जन्म की
कोई घटना...

मुझे क्यों
मिले तुम ही
मैं ईश्वर को
दोष नहीं दे रहा हूं
    बस पूछ रहा हूं...

मैं तुम्हारे साथ
खुश हूं हमेशा
जैसे निशा
 प्रसन्न है
तुम्हारे साथ...

प्रीय तिमिर
तुमने मुझे
जकड़  रखा है इसकदर
न दीपक के
प्रकाश की आवश्यक्ता
न रात होने का भय...
    

मंगलवार, अगस्त 18, 2015

रोती है बस वो...

उस औरत को
न्याय मिल सकता है
वो पढ़ी लिखी   है
 जानती है
हर उस कानून के बारे में
जो बने हैं
उसके संरक्षण के लिये...

फिर भी वो
सह रही है
मार-पीट
और हिंसा
एक शराबी की
जो शराब भी
उसकी कमाई से
पीता है...

उसे याद है
विदाई के समय
नम आंखों से
कहा था मां  ने
जा बेटा अब
खुश रहना
उस बड़े कुल  में...

मायका भी
अब  हो गया पराया
जाएं कहां
बच्चे भी हैं,
 अकेले मे
जी भर के
रोती है बस वो...

बुधवार, अगस्त 12, 2015

ये अमर गाथा आजादी की।

जब लहराता है
 लाल किले पर
अखंड देश का
 प्यारा  तिरंगा
झुक जाता है
मस्तक मेरा
करने को नमन
इन शहीदों को।

हमारी तरह ही
अगर ये भी
सुख वैभव से
जीवन जीते।
हम आज भी
जकड़े होते
विदेशियों की
प्राधीन बेड़ियों में।

कहा माओं से
बुला रही है मां
तेरे दूध की
परीक्षा है।
आने वाले
कल की खातिर
मांग रही हैं तुमसे
तुम्हारा आज।

हम माएं है इनकी
केवल इस जन्म में
तुम मां हो
युगों-युगों से
सौ पुत्र भी
होते एक के
सहर्ष भेजते
चरणों में तुम्हारे।

जाओ बेटा
न देर करो
जाग उठा है
नसीब तुम्हारा।
ये जन्म भूमि ही
कर्म भूमि है
आज से
केवल तुम्हारी।



सूरज चांद
सितारों ने देखी
अनुपम  कुर्वानी
शहीदों की।
स्वर्णिम अक्षरों में
इतिहास ने लिखी
ये अमर गाथा
आजादी की।

मंगलवार, अगस्त 11, 2015

विजय तुम्हारी।

क्यों होते हो
बार बार उदास
सब कुछ है
आज तुम्हारे पास।
कुछ खोना
हार नहीं है
जो खोया है
उसे पाना सीखो
पहले सोचो
क्यों हारे हो
फिर विचार करो
कैसे जीतोगे।
देती है जिंदगी
बार बार अवसर
भर देगा वक्त
सारे घाव।
असफलता  को
अनुभव समझो
हार को न
अब याद करो।
अटल मन से
विजय के पथ पर
बिना रुके ही
चलते रहो।
उदय होगा जब
कल का सूरज
साथ लायेगा
विजय तुम्हारी।

शनिवार, अगस्त 08, 2015

उदास खामोशी

एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
 नदियों  की तरह।
ये नदियां  भी
 कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन  के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।

एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।


उस नदि की
कल कल करती
 आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास    खामोशी का।

शनिवार, अगस्त 01, 2015

मौत...

जन्म के साथ ही
मृत्यु भी
चलती है साथ
छाया की तरह।

मौत तो
हर क्षण ही
शत्रु की तरह
खोजती है अवसर

होता है जो
बुझदिल और कायर
उसे शिघ्र
बना लेती है अपना।

 वीरों से तो
भय लगता है
उसको भी
दूर दूर ही रहती है।

आती है
कयी  रूप रंग बदलकर
पर वीर तो
उसे पहचान लेते हैं।

हर साहसी को
वर्दान  होता है
इच्झा  मृत्यु का
भिष्म की तरह...


शुक्रवार, जुलाई 31, 2015

मेरी भारतीय रुह


मेरी भारतीय रुह भी
आहत होती है
ऊधम सिंह  की
रुह की तरह
जब देखती  हैं मानव संहार
कहीं भी

 भारत से दूर
मदन लाल ढींगरा
या ऊधम सिंह  की
फांसी की खबर सुनकर
वो  भी   बहुत रोई थी
अपने वतन में
अपनों के साथ।

भगत सिंह, सुखदेव
और  राजगुरु
की फांसी से
भारत मां के साथ
मेरी रुह भी
 आहत  है आज तक


आज तक मेरी रुह
फांसी को केवल
निर्मम हत्या मानती थी
क्योंकि ये सब निर्दोष थे
फांसी केवल
निर्दोषों को मिला करती थी।

पर आज जब
अफजल, कसाब
या मेमन  को
फांसी दी गयी
मेरी आत्मा आहत नहीं हुई
क्योंकि वो भी भारतीय है।

मंगलवार, जुलाई 28, 2015

जय कलाम

जय कलाम
आज मेरी कलम भी
कुछ लिखना चाहती है
तुम्हारे बेदाग चरित्र पर।

तुम जैसे
पथ प्रदर्शक
पंडित और ज्ञानी
नहीं आयेंगे बार बार।

देखो आज तो
ये बच्चे भी
नहीं खेलना चाहते खिलौनों से
बस रोना चाहते हैं।
तुम्हारे द्वारा
एक साथ रखी हुई
गीता और कुर्ाण
 अब न अलग होगी कभी भी।

दिये हैं जब से
तुमने हमे वो उपहार
नहीं लगता है डर
किसी विश्व शक्ती से।


वर्षों बाद
 आज फिर से
लगा यूं
गया है कोई युगपुरुष।



पर तुम्हारा
अनंत विस्तार लिखने के लिये
मेरी  कलम के पास 
 शब्द नहीं है।

मैं और मेरी कलम
आज दोनों मिलकर
तुम्हे शत शत
नमन करते हैं।

शनिवार, जुलाई 25, 2015

सबसे सस्ता साधन है।



हर आपदा के बाद
कुछ लोगों के शव
गुम हो जाते हैं
हमेशा के लिये।

उनके प्रीयजन
नहीं कर पाते
उनके अंतिम दर्शन भी
ख्वाइश ही रह जाती है।

कुछ दब जाते  हैं
मलवे में ही
जिनको   खा जाते हैं
भयानक जीव जंतु।

कुछ शवों को
अपना लेता है कोई
भाई या पिता के रूप में
मरने के बाद भी।

किसी  अंजान शव को देख
जोर जोर से रोना
मुआवजा पाने का
सबसे सस्ता साधन है।

शुक्रवार, जुलाई 17, 2015

कमजोर आदमी

कमजोर आदमी
के साथ तो
अन्याय कल भी हुआ था
होता रहा है सदा
शकुनी हितेशी बनकर
अन्याय की याद दिलाता रहता है उसे
फिर कमजोर आदमी करता है वोही
जो चाहता है शकुनी

महाभारत के
युद्ध का कारण
न भिष्म की प्रतिज्ञा थी,
न धृतराष्ट्र का पुत्र मोह
न दुर्योधन की महत्वाकांक्षा
न ही  शकुनी का प्रतिशोध
न द्रोपदी का हठ
पांडव तो बिलकुल नहीं।
 मैं तो
युद्ध का एकमात्र कारण
विदुर निति को मानता  हूं
जिसने धृतराष्ट्र  से
 राजमुकुट झीना।
जो उसका अधिकार था
दिया था भाग्य ने उसे
ये अधिकार जेष्ठ बनाकर।

राजा बनने की
तीव्र  आकांक्षा की ज्वाला
सुलगी तब
जन्म हुआ दुर्योधन का जब
कहा विदुर ने ये
पांडू पुत्र ही युवराज होगा।
कैसे होने देता
 वोही अन्याय
अपने पुत्र के साथ भी।   

गुरुवार, जुलाई 16, 2015

सावन की।

बहुत यादें हैं
सब के पास
बचपन के
 सावन की।

बीता वक्त
न आता फिर से
कहती है पवन
सावन की।

व्याह हुआ
दूर हुए सब
आस थी बस
सावन की।

बाबुल का घर
मां का लाड
बुलाती है सखियां
सावन की।

होगा मिलन
अवश्य एक दिन
कहती है वर्षा
सावन की।

बदल गया है
आज सब कुछ
न बदली रुत
 सावन की।

मंगलवार, जुलाई 07, 2015

हो गया तलाक।

विवाह के
सातों फेरों में
पत्नि अपने
होने वाले पति से
एक के बाद एक
मांगती है वचन।

पती  भी
सहर्ष
बिना अर्थ जाने बिना
दे देता है
सात वचन
एक अभिनेता की तरह।


अदालत से
कागज के कुछ टुकड़े
प्राप्त कर
घर आया
कहा सबने
हो गया तलाक।

पर ये मासूम
जो नहीं जानते
तलाक का अर्थ भी
उन्हे समझाने के लिये
ये कागज के टुकड़े भी
काफी नहीं है।

सोचता रहा
उस रात मैं
कैसे हुआ
आज ये सब
कहां गये
वो कसमे वादे।

विश्वासघात से
ढै  गयी  है
विवाह की
पावन इमारत
जिसके पत्थर
बिखरे हैं इधर-उधर।

तलाक के कागज पर
हस्ताक्षर करना
फांसी के फंदे
 से भी अधिक
पीड़ा दायक होता है
बस    आदमी मरता नहीं है।

शनिवार, जुलाई 04, 2015

सूर्य के शब्द।

हे दानवीर
पुत्र मेरे,
कर चुके हो दान
तुम अपना सब कुछ।

कवच कुंडल
और ये जीवन
खाली हाथ न भ
मां को लौटाया।
जो लिया था  तुमने
उसके बदले
मृत पड़े हो
आज यहां।

भाग्यशाली हो
तुम दुर्योधन
निष्ठावान,  महावीर
मित्र पाया।

हे कुंति
छोड़ो अब रोना
रोने का अधिकार
केवल राधा को है।

न रहती तुम
वर्षों तक मौन
शायद तब ये
रण भी न होता।

दी हुई शिक्षा
को शाप देकर
क्षईण करना
स्वभाव नहीं था तुम्हारा।

एकलव्य और ये
पुछते रहेंगे
अपना अपराध
क्या उत्तर दोगे?

मुक्त हो गये
 आज तुम
हर शाप से
        दुर्योधन के रिण से भी।
दान लेने से अच्छा
दान देना होता है।
आना पड़ता है देवों को भी
दानवीर के पास याचक बन।
शूरवीर को
न आवश्यक्ता होती है
किसी पहचान की
उसकी वीरता ही पहचान होती है उसकी।
दुर्योधन के
हितेशियों में
केवल तुम ही थे
जिसे मान दिया माधव ने भी।
तुम्हारा जीवन
तुम्हारी निष्ठा
दानवीर स्वाभाव
अमर कर गये तुम्हे।

गुरुवार, जून 25, 2015

किसी वृक्ष को काटने से पहले

किसी वृक्ष को
 काटने से पहले
एक पल के लिये ही सही
अवश्य सोचना.

इस वृक्ष पर
घर है पंछियों का
जो उजड़ जाएगा।

एक के बाद एक
आते हैं थककर पथिक
पाते हैं शीतलता
अब कहां बैठेंगे?

तेज धूप में तुमने भी
थक कर कभी
इस की छाया में
वक्त तो बिताया होगा।


आज ये वृक्ष
 बेबस खड़ा है
देखकर कुलाहड़ी में
अपना अंश

हो सकता है
तुम्हारे  अच्छे वक्त के बाद
ये वृक्ष ही
तुम्हारे काम आये।

मंगलवार, अप्रैल 28, 2015

मशीन बनाने का प्रयास है।

देखता हूं
बैग का भारी बोझ
उठाना भी
मुशकिल है
इन बच्चों के लिये।
सोचो फिर
इनका छोटा सा दिमाग
कैसे उठा पाएगा
इतनी सारी किताबों का बोझ
असंभव है।
अभी से
आंखों पर
दिखाई देते हैं
इतने बड़े बड़े चशमे
ये शिक्षा है
या बच्चों को
मशीन बनाने का प्रयास है।

गुरुवार, अप्रैल 16, 2015

इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है।

कुछ इनसान
आते हैं
ईश्वर की तरह
इस धरा पर।
कोई कहता है उन्हे
युहपुरुष
कोई धर्मात्मा
पर वो केवल
इनसान ही होते हैं।
वो जन्म भी लेते हैं
मौत भी निश्चित है उनकी
वो तन त्यागकर भी
अमर हो जाते हैं।
 उनके   तन में
वास होता है
किसी उच्च आत्मा का
उच्च कर्म होते हैं उनके।
उनका कहा हर शब्द
उपदेश कहलाता है
उनका किया हर कर्म
इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता  है।

रविवार, अप्रैल 12, 2015

सब से सुंदर क्या है जग में।


अगर कोई
पूछे मुझसे
सब से सुंदर
क्या है जग में।
यूं तो
खुदा की रची
हर शै सुंदर है
शूल भी,  फूल भी।
करूप ईश्वर ने
कुछ भी नहीं बनाया
ये केवल हमारी
दृष्टि का भेद है।
पर मां का आंचल
सब से सुंदर
जो करता है आकर्षित
ईश्वर को भी।

बुधवार, अप्रैल 08, 2015

ये जिमगारियां न निकलती।

जिन के पास कल
रहने को घर न थे,
आज महल पाकर वो
झौंपड़ियों को जलाना चाहते हैं।

वो भूल चुके हैं
अपने वो आंसू
जो बहाए थे खुद भी
उस दिन बेघर होने पर।

न भूलते अगर
अपना बुरा वक्त वो
आज इन महलों से
ये जिमगारियां न निकलती।

शुक्रवार, अप्रैल 03, 2015

मैं ही जान सकता हूं।

एक तरफा प्रेम
घातक होता है
उसके लिये
जो प्रेम करता है।
अज्ञानी पतंगा
खुद से भी अधिक
करता है प्रेम दीपक   से
भस्म हो जाता है जलकर।
कोई उसके प्रेम को
कहता है त्याग
कोई समझता है समर्पण
ये केवल  नादानी है   उसकी।
मैंने खुद देखा है
मिटकर पतंगे की तरह
क्यों जलता है पतंगा
मैं ही जान सकता हूं।

शुक्रवार, मार्च 13, 2015

उदय होता सूरज

उदय होता सूरज
जगाता है मुझे
मैं कौन हूं
बताता है मुझे।
नशवर है जीवन
ओस  की बूंदों सा
मिटाकर उन्हे
दिखाता है मुझे।
पूछता है मुझसे
मेरे मन की पीड़ा
जलकर खुद ही
दिखाता है मुझे।
केवल कर्म करो
करता हूं जैसे मैं
फल तो मिलेगा ही
समझाता है मुझे।

शुक्रवार, जनवरी 30, 2015

युग पुरुष

न सिंहासन मांगा
न जंग थी किसी से
फिर क्यों छलनी किया
एक संत को निज गोली से।
कांपते हाथों से तुमने
प्राण लिये जिसके
वो केवल  मानव  नहीं
युगपुरुष थे।
भस्म हो जाते तुम वहीं
अगर अहिंसा के पुजारी   बापू
राम राम कहते हुए
तुम्हे क्षमा न करते।
युगपुरुष की हत्या
होती है ऐसे ही
मारा था माधव को भी
छल से एक शिकारी ने।
क्यों दी फांसी
इस  अश्वस्थामा  को
जलने देते सदा
प्राश्चित  की आग में।

बुधवार, जनवरी 21, 2015

आना है तो, महमान बनके आओ।

आना है तो,  महमान बनके आओ,
तुम क्या हो,  हमे न ये  दिखाओ,
तुम कौन हो,  पता है हमे
हम क्या है, ये भी जान जाओ...
तुम जैसे कयी आये
जय कह गये इस धरा की
जो देखोगे यहां तुम,
कहीं और हमे दिखाओ...
आकर्षण  है इस मिट्टी में
आते हैं सब बार बार,
हकीकत में जीवन जीयो,
ये दिखावा भूल जाओ...
जो देखा है तुमने आज,
हज़ारों वर्ष पहले यहां था,
क्या करना है हमें
हमे न ये सिखायो...

रविवार, जनवरी 04, 2015

"निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"

एक मासूम के साथ
हुआ दुशकर्म भी
टिवी चैनलों पर
नमक मिर्च लगाकर दिखाना
टिवी चैनल को
प्रसिद्धि दिलाने का ही
माधयम बन गया है।

अगर ऐसा न होता तो
ये चैनल
कभी पिड़िता के भाई से
कभी पिता से
कभी रोती हुई मां को
अपने चैनल पर बुलाकर
उनकी  अंतर   वेदना न पूछते।

ऐसी खबरों को  सब से पहले
 दिखाने की प्रतिसपर्धा की जगह
अगर ये टीनी चैनल
अपने कैमरे  सड़कों या गलियों  में  लगाते
सोए हुए प्रशासन को जगाते
कहां है असुर्क्षा  जंता को बताते
            "निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"

शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014

भाग्यशाली और बदनसीब


भाग्यशाली है वो कुत्ते
जिन  का लालन पालन
बड़ी बड़ी कोठियों में
किसी राजकुमार की तरह हो रहा है
निछावर है जिनपर
शहर की सुंदरियों का सकल प्रेम


उन्ही  कोठियों में
बदनसीब वो बच्चे  भी रहते  हैं
जिन्हे रोटी भी
ताने सुन सुनकर
काम के बदले मिलती है।
 प्रेम पाने की तो
वो अपेक्षा ही नहीं करते।

अगर इन कोठियों में
कुत्तों की जगह
 इन बच्चों का लालन पालन होता
तो मैं कभी भी
इन बच्चों को बदनसीब
उन कुत्तों को भाग्यशाली न कहता।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2014

काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

भारत विभाजन के बाद
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक  बनाया वहां भी।
यहां की चिंगारी
तो बुझ गयी थी
कुछ ही महिनों में।
वहां   चिंगारी आज भी
सुलग रही है
नफरत की हवा से।
चाह  कर भी
इस चिंगारी को
बुझा न सके हम।
तुम्हारा ये बारूद का कोष
और ये एक  चिंगारी
काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

शनिवार, दिसंबर 06, 2014

6 दिसंबर का महत्व

 6   दिसंबर का महत्व
हिंदुओं के लिये भी
मुस्लिम के लिये भी है।
पर एक हिंदूस्तानी के लिये
इस का महत्व
 0 है।
गिराए गये मंदिर कयी
शोर भी न दिया सुनाई
सोचा क्यों खून बहाएं
 आताताई उस  बाबर की
मस्जिद गिरने की चिंगारी
आज भी  क्यों थमती नहीं।


जो भी  हुआ है  कल
भूल जाना अच्छा है उसे
न किसी की जीत है उस में
न प्राजित   हुआ है कोई
वो रक्त किसी राज नेता का नहीं
आम आदमी का था।
 
एक हिंदूस्तानी को
न वहां मंदिर चाहिये
न मस्जिद
आवश्यक्ता है अस्पताल की
या स्कूल चाहिये।

शुक्रवार, दिसंबर 05, 2014

केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

 एक स्वार्थ के लिये
काटते हैं उस  वृक्ष को
जो किसी से कुछ नहीं कहता
न किसी से कुछ मांगता है।
खड़ा है वर्दान बनकर
 घर हैं  इन पंछियों का भी।

देता है स्वच्छ हवा
हमे जीने के लिये भी ।
आने जाने वाले पथिक को
मिलती है   छाया
भूख लगने पर
खाते हैं उसके फल

अपने स्वार्थ के लिये
बन जाते हैं दानव
भूल जाते हैं हर परोपकार
नहीं रहती औरों की चिंता
नहीं देखते अपने कल को
केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

सोमवार, दिसंबर 01, 2014

दुर्भाग्य उस पुष्प का।

फूल टूटने  के बाद भी
लगते हैं सुंदर
कहीं माला में
कहीं मंदिर में
कभी अर्थी पर
कभी विवाह में।

तोड़ने से पहले
नहीं पूछते इनसे
क्या ये चाहते  हैं  अलग होना
अपनी उस  डाली से।
जिसने दिया है
इन्हे  ये सौंदर्य।

एक सुंदर   फूल
जिसे गुमान था
 अपने सौंदर्य पर
चाहता था स्पर्श पाना
रति सी किसी    सुंदरी का
ताकि मिलन हो
सौंदर्य से सौंदर्य का।

दुर्भाग्य उस पुष्प का
उस दिन प्रातः  ही
तोड़कर ले गये उसे
एक भ्रष्ट  नेता की
अर्थी पर चढ़ाने के लिये।
उसकी चाह और  ख्वाब,
वो सौंदर्य भी
उस अर्थी के साथ
राख हो गये मिनटों में।

शनिवार, नवंबर 29, 2014

मौत...

मैंने देखा है
 साक्षात  मौत को
मेरे साथ वर्षों तक
रही भी है   वो
पर पहचाना नहीं
मैंने उसको।

मन भावक होता है
सौंदर्य मौत का
वाणी भी मधुर होती है
कोकिला  सी
अनुपम होता है
उसका आकर्षण
इसी लिये हर आदमी
किसी को भी बिना बतलाए
उसका हो जाता है।

मंगलवार, नवंबर 25, 2014

प्रकृति की तरह...

मुझे लगता है
अब पंछियों की चहचाहट भी
कम हो रही है
...मानवीय  संवेदना की तरह...

अब तो बसंत में भी
मुर्झा कर   गुल
बिखर रहे हैं इधर उधर
...हमारे सपनों की तरह...

अब तो पिंजड़े में बंद
पंछियों को भी
स्विकार है बंधन में रहना
....हमारे बच्चों की तरह...

नहीं सुनाई देती है अब
कहानियों में परियां
उन्हे भी मार दिया होगा
...अजन्मी बेटियों की तरह...

कहीं 21वी सदी में
हमारा अस्तित्व भी
खतरे में तो नहीं है
प्रकृति की तरह...
...

सोमवार, नवंबर 24, 2014

...जीने के लिये तुम्हारे शब्द ही काफी हैं...

    उस दिन जब
मेरा वहां अंतिम दिन था
मुझसे कहा था तुमने
लबों की इस प्यारी मुस्कान को
....कभी मिटने न देना...

आशीषो भरा
आप का कहा हर शब्द
याद रहेगा
जीवन भर मुझे
...हालात भी न छीन सकेंगे  मुझसे...

पर वो मुस्कान
अब लबों पर नहीं है
जो बहुत पहले
भेंट चढ़ गयी हालात की
...जीने के लिये तुम्हारे शब्द ही काफी हैं...

शनिवार, नवंबर 22, 2014

देश की इस धुंधली तसवीर को।



मैंने अपना मत
दिया था जिसे,
मतगणना में
उसे शिकस्त मिली।

न क्षेत्र देखा
न  जाती
न हवा की तरफ
अपना मत बदला।

दल को मैं
महत्व नहीं देता,
आशवासन,  भाषण
बहुत सुन चुका।

देखा था मैंने
व्यक्तित्व उसका
वो बदल सकता था
देश की इस धुंधली तसवीर को।

मंगलवार, नवंबर 18, 2014

हम कहां व्यस्त हैं?


मैं सोचता हूं कि
हमारा अधिकांश काम
आज  होता है मशीनों से
फिर भी हम
व्यस्त हो गये
मशीनों  से भी अधिक।

आज हमारे पास
किसी के लिये ही
यहां तक की खुद के लिये भी
वक्त नहीं है।

बिलकुल भी संदेह नहीं
मशीनें हम से अधिक
और अति शिघ्र काम करती है।
फिर सोचिये जरा
 हम कहां व्यस्त हैं?

रविवार, नवंबर 09, 2014

ये क्रांति लाना चाहता हूं...

तुम दे दो अपने शब्द मुझे,
मैं गीत बनाना चाहता हूं,
सोए हैं जो निदरा में,
उन्हे जगाना चाहता हूं...

नहीं मिलती, मजदूर को मजदूरी,
कर रहा है किसान आत्महत्या,
गांव कली के  हर बच्चे को,
स्कूल भिजवाना चाहता हूं...

प्रताड़ित हो रही   है औरत घर में,
लड़कियों के लिये   पग-पग पे खतरा,
गर्भ में पल रही बेटियों का,
जीवन बचाना चाहता हूं...

मृत हो गया है यौवन आज,
नशे से अनेकों होनहारों का,
नशे के सभी   गिरोह को,
फांसी पे चढ़ाना चाहता हूं....

शोषण न हो किसी का,
सभी को न्याय मिले,
 अंजान न हो   अधिकारों से कोई,
ये क्रांति लाना चाहता हूं...

शनिवार, नवंबर 08, 2014

दिवार...

ये दिवार
जो सहारा देती रही
हर उस आदमी को
जिसे आवश्यक्ता थी
इसके सहारे की...
आज ये दिवार
 गिरने वाली है,
जिसे सहारा देने को
कोई भी तैयार नहीं है...

इसके पत्थर भी,
जिन्हें छुपा रखा था,
प्रेम से अपने आगोश में
भी अलग होना चाहते हैं...
 

शुक्रवार, नवंबर 07, 2014

बापू...

बापू
 मैंने सुना है
किताबों में भी पढ़ा है
तुम भारत के सब से
निर्धन आदमी की तरह
जीवन जीते थे।


मैं ये भी जानता हूं
तुम अपना  हर  काम
स्वयं करते थे।
तुम तो
पहनने के लिये कपड़ा भी
अपने हाथों से बुना करते थे।
तुम्हारा चरित्र तुम्हारी लिखी
किताबों के दर्पण में
देखा है मैंने।

इस लिये आज
मैं महसूस कर सकता हूं कि
तुम्हारी आत्मा भी
आहत होगी
जब हर नेता की
प्रतिमाएं बनाने के लिये
हो रहा है खर्च
वो पैसा जिससे
देश के कयी जनों को
रोटी,
फुटपातियों को
घर,
अभागों को
शिक्षा,
मिल सकती थी।

शनिवार, अक्टूबर 25, 2014

आवारा न कहें...

हर उत्सव, त्योहारों पर,
होती थी मेरी पूजा,
हर पूजा, यज्ञ   के भोग का,
प्रथम अंश  खिलाते थे मुझे।
33 क्रोड़  देव बसते हैं,
होता है जहां मेरा वास,
भूत पिसाच भी नहीं आते वहां
जहां  मििलता है  मुझे मान।
बस में था  तब तक मैंने,
जीवन भर अपना दूध पिलाया।
पर आज मैं बूढ़ी हूं
 दूध देना मेरे बस में नहीं।
तुम्हारे घर को सदा ही
मैंने अपना घर समझा,
 सदा ही, तुम्हारे घर में
 धन भैवभ खुशहाली लाई,
सुख में तुम्हारे साथ रही,
दुख में भी बहुत रोई।
आज मैं बूढ़ी हूं,
केवल  घास फूस तो खाती हूं,
कल लगता था मेरा गोवर भी पावन,
आज  बोझ मैं  ही लगती हूं।
जब आज    मुझे घर से निकाला,
रोई मैं भी मां की तरह,
इससे तुम्हारा  कहीं अहित न हो,
मांगती हूं ईश्वर से ये मन्नत बार बार।
मैं दूध का कर्ज नहीं मांग रही,
न ही  चाहिये मुझे तुमहारे हिस्से की कोई चीज।
तुम मेरे लिये बस इतना करो,
मुझे भय है कहीं लोग,
 कल मुझे भी
 आवारा न कहें...

शुक्रवार, अक्टूबर 24, 2014

नहीं चाहते थे दीप बुझना....

नहीं चाहते थे दीप बुझना,
चाहते थे प्रकाश फैलाना,
भाता है दीपों को,
बस केवल जगमगाना...
कुछ बुझाए हवाओं ने,
कुछ में तेल कम था,
कुछ जलते रहे भोर तक,
था लक्ष्य थिमिर को  मिटाना...
बुझते हुए दीपों ने,
कहा बस हम से ये,
जब जब भी अंधकार हो,
केवल हमे ही जलाना...

बुधवार, अक्टूबर 22, 2014

दिवाली सभी मनाते हैं...


[आप सब को पावन दिवाली की शुभकामनाएं...]
दुख अनेक हों फिर भी देखो,
दिवाली सभी मनाते हैं...
प्रथम गणेश की वंदना करके,
मां लक्ष्मी  को बुलाते हैं...

सब शुभ हो, मंगलमयी हो,
घर घर में समृधि आये,
उमंग, उल्लास, उत्कर्ष हो,
सभी यही चाहते हैं...

घर बाहर हर तऱप,
करते हैं दीपों   से प्रकाश,
जिन घरों में आज भी अंधकार है,
हम उन्हे भूल जाते हैं...

केवल मिट्टी  के दीप जलाएं,
लड़ियों से न ढौंग रचाएं,
गरीब  की खुशहाली  हैं   इनमे,
वो निज हाथों से इन्हे बनाते हैं...

 इस दिवाली पर सुख समृधि,
जन जन को, घर घर में देना,
 पर पहले मां उनके पास  जाना,
जो सड़कों पर रैन बिताते हैं...

सोमवार, अक्टूबर 20, 2014

तो हम कह सकेंगे कि नशा जहर है...

कौन कहता है
नशा जहर है,
जहर मारता है केवल  एक बार,
नशे से मरते हैं बार बार...

जहर  को पीकर,
मरते हैं केवल खुद,
नशा लेने वाला,
मारता हैं औरों को भी...

जहर पीना तो शायद,
किसी की मजबूरी भी  हो सकती है,
पर नशा करना तो,
केवल आदत है...

किसी का प्रिय  मित्र
 कभी भी जहर पीने को नहीं देता,
पर खुशी खुशी से,
नशा करने को कह सकता है...

हमारी अपनी नादानी देखो,
 हम जहर  को तो  बच्चों से दूर रख देते हैं,
  पर सिगरेट या शराब को
टेबल पर सजाते हैं...

जहर की तरह अगर हम और सरकार,
        इन नशिले पदार्थों को बिकने से रोकें,
बच्चों को ये देखने को भी न मिलें,
तो बचा सकते हैं हम  आने वाले कल को...

जब जहर की तरह नशे से भी,
भयभीत होगा हमारा समाज,
नशे को भी आत्महत्या माना जाएगा,
तो हम कह सकेंगे  कि  नशा जहर है...

शनिवार, अक्टूबर 18, 2014

ख्वाब देखने से डरता है...

हर एक आदमी
चाहे  छोटा हो या बड़ा,
 अमीर हो या गरीब,
ख्वाब तो देख सकता है...

ख्वाब देखने के लिये,
न कहीं जाना पड़ता है,
न कुछ देना पड़ता है,
न किसी के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है...

न रिशवत देनी पड़ती है,
न रूपये पैसे की जरूरत होती है,
डिगरी भी हो या न हो,
ख्वाब तो देखे जा सकते हैं...


पर ख्वाब पूरा करने के लिये,
ये सब कुछ करना पड़ता है,
फिर भी पता नहीं,
ख्वाब पूरा  हों या न हो...

इसी लिये आज भी
भारत का युवक,
अनेकों डिगरियां होने पर भी,
 ख्वाब देखने से डरता है...

गुरुवार, अक्टूबर 16, 2014

आंसू भी हैं...

ठेके पर बिकने वाली,
हर बोतल में,
केवल शराब ही नहीं,
आंसू भी हैं...
उस औरत के आंसू,
जो दिन भर प्रिश्रम करके,
शाम को घर में आकर,
हिंसा का शिकार होती है...
उस बच्चे के आंसू,
जिस की फीस के पैसे,
स्कूल में नहीं,
ठेके पर दे आये....
उस मां के आंसू,
जिस की दवा के लिये,
उस के बेटे के पास,
पैसे न होने का बहाना है...
ये आंसू,
शराब से भी अधिक
खतरनाक हैं,
इन से बचके रहना...

शुक्रवार, अक्टूबर 10, 2014

तुम तो खुद भी औरत हो


आयी थी मैंजब  इस घर में,
कहां था मैंने तुम को मां,
तुमने भी बड़े प्रेम से,
मुझे बेटी कहकर पुकारा था,
आज तुम्ही कह रही हो,
क्या दिया तुम्हे,  क्या लाया।
समझो मेरे मन के दर्द को।
तुम तो खुद भी  औरत हो,

मेरी शिक्षा की खातिर,
पिता ने दिन रात एक किये हैं,
मेरे विवाह की खातिर,
उन्होंने कयी कर्ज लिये हैं,
कहां से देंगे वो इतना दहेज,
ये सुन, मां मर जाएगी,
मां उन्हे  भी  जीने दो,
तुम तो खुद भी  औरत हो,

7 फेरे लेकर मैं,
आयी हूं  इस घर में,
अर्थी मेरी जाएगी,
केवल अब  इस घर से।
रूप रंग मेरे गुण देखो,
आयेगी लक्ष्मी,  तुम्हारे घर चलकर,
 मुझे स्नेह,  संमान दो,
तुम तो खुद भी  औरत हो,

सोमवार, अक्टूबर 06, 2014

हमे है पथ बनाने की आदत...

हमे हैं धोखा खाने की आदत,
अपने गमों को छुपाने की आदत,
पथरीला  है ये  रास्ता,
 हमे वहीं है जाने की आदत...

मांगा सूरज से प्रकाश,
पर सूरज ने दी तपश,
होने वाली  है अब शाम,
न है दीपक जलाने की आदत...

कहती है अक्सर मां,
मैंने तुमको दिया सब कुछ,
भाग्य तो तुम्हारा अपना है,
उन्हे मंदिर जाने की आदत...

मंजिल मिले या  न मिले,
चलना है बस  केवल हमे,
काम है किसी का शूल बिछाना,
हमे है पथ बनाने की आदत...

शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2014

ये है दशहरे का संदेश...


जीत हुई श्री राम की,
साथ था उनके धर्म,
छल, कपट, और   अत्याचार
थे रावण के कर्म।
धन वैभव और नारी,
थे रावण के पाष,
क्रोध,  लोभ, अहंकार से,
होता है केवल  विनाश,
कैसे जीत होती रावण की,
जब घर में ही था क्लेश,
सत्य की जीत होती है सदा,
ये है दशहरे का संदेश...
[आप सब को इस महान पर्व की शुभकामनाएं...]


सोमवार, सितंबर 29, 2014

बोझ बैग का उठाना है मुशकिल,

बोझ बैग का उठाना है  मुशकिल,
करेंगे कैसे ये पढ़ाई,
खेल के लिये वक्त  नहीं है,
चेहरे पे है उदासी छाई...

पग-पग पे स्कूल  खुले हैं,
फिर घरों  में बच्चे क्यों?
सरकार की दूरदर्शी  योजनाएं,
सेवाएं क्यों  न काम आयी...

अभी बोलना भी न सीखा,
कैसे पढ़ेगा वो किताब,
बनाना चाहते हैं बच्चों को मशीन,
जैसे मानव ने है    मशीन बनाई...

दिनभर स्कूल, शाम को ट्यूशन,
अब हमेशा ही   है टैस्ट की चिंता,
प्रथम आना है कक्षा में,
मां बाप ने ये रट है  लगाई...

वो शिक्षा क्या, जिससे बचपन मुर्झाए,
खेल खेल में बच्चों को पढ़ाएं,
प्रकृति से न इन्हे दूर ले जाएं,
वेदों में  ये बात समझाई...

गुरुवार, सितंबर 25, 2014

हे ईश्वर...

हे ईश्वर,
तुम्हारे मंदिर में,
आते हैं वो,
जिन के पास
होता है सब कुछ,
और पाने की इच्छा लिये
तुम्हे प्रसन्न करने के लिये,
चढ़ाते हैं चढ़ावा।
और ये  सोचकर
मन ही मन में
प्रसन्न  होते हैं,
 कि तुम प्रसन्न हो गये हो...

तुम्हारे मंदिर के बाहर,
तुम्हारे भक्तों के सामने,
एक के बाद दूसरा
दोनों हाथ फैलाता हुआ
अपनी विवशता बताता हुआ,
नजर आता है।
ये देखकर सोचता हूं,
वो तुम से क्यों नहीं मांगता?
हरएक के आगे  क्यों गिड़गिड़ाता है?
क्या तुम भी उसकी नहीं सुनते,
वो हर आने जाने वाले से,
मांगता है तुम्हारे नाम पर...

मंगलवार, सितंबर 23, 2014

कैसे चलते साथ तुम्हारे...

कैसे चलते  साथ तुम्हारे,
जब पग पग पे दिये धोखे तुमने,
कभी विवादों की बिजलियां गिराई,
कभी पथ में शूल बिछाए तुमने...

खुशनुमा थी जिंदगी,
असंख्य अर्मान थे,
सरल  भावुक हृदय को,
जलाकर राख बनाया तुमने...

पहचान न सका मैं तुम को,
तुम तराशा हुआ पत्थर हो,
चलते चलते मुझे  पथ में
बार बार गिराया तुमने...

राह में पड़े  पत्थर से पूछा
तुम्हे पत्थर बनाया किसने,
दशा उसकी देख मैं रो पड़ा,
उसे भी पत्थर बनाया तुमने...

इतराओ न अपनी जीत पर,
जो मिली है विश्वासघात से,
जो जो मैंने खोया है,
वोही है पाया तुमने...


शनिवार, सितंबर 20, 2014

प्राजय...

हम अक्सर जीवन में,
जीत के जश्न    को
शिघ्र भूल जाते हैं...

जीवन में मिली प्राजय को,
वर्षों तक याद करके,
आंसू बहाते हैं...

पर प्राजित होने की पीड़ा,
समझ सकता है वोही,
जो खुद प्राजित हुआ हो...

अगर जीतने वाला,
छल या विश्वासघात से जीता हो
तो वो जीत नहीं है...

 पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...

शुक्रवार, सितंबर 19, 2014

किसने यहां क्याहै  पाया...

सांझ हुई तो घर आये पंछी,
नीड़ अपना, टूटा पाया।
रैन बिताई,  पेड़ो पर
भोर हुई तो नव नीड़ बनाया...
जो हुआ उसे भूल गये,
फिर हर पल अगला  हंस के बिताया।
यहां तो सब कुछ नशवर हैं,
किसने यहां क्याहै  पाया...
 

गुरुवार, सितंबर 18, 2014

पीड़ित  है इस लिये     भारत मां...+


विदेशी हमने दूर भगाए,
अपने नियम, कानून बनाए,
अपनों को ही सत्ता दी,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

हिंदू मुस्लिम  के झगड़े सुलझाए,
भाषा जाति के विवाद  मिटाए,
दुश्मनों को भी हमने  मात दी,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

तुम मुझे वोट दो,
मैं तुम्हे खुशहाली दूंगा,
ये कहने वाले नेता बहुत हैं,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

विपक्षी चाहते कुर्सी पाना,
सत्ता पक्षियोम का है काम खाना,
पिस रही है बीच में  केवल   जंता,
पीड़ित  है इस लिये     भारत मां...

मंगलवार, सितंबर 16, 2014

ये शस्त्र उठाकर...

देखते हैं हम अक्सर,
हर शहर, हर गली  में,
होटल और ढाबोपर,
बर्तन धोते हुए बच्चे को,
 जानते हैं हम सब,
ये बाल शोषण है,
कानूनी अपराध है।
हम आवाज उठा सकते हैं,
छोड़ो हमे क्या,
ये सोच कर,
हम निकल पड़ते हैं,
अपनी राह पर...

कानून तो केवल,
शस्त्र हैं हमारे पास,
अन्याय से लड़ने का,
न्याय पाने का,
हम सब दोषी हैं,
ये समाज दोषी हैं,
जो शस्त्र होने पर भी,
उस का प्रयोग नहीं करते,
रुक सकता है शोषण,
मिल सकता है सब को न्याय,,
जीते जंग,
 ये शस्त्र उठाकर...

शनिवार, सितंबर 13, 2014

तब हिंदी ने ही जगाया हमे...


[आप सब को 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं...]
जब हम गुलाम थे,
 विश्व में गुम नाम थे,
मिट गयी थी हमारी पहचान,
 तब हिंदी ने ही  जगाया हमे...


हम कौन थे?
 कैसा था अदीत हमारा?
हम क्यों गुलाम हुए,
ये हिंदी ने ही  बताया हमे...

कहीं मंदिर मस्जिद का झगड़ा था,
कोई मांग रहे थे  खालीस्तान,
पानी पर  भी विवाद था,
हिंदी ने ही  एक बनाया हमे...

जिन से हमने आजादी पाई,
भाषा उनकी ही अपनाई,
सोचो  कैसे आजाद हैं हम?
ये अब तक समझ न आया हमे...

बुधवार, सितंबर 10, 2014

मेरे गांव का वो वृक्ष

मेरे गांव का वो वृक्ष,
जिसकी छाया में हम,
बैठकर घंटों,
बाते किया करते थे...
हम सोचा करते थे,
यहां आस पास कोई नहीं है,
पर वो खामोश वृक्ष,
सब कुछ सुना करता था...

इसी लिये वो वृक्ष भी,
हम दोनों के जुदा होने पर,
बुलाता है तुम्हे अक्सर,
मुझ से भी कुछ कहना चाहता है...
 

मंगलवार, सितंबर 09, 2014

आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

आता  हूं मैं मंदिर में,
निर्मल मन से,  धूप  जलाने, 
ईश्वर मेरी  सुनें, न सुनें,
आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

राम-नाम का एक शब्द,
महकाता है मेरी   रुह को,
शोर-गुल से दूर यहां,
आता हूं मैं  मन बहलाने...

कभी खोना, कभी पाना,
होता रहता है जीवन में,
आता हूं कभी नम आंखों से,     
 कभी खुशियों के पल बिताने...

अरज है बस एक मेरी,
बुलाते रहना इस दर पे,
आता रहूं,  पुष्प लेकर,
बस तुम्हारा आशीश पाने...

सोमवार, सितंबर 08, 2014

ये भ्रम नहीं, सत्य है...

होती है मृत्‍यु  जब  किसी की,
हम सब उदास होते हैं,
अब न आयेगा वो कभी,
जी भरके  हम  रोते हैं,
ये रोना-धोना चार दिन का,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...

मृत्‍यु   है सत्य, जीवन है नशवर,
बैठे हैं हम, ये सत्य भूलकर,
जो आया है, उसे जाना है,
ये तन,  खाक हो जाना है,
जाना है छोड़, यहीं सब,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...

जियोगे फूल बन, नाम होगा,
कांटों सा जीवन, बदनाम होगा,
जलती है शमा, देती है प्रकाश,
न रखती है, लेने वाले से आस,
महामानव, न मरता है कभी,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...









जिन्दा

शनिवार, सितंबर 06, 2014

ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

आओ आचार्य यहां बैठो,
कुछ पल बिताओ मेरे पास,
  मैं आहत पड़ा हूं रण भूमि में,
चंद क्षण ही हैं तुम्हारे पास,
मेरी शपत, पक्षपात तुम्हारा,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

तुमने तेज अर्जुन में देखा,
उस तेज को खूब निखारा तुमने,
दुर्योधन में अबगुण असंख्य देखे,
न दूर करने का तुमने प्रयत्न किया,
न बनाया तुमने उसे सुयोधन,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

सौ कौरव, पांच पांडव,
शिष्य थे केवल तुम्हारे,
हस्तिनापुर का सुनहरा कल हो,
भेजे थे तुम्हारे पास ये सारे,
लक्ष्य था तुम्हारा केवल द्रुपद ,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

अर्जुन को उचित थी  शस्त्र  शिक्षा,
दुर्योधन को देते शास्त्र ज्ञान,
बाधक शकुनि को दंड दिलाते,
समझते सब को एक समान।
तुम्हारी प्रतिज्ञा, तुम्हारा स्वार्थ,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

ये कैसी शिक्षा, ये  कैसा ज्ञान,
भाई  भाई के ले रहा है प्राण,
न धर्म,  आचरण, मर्यादाएं,
न रह गयी अब   भावनाएं,
जो देखा, हम केवल  मौन रहे,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,