पूत कपूत सुने है
पर न माता सुनी कुमाता
अगर ये कहावत
पशु-पक्षियों के लिये कही गयी होती
तो सत्य मान लेता...
क्योंकि मैंने
एक जानवर को
उसके अपने बच्चे से
बिछड़ने पर
रोते देखा है...
न देखा है कभी
किसी पक्षी को
त्यागते हुए
अपने बच्चों को
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...
ये बात वेद-पुर्ाणों में
कही गयी है
हो सकता है
किसी युग में
माता केवल सुमाता ही होती हो...
पर आज ये बालक
जिन्हे त्याग दिया
बेवजह ही इनकी माताओं ने
करण की तरह जानते हैं
अपनी माताओं का सत्य...
ये भले ही
प्रसन्न दिखते हों
पर जीवन का सबसे बड़ा अभाव
इन के उदास नेत्रों में
कभीकभार झलकता तो है ही है...
इन की माताएं
किसी उच्च कुल की महारानी बन
अपने अतीत का सत्य छुपाए
एक और महाभारत के बहाने
इनके शवों पर रोने के लिये तैयार बैठी हैं...
पर न माता सुनी कुमाता
अगर ये कहावत
पशु-पक्षियों के लिये कही गयी होती
तो सत्य मान लेता...
क्योंकि मैंने
एक जानवर को
उसके अपने बच्चे से
बिछड़ने पर
रोते देखा है...
न देखा है कभी
किसी पक्षी को
त्यागते हुए
अपने बच्चों को
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...
ये बात वेद-पुर्ाणों में
कही गयी है
हो सकता है
किसी युग में
माता केवल सुमाता ही होती हो...
पर आज ये बालक
जिन्हे त्याग दिया
बेवजह ही इनकी माताओं ने
करण की तरह जानते हैं
अपनी माताओं का सत्य...
ये भले ही
प्रसन्न दिखते हों
पर जीवन का सबसे बड़ा अभाव
इन के उदास नेत्रों में
कभीकभार झलकता तो है ही है...
इन की माताएं
किसी उच्च कुल की महारानी बन
अपने अतीत का सत्य छुपाए
एक और महाभारत के बहाने
इनके शवों पर रोने के लिये तैयार बैठी हैं...
संवेदनपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंजानवर भी हमारे तरह कुछ हद तक संवेदनशील होते हैं
संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएं