हम अक्सर जीवन में,
जीत के जश्न को
शिघ्र भूल जाते हैं...
जीवन में मिली प्राजय को,
वर्षों तक याद करके,
आंसू बहाते हैं...
पर प्राजित होने की पीड़ा,
समझ सकता है वोही,
जो खुद प्राजित हुआ हो...
अगर जीतने वाला,
छल या विश्वासघात से जीता हो
तो वो जीत नहीं है...
पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...
जीत के जश्न को
शिघ्र भूल जाते हैं...
जीवन में मिली प्राजय को,
वर्षों तक याद करके,
आंसू बहाते हैं...
पर प्राजित होने की पीड़ा,
समझ सकता है वोही,
जो खुद प्राजित हुआ हो...
अगर जीतने वाला,
छल या विश्वासघात से जीता हो
तो वो जीत नहीं है...
पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...
very true
जवाब देंहटाएंधन्यवाद... आप का...
हटाएंसुंदर लेखन व रचना , सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
धन्यवाद आप का...
हटाएंचर्चा में मुझे स्थान देने के लिये।
खुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद...
हटाएंतर्क व नीति की सार्थक बात कहती उत्तम प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंBahut sunder aabhivyakti!!
जवाब देंहटाएंआप का स्वागत टिप्पणि के लिये धन्यवाद।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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