रविवार, अगस्त 26, 2018

...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

मेरे पास
नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही
 आंखे थी......
एक की आंखों ने
मेरी बुझी हुई
 आंखे देखी
...छोड़ दिया मझधार में मुझे.....
एक की आंखों ने
बुझी हुई आंखों में भी
अपने लिये प्यार देखा,
.... कहा, मेरी आंखे हैं तुम्हारे लिये.....
मेरी बुझी हुई  आंखों ने भी
इनकी आंखों में
उनकी आंखों की तरह
...कभी लोभ नहीं देखा.....
खुशनसीब हूं मैं
जो संसार को
अपनी आंखों से नहीं
...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

शुक्रवार, अगस्त 17, 2018

कोटी-कोटी नमन तुम को.....

हे जन-नायक अटल जी,
तुम्हारी शकसियत अनुपम थी।
तुम   स्तंभ बनकर खड़े रहे,
सत्य-पथ पर अड़े रहे,
भारत को विश्व-शक्ति बनाया,
पाक कोमुंह के बल गिराया।
निज संस्कृति पर  अभिमान था,
धर्म-सभ्यता पर मान था।
तुम तो  जन-जन के प्यारे थे,
मां भारती के आंख के तारे थे।
तुम नेताओं  में शास्त्री से,
कवियों में मैथली शरण थे।
तुम भारत की पहचान हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....
आजाद शत्रु, सभी मित्र,
बेदाग और आदर्श चरित्र।
न रुके कहीं, न झुके कभी,
राजनीति में जिये, बनकर रवी,
ओ भारत के अनुमोल-रतन,
राम राज्य  आये, तुमने  किये यतन।
नम है नैन,   रतन चला गया,
सुना है, भाजपा का कमल चला गया।
ऐ मौत तु, इतनी मत इतरा,
वो मन से मरे, जी भर के जिया।
तु मारती है केवल, नशवर तन को,
नहीं मार सकती, अटल से जन को।
सुभाष गांधी  की तरह तुम अमर हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....




शुक्रवार, अगस्त 10, 2018

श्री की जगह शहीद लिखती हूं.......


[मेरी इस कविता में एक शहीद की बेटी के भावों को प्रकट करने का प्रयास किया गया है....}
जब तुम  पापा!
आये थे घर
तिरंगे में लिपटकर
तब मैं बहुत रोई थी....
शायद तब मैं
बहुत छोटी थी,
बताया गया था मुझे,
तुम मर चुके हो....
मुझे याद है पापा!
कहा था जाते हुए तुमने
मैं दिवाली पर आऊंगा,
तुम्हारे लिये बहुत से  उपहार  लेकर.....
तुम्हारी पुचकार से,
मैं हंस पड़ी थी उस दिन
क्या पता था मुझे,
नहीं आओगे लौटकर अब....
जब स्कूल में
बाते करते थे सब
अपने पापा के दुलार की
तब तुम्हारी याद रुलाती थी मुझे....
उमर बढ़ने के साथ साथ
सत्य जाना मैंने,
तुमने मुझे क्या दिया,
अब   उसे पहचाना मैंने....
कौन कहता है,
 तुम  मरे हो,
देखो-देखो तुम  तो
महा-वीरों की कतार में खड़े हो.......
मुझे गर्व होता है,
जब  मैं तुम्हारे   नाम से पहले
श्री की  जगह
शहीद लिखती हूं.......
तुमने तो पापा  
निभा दिया अपना फर्ज
उतार दिया मां का कर्ज,
मां का सर झुकने न दिया.....
अब तो  पापा!
जानते हैं सभी
पहचानते हैं मुझे भी
तुम्हारे नाम से....
ओ पापा!
मेरे पास जीने के लिये,
तुम्हारा नाम ही काफी है,
मत उदास होना कभी मेरे लिये......