tag:blogger.com,1999:blog-88751304053696194732024-03-27T13:37:52.225+07:00मन का मंथन [man ka manthan] मैं अकेला हूँ , लेकिन फिर भी मैं हूँ.मैं सबकुछ नहीं कर सकता , लेकिन मैं कुछ तो कर सकता हूँ, और सिर्फ इसलिए कि मैं सब कुछ नहीं कर सकता , मैं
वो करने से पीछे नहीं हटूंगा जो मैं कर सकता हूँ.-हेलेन केलर
<blockquote>यहां प्रकाशित रचनाएं मेरी अपनी हैं।
ये सभी प्रकार की साहित्य विधाओं में प्रयुक्त शिल्प, छंद, अलंकार और शैली आदि से बिलकुल मुक्त है। ये केवल मेरे मन का मंथन है।</blockquote>
kuldeep thakurhttp://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.comBlogger245125tag:blogger.com,1999:blog-8875130405369619473.post-20386507701778138782020-05-09T20:31:00.002+07:002020-05-09T20:33:02.914+07:00मातृ दिवस--विशेष:शायद ये कलियुग ही है,हम मात्री दिवस मनाते हैं,<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />मां जब तक धरा पर रहती है,<br />सुत की खातिर दुख सहती है,<br />खुद भूखी रह, उसे खिलाती,<br />कभी ईशवर, गुरु बन जाती।<br />चिंता करती सुत की हर पल,<br />देती आशीश, सुनहरा हो कल।<br />सबसे बड़ा मंदिर है घर,<br />मां ही है, वहां पर ईश्वर,<br />नहीं देखा ईश्वर को कभी,<br />करते हैं पूजा उसकी फिर भी।<br />जड़ के सूख जाने पर,<br /> हर वृक्ष सूख जाता है,<br />निज फूलों को मुरझाते देख,<br />केवल मां वृक्ष ही मुरझाता है।<br />शायद ये कलियुग ही है,<br />हम मात्री दिवस मनाते हैं,<br />मां की ममता को सीमित करके,<br />हम हर्षित हो जाते हैं।<br />नहीं चाहिये मां को दिवस,<br />मां देख के तुम्हे, खुश होजाती है,<br />रूखा सूखा जो भी दोगे,<br />दे आशीष तुम्हे, सो जाती है.।<br /></div>
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कुलदीप ठाकुर...
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सारा विश्व तो प्राजित हो गया,<br />अब तुम ही अपनी शक्ती दिखाओ,<br />हे ज्ञान दीप हे श्रेष्ठ भारत!<br /> इस करोना पर भी विजय पाओ।<br />हमारे पास है अलौकिक ज्ञान,<br />उपनिशद और वेद पुराण,<br />संजीवनी की खोज करके तुम,<br />जग में सब का जीवन बचाओ।<br />घर पर बैठ गया है आदमी,<br /> हो गया बेबस, लाचार आदमी,<br />मिट गयी है धरा की रौनक,<br />फिर धरा पर खुशहाली लाओ।<br />कांप रही है विश्व शक्तियां,<br />चूर हो गया अहंकार उनका,<br />हम जो कल थे, आज भी हैं,<br />दुनियां को ये ऐहसास दिलाओ।<br />जब-जब धरा पर संकट आया,<br />भारत ने ही विश्व बचाया,<br />तुम्हारी ओर ही देख रहा है जग,<br />धरा को करोना मुक्त बनाओ।<br /></div>
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ये वर्ष जा रहा है,<br />संदेश ये सुना रहा है,<br />नया एक दिन पुराना होता,<br />जो आया है, उसे है जाना होता।<br />वक्त कितनी जल्दि बीत गया,<br />हो गया पुराना, जो था नया,<br />ये नया वर्ष भी बीत जाएगा,<br />फिर एक नया वर्ष आयेगा।<br />बीता वक्त न वापिस आता,<br />समय को न कोई रोक पाता।<br />आलस्य, सुसती से लड़ो,<br />आज के काम अभी करो....<br />आया था जब ये वर्ष,<br />तन-मन में था तब भी हर्ष,<br />क्या-क्या खुद से वादे किये थे,<br />अनेकों तुमने संकल्प लिये थे।<br />कुछ दिनों में सब कुछ भूल गये थे,<br />पुराने रंग में रंग रहे थे।<br />यूं ही जीवन बीत रहा है,<br />लक्ष्य पीछे छूट रहा है।<br />युवा हो गयी ये सदी,<br />सो कर मत रहो तुम अभी।<br />नव-वर्ष तुम्हे जगा रही है,<br />असंख्य अवसर, दिखा रही है.....<br /><br /></div>
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लाखों का सामान खरीदा,<br />हर बार की तरह दिवाली पर,<br />नहीं खरीदा एक भी दीपक,<br />दीपक बिना दिवाली कैसी.....<br /><br />जगमग है घर आंगन,<br />रंगीन लड़ियों-लाइटों से,<br />दीपक नहीं जलाओगे तो,<br />दीपक बिना दिवाली कैसी.....<br /><br />लड़ियां-लाइटे खरीद कर,<br /> जगमग हुआ तुम्हारा ही घर,<br /> दीपों से मिटता दो घरों का अंधेरा,<br />दीपक बिना दिवाली कैसी.....<br /><br />जब जलता है दीपक पूजा में भी,<br />फिर मां लक्ष्मी के लिये ये दिखावा क्यों,<br /> श्री राम भी भाव के भूखें हैं,<br />दीपक बिना दिवाली कैसी.....<br /><br />दिवाली पर केवल दीप जलाएं,<br />दिये बनाने वालों को भी हंसाएं,<br />उनके घरों में भी दिवाली मनेगी,<br />दीपक बिना दिवाली कैसी.....<br /><br /><br /></div>
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<br />दुनिया भर की दृष्टिबाधित आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा हमारे देश भारत में निवास करता है | दृष्टिबाधित आबादी की आँखे है उनके हाथो से सटी रहने वाली वह सफ़ेद छड़ी<br />जो उन्हे पथ दिखाती है। हर साल 15 अक्टूबर का दिन इस दृष्टिबाधित आबादी के लिए सबसे अहम दिन होता है सफेद छड़ी न केवल दृष्टिबाधित<br />लोगों के स्वतंत्रता का प्रतीक है बल्कि समाज की उनके प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को भी प्रतिबिंबित करती है।<br />इस दिवस पर सफेद छड़ी पर ये कविता मेरी ओर से.....<br />क्योंकि किसी भी वस्तु का महत्व वोही जानता है, जो उसका उपयोग करता है।<br /><br /> <br />जो साथ उनके सदा रहती,<br />ये उनका स्वाभिमान है..,<br />ये केवल सफेद छड़ी नहीं,<br />दृष्टिहीनों की पहचान है....<br />पथ में क्या है,, उन्हे बताती,<br />आत्म निरभरता का मंत्र सिखाती,<br />चलते हुए उनह्े सुरक्षा देती,<br />ये दृष्टिहीन है, चलने वालों को बताती।<br />साथ न कोई सदा चलेगा,<br />अकेले चलने में ही शान है,<br />ये केवल सफेद छड़ी नहीं,<br />दृष्टिहीनों की पहचान है....<br />दृष्टिहीनों की दृष्टि बन,<br />हर ठोकर से उन्हे बचाती है,<br /> स्वतंत्रता की प्रतीक है ये,<br />तिमिर में भी पथ दिखाती है।<br />दृष्टिहीनता अभिशाप नहीं, बाधा है,<br />उनका भी अपना आत्म-सन्मान है,<br />ये केवल सफेद छड़ी नहीं,<br />दृष्टिहीनों की पहचान है....<br /><br />ये भी सामान्य से समार्ट बन गयी है,<br />बिना इसके दृष्टिहीन की सुरक्षा नहीं है,<br />हर दृष्टिहीन इसका उपयोग करे,<br />स्फेद छड़ी दिवस का संदेश यही है।<br />निडर होकर चलते रहो,<br />चलता है जो, उसका ही सन्मान है,<br />ये केवल सफेद छड़ी नहीं,<br />दृष्टिहीनों की पहचान है....<br />जिसने महत्व तुम्हे दिया,<br />हर पथ उसने पार किया,<br />वो आगे ही बढ़ता रहा,<br />लक्ष्य अंत में पा ही लिया।<br />जो जीवन में संघर्श करता है,<br />उसे ही मिलता मकाम है,<br />ये केवल सफेद छड़ी नहीं,<br />दृष्टिहीनों की पहचान है....<br /><br /></div>
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जब टूटता हैं,<br /> पती पत्नी का पावन रिशता,<br />तब रोती है मेंहदी,<br />क्योंकि उसने ही,<br />इनके जीवन में<br /> प्रेम के रंग भरे थे......<br />मेंहदी चाहती है, <br />सब में प्यार बढ़े,<br />केवल प्रेम हो,<br />कोई आपस में न लड़े,<br />किसी के घर न टूटे,<br />किसी से बच्चे न छूटें.....<br /> मेंहदी कहती है, <br />अब विवाह केवल <br />पावन बंधन नहीं,<br />समझौता बन कर रह गया है।<br />कृतरिमता के इस दौर में,<br />मेरा मोल भी घटने लगा है.....<br /></div>
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केवल 2018 की जगह अब,<br />2019 हुआ है,<br />बताओ, क्या कुछ और बदलेगा?<br />इस नव-वर्ष में.....<br />जहां सुरक्षित नहीं, 4 वर्ष की बेटी भी <br />सुनाई देती हैं अभी भी, चीखें निरभया, गुडिया की,<br />क्या बेटियां भय मुक्त निकल पाएगी बाहर?<br />इस नव-वर्ष में.....<br /><br />क्या नव-विवाहिताएं घरों में सुरक्षित रह पाएंगी?<br />क्या दहेज के लोभियों की भूख मिट जाएगी?<br />क्या एक मर्ित बेटी के पिता को न्याय मिलेगा?<br />इस नव-वर्ष में.....<br /><br />जो जन्म लेना चाहती हैं,<br />पर गर्भ में ही मार दी जाती हैं।<br />क्या वो बेटियां सुरक्षित रह पाएगी?<br />इस नव-वर्ष में.....<br />जो कुपोषित और बिमार हैं,<br />निर्धनता के कारण लाचार हैं।<br />क्या मिल पाएगा उन्हे भर पेट खाना?<br />इस नव-वर्ष में.....<br /><br />न बाल-विवाह होने देंगे,<br />न बालकों को बोझ ढोने देंगे,<br />आओ सब का जीवन महकाएं.<br />इस नव-वर्ष में.....<br /></div>
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मेरे पास<br />नहीं थी आंखे,<br />पर उन दोनों के पास ही<br /> आंखे थी......<br />एक की आंखों ने<br />मेरी बुझी हुई<br /> आंखे देखी<br />...छोड़ दिया मझधार में मुझे.....<br />एक की आंखों ने<br />बुझी हुई आंखों में भी <br />अपने लिये प्यार देखा,<br />.... कहा, मेरी आंखे हैं तुम्हारे लिये.....<br />मेरी बुझी हुई आंखों ने भी<br />इनकी आंखों में<br />उनकी आंखों की तरह<br />...कभी लोभ नहीं देखा.....<br />खुशनसीब हूं मैं<br />जो संसार को<br />अपनी आंखों से नहीं<br />...उसकी आंखों से देख रहा हूं......<br /></div>
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हे जन-नायक अटल जी,<br />तुम्हारी शकसियत अनुपम थी।<br />तुम स्तंभ बनकर खड़े रहे,<br />सत्य-पथ पर अड़े रहे,<br />भारत को विश्व-शक्ति बनाया,<br />पाक कोमुंह के बल गिराया।<br />निज संस्कृति पर अभिमान था,<br />धर्म-सभ्यता पर मान था।<br />तुम तो जन-जन के प्यारे थे,<br />मां भारती के आंख के तारे थे।<br />तुम नेताओं में शास्त्री से,<br />कवियों में मैथली शरण थे।<br />तुम भारत की पहचान हो,<br />कोटी-कोटी नमन तुम को.....<br />आजाद शत्रु, सभी मित्र,<br />बेदाग और आदर्श चरित्र।<br />न रुके कहीं, न झुके कभी,<br />राजनीति में जिये, बनकर रवी,<br />ओ भारत के अनुमोल-रतन,<br />राम राज्य आये, तुमने किये यतन।<br />नम है नैन, रतन चला गया,<br />सुना है, भाजपा का कमल चला गया।<br />ऐ मौत तु, इतनी मत इतरा,<br />वो मन से मरे, जी भर के जिया।<br />तु मारती है केवल, नशवर तन को,<br />नहीं मार सकती, अटल से जन को।<br />सुभाष गांधी की तरह तुम अमर हो,<br />कोटी-कोटी नमन तुम को.....<br /><br /><br /><br /><br /></div>
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<br />[मेरी इस कविता में एक शहीद की बेटी के भावों को प्रकट करने का प्रयास किया गया है....}<br />जब तुम पापा!<br />आये थे घर<br />तिरंगे में लिपटकर<br />तब मैं बहुत रोई थी....<br />शायद तब मैं<br />बहुत छोटी थी,<br />बताया गया था मुझे,<br />तुम मर चुके हो....<br />मुझे याद है पापा!<br />कहा था जाते हुए तुमने<br />मैं दिवाली पर आऊंगा,<br />तुम्हारे लिये बहुत से उपहार लेकर.....<br />तुम्हारी पुचकार से,<br />मैं हंस पड़ी थी उस दिन<br />क्या पता था मुझे,<br />नहीं आओगे लौटकर अब....<br />जब स्कूल में<br />बाते करते थे सब<br />अपने पापा के दुलार की<br />तब तुम्हारी याद रुलाती थी मुझे....<br />उमर बढ़ने के साथ साथ<br />सत्य जाना मैंने,<br />तुमने मुझे क्या दिया,<br />अब उसे पहचाना मैंने....<br />कौन कहता है,<br /> तुम मरे हो,<br />देखो-देखो तुम तो<br />महा-वीरों की कतार में खड़े हो.......<br />मुझे गर्व होता है,<br />जब मैं तुम्हारे नाम से पहले<br />श्री की जगह<br />शहीद लिखती हूं.......<br />तुमने तो पापा <br />निभा दिया अपना फर्ज<br />उतार दिया मां का कर्ज,<br />मां का सर झुकने न दिया.....<br />अब तो पापा!<br />जानते हैं सभी<br />पहचानते हैं मुझे भी<br />तुम्हारे नाम से....<br />ओ पापा!<br />मेरे पास जीने के लिये,<br />तुम्हारा नाम ही काफी है,<br />मत उदास होना कभी मेरे लिये......<br /></div>
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ये भीख मांग रहे बच्चे,<br />किस धर्म के हैं?<br />इनकी जात क्या है?<br />न हिंदू को इस से मतलब,<br />न मुस्लमान को.......<br />कारखानों या ढाबों पर,<br />काम कर रहे बच्चों से<br />नहीं पूछते उनका मजहब। <br />कोई नहीं पहचानता,<br />ये उनकी जात, मजहब के हैं....<br />जब एक बेटी का<br />जबरन बाल-विवाह होता है,<br />साथ देते हैं सब,<br />जात-मजहब के लोग,<br />नहीं करता कोई भी विरोध इसका.....<br />पर रेप या हत्या के बाद<br />पहचान लेते हैं सब<br />पिड़ित या निरजीव शव को<br />ये हमारे मजहब का था,<br />मारने वाले दूसरे मजहब के......<br />निरभया का नाम छुपाया गया,<br />गुड़िया का नाम भी दबाया गया,<br />देदेते आसिफा को भी कोई और नाम।<br />वो केवल मासूम बेटी थी,<br />क्यों बताया गया उसका मजहब क्या था....<br />काश हर मजहब के लोग,<br />अपने मजहब को समझ पाते,<br />न रेप होता, न हत्या।<br />यहां तो हर घटना को<br />राजनीति रंग में रंगा जाता है.....<br /><br /></div>
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दो दिन पहले यानी 9 अप्रैल 2018 शाम 3:15 बजे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर में मलकवाल के निकट चुवाड़ी मार्ग पर भयानक हादसा हुआ बजीर राम सिंह पठानिया मेमोरियल स्कूल की बस करीब 200 फीट गहरी खाई में जा गिरी। हादसे में<br />27 बच्चों समेत 30 लोगों की मौत हो गई है जबकि कई बच्चे घायल भी हुए हैं। <br />इस घटना से मन बहुत आहत है......<br /><br />तेरी धरा पर, ओ मां भवानी,<br />हर नेत्र में है, क्यों आज पानी,<br />तुझसे मांगे थे फूल जो,<br />निष प्राण पड़े हैं, आज धरा पे वो,<br />टूट गयी एक मां की आस,<br />खंडित हो गया पिता का विश्वास।<br />न नजर लगे, तिलक लगाया था,<br />चूम के माथा, बस में बिठाया था।<br />भाती-भांती के पकवान बनाए,<br />प्रतीक्षा में थी मां, बच्चे घर आये।<br />तभी आई खबर, वो नहीं आएंगे,<br />रो पड़े खिलौने, हम कहां जाएंगे। <br />अमिट उदासी छा गयी मन में,<br />छा गया मातम घर आंगन में।<br />पल भर में ये क्या हो गया,<br />जो पास था, सब कुछ खो गया। <br />हुआ था भ्रम, वसंत आया है,<br />ये कैसा वसंत, जो रोदन लाया है।<br /><br /></div>
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एक प्रश्न<br />वो बेटी<br />ईश्वर से पूछती है,<br />क्यों भेजा गया<br />मुझे उस गर्भ में,<br />जहां मेरी नहीं<br />बेटे की चाह थी....<br />एक प्रश्न<br />वो बेटी<br /> उस मां से पूछती है,<br />"तुम तो मां हो<br />क्या तुम भी<br />आज न बचाओगी मुझे<br />इन जालिमों से?....."<br />"एक प्रश्न<br />वो बेटी<br />उस पिता से पूछती है,<br />"क्यों बोझ मान लिया मुझे?<br />मेरे जन्म से पहले ही,<br />क्या किसी बेटी को देखा है,<br />बूढ़े माता-पिता को वृद्ध आश्रम में भेजते हुए?...."<br />एक प्रश्न<br />वो बेटी <br />उस चकितसक से पूछती है,<br />"तुम्हारा कर्म<br />जीवन बचाना है,<br />मुझे भी जीना है,<br />क्या आने दोगे मुझे दुनिया में?...."<br />एक प्रश्न<br />वो बेटी <br />इस समाज से पूछती है,<br />"कब तक होता रहेगा भेद-भाव,<br />बेटा और बेटी में?<br />अग्नी परीक्षा देकर भी<br />कब तक सीता को वनवास मिलता रहेगा?...."<br />इन प्रश्नों के<br />उत्तर की प्रतीक्षा में थी वो,<br />तभी सुनाई दिया उसे,<br />पैसों का लेन-देन,<br />उस जालिम ने जितने मांगे,<br />क्रूर पिता ने उतने ही दिये, <br />फिर तीखे औजारों से मिटा दिया उसे.....<br />ये प्रश्न<br />एक बेटी नहीं<br />हजारों बेटियां पूछती है,<br /> ईश्वर से, और समाज से,<br />माता-पिता और चकितसक से><br />नहीं मिलता उन्हे उत्तर,<br />और मार दी जाती है....<br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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मेरे बचपन के दिनों में,<br />जब होता था हिमपात,<br />जलाकर आती-रात तक आलाव,<br />बैठते थे सब एक साथ....<br />याद आती हैं सबसे अधिक<br />पूस-माघ की वो लंबी रातें,<br />दादा-दाती की कहानियां,<br />बजुरगों की कही सच्ची बातें....<br />अब तो बर्फ के दिनों में भी, <br />आलाव नहीं, आग जलती है,<br />जो कर गये स्थान रिक्त,<br />उनकी कमी खलती हैं....<br />बैठते तो हैं आज भी,<br />आग जलाकर एक साथ,<br />सबके हाथ में मोबाइल होता है,<br />नहीं करते आपस में बात....<br />न जलता है अब वो आलाव,<br />न वो मेल-मिलाप रहां,<br />न पहले सी बर्फ गिरती है,<br />अब पहले से लोग कहां....<br /></div>
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कुलदीप ठाकुर...
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13 पौष तदानुसार 26 दिसंबर 1705 को जब देश में मुगलों का शासन था और सरहिंद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के दो मासूम बेटों सात वर्ष के जोरावर सिंघ तथा पाँच वर्ष के फतेह सिंघ को दीवार में जिंदा चुनवाया गया था....<br />कहते हैं कि साहिबज़ादों को कचहरी में लाकर डराया धमकाया गया। उनसे कहा गया कि यदि वे इस्लाम अपना लें तो उनका कसूर माफ किया जा सकता है और उन्हें शहजादों जैसी<br />सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु साहिबज़ादे अपने निश्चय पर अटल रहे। उनकी दृढ़ता थी कि सिक्खी की शान केशों श्वासों के सँग निभानी हैं। उनकी दृढ़ता को<br />देखकर उन्हें किले की दीवार की नींव में चिनवाने की तैयारी आरम्भ कर दी गई किन्तु बच्चों को शहीद करने के लिए कोई जल्लाद तैयार न हुआ।<br />अकस्मात दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग अपने एक मुकद्दमें के सम्बन्ध में सरहिन्द आये। उन्होंने अपने मुकद्दमें में माफी का वायदा लेकर साहिबज़ादों<br />को शहीद करना मान लिया। बच्चों को उनके हवाले कर दिया गया। उन्होंने जोरावर सिंघ व फतेह सिंघ को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ<br />कर दी।<br />बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंघ के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंघ दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो<br />जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंघ छोटा हैं। दुनियाँ<br />में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंघ को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।<br />छोटे भाई फतेह सिंघ ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:<br />चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।।<br />इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।।<br />इन दोनों शहीदों को मेरा कोटी-कोटी नमन....<br /><br /><br /><br /><br />मैं पौष हूं, मैंने देखे हैं,<br />महाभारत से युद्ध भी होते हुए,<br />रक्त के सागर देखे हैं,<br />पर न देखा मुझे कभी रोते हुए....<br />रोता हूं मैं भी हरबार,<br /> याद आती है सरहिंद की दिवार,<br />जब दो भाइयों को इसमे चिनवाते देखा,<br />छोटे के लिये बड़े को रोते देखा....<br />गंगु रसोइया , सुच्चा नँद ,<br />ये दोनों धब्बे हैं हिंदू धर्म पर,<br />सबसे महान था वो पठान,<br />कहा नवाब से, इन पर दया कर....<br /><br />धन्य है दशम गुरु,<br />धन्य थे ये दोनों लाल,<br />प्राण दिये पर धर्म न छोड़ा,<br />शहादत की जलाई मशाल....<br />क्रिसमस और नव-वर्ष का,<br />हम खूब जश्न मना रहे हैं,<br />इनकी शहादत तक भूल गये,<br />सोचो हम कहां जा रहे हैं?....<br /><br /></div>
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कुलदीप ठाकुर...
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ओ जाते हुए वर्ष,<br />जब तु आया था,<br />जोष था, उमीदे थी,<br />सब ओर हर्ष छाया था....<br />मुझे भी प्रतीक्षा थी तेरी,<br />कई दिनों पहले से ही,<br />अभिनंदन मैंने भी किया था तुम्हारा,<br />उमीद में कुछ नये की....<br />पर तब मैं नहीं जानता था,<br />तु मेरे लिये नया कुछ भी नहीं लाया है,<br />जो तब मेरे पास था,<br />तु उसे मुझसे छीनने आया है....<br />हम पुराने से अच्छा<br />नये को मानते हैं,<br />नया क्या लेकर आयेगा, <br />हम नहीं जानते हैं....<br />जब भी कुछ नया होता है,<br />अच्छा होगा, हम मन को बहलाते हैं,<br />होनी तो होकर रहती है,<br />चंद पलों के लिये खुश हो जाते हैं.....<br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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नहीं करते कल्पना जिसकी,<br />जीवन में वो भी घट जाता है,<br />ये कैसे हुआ, क्यों हुआ,<br />आदमी सोचता रह जाता है....<br />नहीं जानता ये मनुज,<br />कल क्या होने वाला है,<br />वो तो अपने हिसाब से,<br />शुभ-शुभ सोचता जाता है.....<br />हमने अलिशान महल को,<br />खंडर होते देखा है,<br />हरे-भरे उपवन को भी,<br />बंजर होते देखा है....<br />होनी तो होकर रहती है,<br />मानव चाहे जो भी कर,<br />वक्त एक दिन बदलेगा,<br />रख भरोसा ईश्वर पर.....</div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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<br />
<br />
<br />
<iframe>ओ श्री राम,<br />
तुम्हे त्रेता में भी वनवास मिला<br />
इस कलियुग में भी।<br />
वो वनवास चौदह वर्ष के लिये था<br />
ये वनवास न जाने कितना लंबा होगा....</iframe><br />
<iframe>अगर तुम्हे वनवास न मिलता,<br />
अहिलया का उधार कैसे होता,<br />
मां शबरी की इच्छा अधूरी रह जाती,<br />
न सुगरीव को न्याय मिल पाता,<br />
असुरों का विनाश कौन करता....</iframe><br />
<iframe>जब मिलता है तुम्हे वनवास<br />
प्रसन्न होते हैं देवगण<br />
क्योंकि वे जानते हैं<br />
वनवास के दिनों में ही तुम,<br />
धरा को असुरों से मुक्त करते हो....</iframe><br />
<iframe>न शक्ति थी किसी में<br />
मंदिर का एक पत्थर भी हिला सके,<br />
धर्म की रक्षा के लिये ही<br />
फिर तुम्हे धाम त्यागना पड़ा होगा,<br />
ये देवों की इच्छा से हुआ होगा....</iframe><br />
<iframe>ये आतंकवादी दानव <br />
जालिम है असुरों से भी<br />
ये जेहादी बेवजह ही<br />
कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं,<br />
मुक्त कर दो धरा को इनसे...</iframe><br />
<iframe>कांप रही है धरा<br />
भयभीत हैं देवगण<br />
जेहादियों के आतंग से<br />
खतरे में है मानवता,<br />
अब श्री राम पर ही विश्वास है....</iframe><br />
<br />
<br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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मेरे भारत में सब के लिये रोटी हैं?<br />न जाने इन बच्चों को भोजन क्यों नहीं मिलता।<br />आंगनबाड़ी स्कूल में,<br />दोपहर का भोजन मिलता है,<br />डिपुओं में निशुल्क भाव में,<br />ससता राषण दिया जाता है,<br />हर गाड़ी के आते ही,<br />क्यों ये हाथ फैलाते हैं,<br />ये गाड़ी से फैंके झूठन से,<br />अपनी भूख मिटाते हैं....<br /><br />ये किस पिता के लाल हैं,<br />ये किस मां की संतान हैं,<br />जो हर रोज यहां आते हैं,<br />केवल झूठन ही खाते हैं।<br /> माता-पिता का करतव्य था,<br /> क्या केवल इन्हे जन्म देना?<br />पशु-पक्षी भी निज बच्चों के लिये,<br />भोजन खुद लाते हैं,<br />ये गाड़ी से फैंके झूठन से,<br />अपनी भूख मिटाते हैं....<br /><br />आओ हम बाल-दिवस मनाएं,<br />इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,<br />जिन माता-पिता ने इन्हे जन्म दिया,<br />रोटी देना भी उन्ही की जिमेवारी है,<br />जो पिता नशे में मस्त हैं,<br />वो दंड के अधिकारी हैं।<br />कुछ पिता नशे के लिये,<br />सब कुछ ही खा जाते हैं,<br />ये गाड़ी से फैंके झूठन से,<br />अपनी भूख मिटाते हैं....<br /><br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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हम भारत के मत दाता है....<br />हमारे पास मत देने का अधिकार<br />आज से नहीं त्रेता युग से है,<br />हमने तब भी<br />अपना मत दिया था <br />श्रीराम को राजा बनाने के लिये<br />"श्री राम हमारे राजा होंगे"<br />पर श्री राम को वनों में भेजा गया<br />हमने नहीं पूछा<br />तब भी राजा से<br />हमारे मत के अधिकार का क्या हुआ?<br /> हम भारत के मत दाता है....<br />हमारे पास मत देने का अधिकार<br />द्वापर में भी था<br />हमने सर्वमत से<br />युधिष्ठिर को राजा बनाया<br />पर शकुनी की एक चाल ने<br />द्युत खेल कर<br />पांचों पांडवों को वनवास भेज दिया।<br />हम महाभारत से युद्ध में<br />हाथी घोड़ों की तरह<br />मर सकते हैं,<br />पर राजा से<br />अपने मत के अधिकार के लिये<br />नहीं लड़ सकते।<br /> हम भारत के मत दाता है....<br />हैं तो हम बहुत भाग्यशाली<br />क्योंकि ये मत का अधिकार<br />आज भी हमारे पास हैं<br />शताबदियां बदल गयी<br />युग बदल गये<br />पर हम आज भी<br />नहीं बदले,<br />क्योंकि हम अपना मत देकर<br />आज भी नहीं पूछते<br />हमारे मत का क्या हुआ?<br /><br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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तुम बिन पिताजी<br />अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली<br />अपने हाठों से लाई मिठाई<br />खाने में वो आनंद नहीं आएगा....<br />पर इस दिवाली पर भी,<br />हम जलाएंगे दीपक<br />करेंगे प्रकाश,<br />तुम्हारे लिये....<br />हम जानते हैं <br />तुम्हे अपने घर में<br />फैला हुआ अंधकार<br />अच्छा नहीं लगेगा...<br />हम ये भी जानते हैं <br />तुम आओगे<br />किसी न किसी रूप में<br />हमारे साथ दिवाली मनाने....<br />न सजा पाएंगे घर को,<br />न बन सकेंगे वो पकवान<br />आहत मन से ही सही<br /> एक दीपक अवश्य जलाएंगे....<br /></div>
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कुलदीप ठाकुर...
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आज़ादी की 71वीं वर्षगाँठ पर<br />पूछता हूं मैं,<br />भ्रष्ट नेताओं से<br />बिके हुए अधिकारियों से,<br /> स्वतंत्रता दिवस पर<br />या गणतंत्रता दिवस पर<br />तुम तिरंगा क्यों लहराते हो?<br />...तुम क्या जानो तिरंगे का मोल...<br /><br /><br />एक वो थे,<br />जो आजादी के लिये मर-मिटे<br />एक ये हैं,<br />जो आजादी को मिटा रहे<br />नेताओं को चंदा मिल रहा,<br />और अधिकारियों को कमिशन<br />फिर राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाते हो?<br />...तुम क्या जानों इन पर्वों का मोल....<br />कल हम अंग्रेजों के गुलाम थे,<br />और आज भ्रष्टाचार के<br />कल जयचंद के कारण गुलाम हुए,<br />आज भी कुछ लोग हैं उसी परिवार के,<br />जो रक्षकों पर पत्थर बरसा रहे,<br />चो वंदे मातरम न गा रहे,<br /> होने वाला है कृष्ण का अवतार अब,<br />...तुम क्या जानो श्री-कृष्ण कौन है....<br />देख लिया कौरवों को<br />हस्तिनापुर देकर भी,<br />हमारे बापू भिष्म ने<br />झेली पीड़ा विभाजन की।<br />अब न तुम्हारे पास भिष्म है<br />न द्रौण, न करण,<br />तुम्हारे पास भले ही आज भी शकुनी है,<br />....हमारी ओर से भी अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....<br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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<br />ओ गुड़िया!<br />तुम ने भी तो<br />हवस के उन दरिंदों से <br />अपनी रक्षा के लिये.<br />द्रौपदी की तरह<br />ईश्वर को ही<br />पुकारा होगा<br />पर तुम्हे बचाने <br />....ईश्वर भी नहीं आए....<br /><br />ओ गुड़िया!<br />तुम भी तो<br />उसी देश की बेटी थी<br />जहां बेटियों को<br /> देवी समझकर पूजा जाता है<br />जहां की संस्कृति में<br />कन्या ही दुर्गा का रूप है.<br />ओ मां चंडी!<br />क्या कलियुग में तुम ने भी <br />असुरों को दंड देना छोड़ दिया?<br />....ये जालिम तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....<br /><br /> ओ गुड़िया!<br />तुमने भी सपने देखें थे<br />झांसी की रानी, कल्पना चावला<br />और भी ऊंची उड़ान भरने के,<br />ऊंची उड़ान भरने से पहले ही<br /> तुम्हे नोच दिया<br />उन जालिम दरिंदों ने.<br />न तुम रो सकती हो अब<br />न तुम जी सकती थी अब<br />...तुम्हे पाषाण बना दिया है इन जालिमों ने....<br /><br />ओ गुड़िया!<br />तुम फूल थी<br /> मसल दिया तुमको,<br />पर अब तुम<br />अंगारा बन गयी हो<br />ये अंगारा अवश्य ही<br /> एक दिन<br />हनुमान की पूंछ की आग की तरह<br />इन दुष्ट रावणों की<br /> लंका के साथ-साथ <br />इस बार तो रावण को भी<br />.... भस्म कर देगी....<br /><br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://3.bp.blogspot.com/-XCsCJ55Unjk/WWSc4sWqZ-I/AAAAAAAAAuE/K0uh3wOs0L073biD63EBB3a3zJcJJxd-gCLcBGAs/s1600/pitaji.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1200" height="320" src="https://3.bp.blogspot.com/-XCsCJ55Unjk/WWSc4sWqZ-I/AAAAAAAAAuE/K0uh3wOs0L073biD63EBB3a3zJcJJxd-gCLcBGAs/s320/pitaji.jpg" width="240" /></a></div>
[दिनांक 28 जून 2017 को पूजनीय पिता श्री की समृति में जन सेवा के उदेश्य से एक पीने के पानी का नल स्थापित किया गया साथ ही पूजा उपरांत पिता जी की फोटो दिवार पर स्थापित की गयी]<br /> ओ पिता जी<br />अब तो तुम भी<br />ईश्वर बन गये हो,<br />तभी तो<br />ईश्वर की तसवीर के साथ<br />तुम्हारी तसवीर भी<br />हार पहनाकर<br />दिवार पर टांग दी गयी है....<br /><br />ये तुम्हारी तसवीर भी<br />जैसे मानो कह रही हो हम से<br />मैं मरा नहीं,<br />अभी भी जीवित हूं,<br />घर की हर चीज में,<br />तुम्हारी यादों में भी।<br />मरते तो हर रोज कई हैं।<br />पर सब ईश्वर नहीं बनते।....<br /><br /><br /><br /><br /></div>
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कुलदीप ठाकुर...
ईमेल: kuldeepsingpinku@gmail.com
संपर्क नंबर 9418485128, 9459385128]</div>kuldeep thakurhttp://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8875130405369619473.post-274065991295606972017-06-24T13:46:00.000+07:002017-06-24T13:46:44.239+07:00पर खुद भूखे मर रहे हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किसान आज से नहीं,<br />सदियों से आत्महत्या कर रहे हैं,<br />उगाते तो हम अनाज हैं,<br />पर खुद भूखे मर रहे हैं।<br />मैंने एक और किसान कि<br /> आत्महत्या के बाद<br />आंदोलन कर रही भीड़ के<br />एक बूढ़े किसान से पूछा<br />वो किसान क्यों मरा?<br />"बेटा वो मरा नहीं<br />आज तो वो जिवित हुआ,<br />मरा तो वो पहले कई बार,<br /> एक बार नहीं हजार बार<br />न तब कोई आंदोलन हुए,<br />न कोई चर्चा,<br />ये केवल वोट के भूखे,<br />इस आग को सुलगा रहे हैं"<br />उगाते तो हम अनाज हैं,<br />पर खुद भूखे मर रहे हैं।<br />वो बुढ़ा किसान<br />कांपते स्वर में फिर बोला,<br />"ये आंदोलन थम जाएगा,<br />एक और किसान की आत्महत्या तक,<br />यही हुआ है, होगा भी यही,<br />बंटे हुए हैं जब तक किसान,<br />जब तक हम सभी किसान,<br />आत्महत्या कर रहे किसानों की पीड़ा को<br />अपनी पीडा नहीं मान लेते,<br /> आंदोलन हम स्वयम् नहीं,<br />इशारों से करते रहेंगे,<br />तब तक किसान भी<br />आत्महत्या करते ही रहेंगे।<br />हमे आपस में बांट कर,<br />वो कुर्सी के लिये पथ बना रहे हैं"<br />उगाते तो हम अनाज हैं,<br />पर खुद भूखे मर रहे हैं।<br /><br /><br /></div>
<div class="blogger-post-footer">[धन्यवाद...
कुलदीप ठाकुर...
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संपर्क नंबर 9418485128, 9459385128]</div>kuldeep thakurhttp://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.com9