शनिवार, फ़रवरी 27, 2016

कल भी हमारे आज पर होगा....

हम आए थे जब
याद करो दुनियां में
ईश्वर की तरह निश्छल आए   थे
न जानते थे कुछ
न कुछ पाने की इच्छा थी...
ये भी जानते हैं हम
जब दुनियां से जाएंगे
कोई साथ न चलेगा
छूट जाएगा सब कुछ यहीं,
साथ न कुछ ले जा पाएंगे...
अतृप्त वासनाए थी पूर्व जन्म में
उन्हे पूरी करने आए जन्म लेकर
इस जन्म में भी अगर
 लोभ, स्वार्थ, उच्च आकांक्षाएं होगी 
पुनः आना पड़ेगा जन्म लेकर...
 ईश्वर ने दुःख और सुख
जन्म के साथ नहीं भेजे
जो कल किये कर्म हमने
उस पर   हमारा आज है
कल भी  हमारे आज पर  होगा....


बुधवार, फ़रवरी 17, 2016

दुर्योधन को चुने या युधिष्ठिर को।

हम  अब
 नागरिक नहीं
रोबोट हैं
वोट हैं
लोकतंत्र में

हम बिकते हैं
खरीदे जाते हैं
डराए जाते हैं
रहना पड़ता है खामोश
हर चुनाव के पहले।

चुनाव के बाद
हमे होना पड़ता है
हर जीतने वाले के साथ
हारने वाला तो
अपनों को ही  दोष देता है।

ऐसा भी नहीं कि
हमे कुछ नहीं मिला
कागजों के मत पत्र की जगह
 इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन 
और हजारों  एग्जिट पोल के नतीजे।
भले ही
हम बांटे जाते हैं
जाति और क्षेत्र के नाम पर
पर मतदान केंद्रों पर
हम एक हो जाते हैं।

अगर  हम सब  एक हैं
फिर बंटते क्यों हैं?
डरते क्यों हैं?
हमारे पास शक्ती है
दुर्योधन को चुने या युधिष्ठिर   को।

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2016

कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

 आती है  जब
बसंत पंचमी
झूमती है
समस्त प्रकृति
 हर्षित होता है
हर जीव
गाती है धरा
यौवन के गीत...
 विद्यालय की दिवारें भी
करती हैं प्रतीक्षा
सोचती हैं
होगा उतसव
मां सरस्वती के
जन्मदिवस  पर
पूजा तक भी नहीं होती
बस  वेलेन्टाइन डे की चर्चा...
मां शारदे 
की पूजा से
आती है विद्या
विद्या से विनम्रता,
विनम्रता से पात्रता,    
 पात्रता से धन,
धन से खुशहाली।... 
हम शिक्षित हैं
धन भी हैं
अधिक से ज्यादा
पर संतोष नहीं है।
हम भूल चुके हैं
शिक्षा की देवी को
इसी लिये आज
कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2016

जो थोड़े में आनंद लेता है...

न खुश हैं
वो
जिन के पास
पैसा बेशुमार हैं।
सोने के लिये
मखमल के बिसतर है
पर क्या करे
नींद नहीं आती।
भूख नहीं लगती
देखो उन्हे
जिनका एक वक्त का  खाना ही
हजार जनों  की रोटी से महंगा है...
क्योंकि वो
भाग  रहे हैं
पैसे के पीछे
पैसा फिर भी कम लगता है।
वो और तेज
भागते हैं
जब   नींद आना चाहती है
या  खाने का वक्त होता है।
भाग्यशाली वो नहीं
जिसके पास सब कुछ है,
नसीब उसका है
जो थोड़े में आनंद लेता है...

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2016

पथ और मंजिल।

मेरा हर कदम
बढ़ रहा है
यूं तो
मंजिल की ओर ही।
पर मुझे
मंजिल नहीं
प्रीय तो
पथ ही है।
आज मेरे पास
केवल पथ है
मंजिल तो
कोसों दूर है।
मंजिल तो
मिले न मिले
 पथ तो
मेरे पास है।
जब मिला मुझे
ये पथ
चाह हुई तभी
मंजिल पाने की।

गुरुवार, फ़रवरी 04, 2016

अगर चलते रहे तो बहुत मिलेंगे

थका नहीं
न पथ भूला
ख्वाबों के टूटने का
गम भी नहीं।
साथ भी हैं
कई चलने वाले
जो छोड़ गये
उनसे गिला भी  नहीं।
ठहरा हूं जब से
हो गया अकेला
सब चलते रहे
कोई रुका भी नहीं
अगर चलते रहे
तो बहुत मिलेंगे
अगर ठहर गये
रहेगी  रुह भी नहीं।