ओ गुड़िया!
तुम ने भी तो
हवस के उन दरिंदों से
अपनी रक्षा के लिये.
द्रौपदी की तरह
ईश्वर को ही
पुकारा होगा
पर तुम्हे बचाने
....ईश्वर भी नहीं आए....
ओ गुड़िया!
तुम भी तो
उसी देश की बेटी थी
जहां बेटियों को
देवी समझकर पूजा जाता है
जहां की संस्कृति में
कन्या ही दुर्गा का रूप है.
ओ मां चंडी!
क्या कलियुग में तुम ने भी
असुरों को दंड देना छोड़ दिया?
....ये जालिम तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....
ओ गुड़िया!
तुमने भी सपने देखें थे
झांसी की रानी, कल्पना चावला
और भी ऊंची उड़ान भरने के,
ऊंची उड़ान भरने से पहले ही
तुम्हे नोच दिया
उन जालिम दरिंदों ने.
न तुम रो सकती हो अब
न तुम जी सकती थी अब
...तुम्हे पाषाण बना दिया है इन जालिमों ने....
ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....