हे ईश्वर,
तुम्हारे मंदिर में,
आते हैं वो,
जिन के पास
होता है सब कुछ,
और पाने की इच्छा लिये
तुम्हे प्रसन्न करने के लिये,
चढ़ाते हैं चढ़ावा।
और ये सोचकर
मन ही मन में
प्रसन्न होते हैं,
कि तुम प्रसन्न हो गये हो...
तुम्हारे मंदिर के बाहर,
तुम्हारे भक्तों के सामने,
एक के बाद दूसरा
दोनों हाथ फैलाता हुआ
अपनी विवशता बताता हुआ,
नजर आता है।
ये देखकर सोचता हूं,
वो तुम से क्यों नहीं मांगता?
हरएक के आगे क्यों गिड़गिड़ाता है?
क्या तुम भी उसकी नहीं सुनते,
वो हर आने जाने वाले से,
मांगता है तुम्हारे नाम पर...
तुम्हारे मंदिर में,
आते हैं वो,
जिन के पास
होता है सब कुछ,
और पाने की इच्छा लिये
तुम्हे प्रसन्न करने के लिये,
चढ़ाते हैं चढ़ावा।
और ये सोचकर
मन ही मन में
प्रसन्न होते हैं,
कि तुम प्रसन्न हो गये हो...
तुम्हारे मंदिर के बाहर,
तुम्हारे भक्तों के सामने,
एक के बाद दूसरा
दोनों हाथ फैलाता हुआ
अपनी विवशता बताता हुआ,
नजर आता है।
ये देखकर सोचता हूं,
वो तुम से क्यों नहीं मांगता?
हरएक के आगे क्यों गिड़गिड़ाता है?
क्या तुम भी उसकी नहीं सुनते,
वो हर आने जाने वाले से,
मांगता है तुम्हारे नाम पर...
आते तो दोनों ही हैं उसके द्वार ... पर सबकी अपनी अपनी किस्मत ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
हटाएंनमस्ते सर...
जवाब देंहटाएंआप का धन्यवाद आप ने मुझे अपनी चर्चा में स्थान दिया।
बहुत सटीक प्रश्न...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर आप का।
हटाएंमन को उद्वेलित करने वाला प्रश्न ! क्या सच में ईश्वर भेंट (चढ़ावा ) से खुश होते हैं ?
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ३
धन्यवाद सर...
हटाएंसटीक प्रश्न उठाती पोस्ट
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
धन्यवाद भाई संजय जी...
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