शनिवार, सितंबर 20, 2014

प्राजय...

हम अक्सर जीवन में,
जीत के जश्न    को
शिघ्र भूल जाते हैं...

जीवन में मिली प्राजय को,
वर्षों तक याद करके,
आंसू बहाते हैं...

पर प्राजित होने की पीड़ा,
समझ सकता है वोही,
जो खुद प्राजित हुआ हो...

अगर जीतने वाला,
छल या विश्वासघात से जीता हो
तो वो जीत नहीं है...

 पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लेखन व रचना , सर धन्यवाद !
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    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद आप का...
      चर्चा में मुझे स्थान देने के लिये।

      हटाएं
  2. खुबसूरत अभिवयक्ति......

    जवाब देंहटाएं
  3. तर्क व नीति की सार्थक बात कहती उत्तम प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. आप का स्वागत टिप्पणि के लिये धन्यवाद।

      हटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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