मंगलवार, सितंबर 23, 2014

कैसे चलते साथ तुम्हारे...

कैसे चलते  साथ तुम्हारे,
जब पग पग पे दिये धोखे तुमने,
कभी विवादों की बिजलियां गिराई,
कभी पथ में शूल बिछाए तुमने...

खुशनुमा थी जिंदगी,
असंख्य अर्मान थे,
सरल  भावुक हृदय को,
जलाकर राख बनाया तुमने...

पहचान न सका मैं तुम को,
तुम तराशा हुआ पत्थर हो,
चलते चलते मुझे  पथ में
बार बार गिराया तुमने...

राह में पड़े  पत्थर से पूछा
तुम्हे पत्थर बनाया किसने,
दशा उसकी देख मैं रो पड़ा,
उसे भी पत्थर बनाया तुमने...

इतराओ न अपनी जीत पर,
जो मिली है विश्वासघात से,
जो जो मैंने खोया है,
वोही है पाया तुमने...


15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सार्थक भावों की सशक्त अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे ब्लौग पर आप का स्वागत, टिप्पणी के लिये आभार।

      हटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !