कैसे चलते साथ तुम्हारे,
जब पग पग पे दिये धोखे तुमने,
कभी विवादों की बिजलियां गिराई,
कभी पथ में शूल बिछाए तुमने...
खुशनुमा थी जिंदगी,
असंख्य अर्मान थे,
सरल भावुक हृदय को,
जलाकर राख बनाया तुमने...
पहचान न सका मैं तुम को,
तुम तराशा हुआ पत्थर हो,
चलते चलते मुझे पथ में
बार बार गिराया तुमने...
राह में पड़े पत्थर से पूछा
तुम्हे पत्थर बनाया किसने,
दशा उसकी देख मैं रो पड़ा,
उसे भी पत्थर बनाया तुमने...
इतराओ न अपनी जीत पर,
जो मिली है विश्वासघात से,
जो जो मैंने खोया है,
वोही है पाया तुमने...
जब पग पग पे दिये धोखे तुमने,
कभी विवादों की बिजलियां गिराई,
कभी पथ में शूल बिछाए तुमने...
खुशनुमा थी जिंदगी,
असंख्य अर्मान थे,
सरल भावुक हृदय को,
जलाकर राख बनाया तुमने...
पहचान न सका मैं तुम को,
तुम तराशा हुआ पत्थर हो,
चलते चलते मुझे पथ में
बार बार गिराया तुमने...
राह में पड़े पत्थर से पूछा
तुम्हे पत्थर बनाया किसने,
दशा उसकी देख मैं रो पड़ा,
उसे भी पत्थर बनाया तुमने...
इतराओ न अपनी जीत पर,
जो मिली है विश्वासघात से,
जो जो मैंने खोया है,
वोही है पाया तुमने...
बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर...
हटाएंसुन्दर सार्थक भावों की सशक्त अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का...
हटाएंबेहतरीन , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सर आप का बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंस्वागत, धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लौग पर आप का स्वागत, टिप्पणी के लिये आभार।
हटाएंSunder prastuti ....!!
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी आप का...
हटाएंबेहतरीन रचना.
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