मेरे गांव का वो वृक्ष,
जिसकी छाया में हम,
बैठकर घंटों,
बाते किया करते थे...
हम सोचा करते थे,
यहां आस पास कोई नहीं है,
पर वो खामोश वृक्ष,
सब कुछ सुना करता था...
इसी लिये वो वृक्ष भी,
हम दोनों के जुदा होने पर,
बुलाता है तुम्हे अक्सर,
मुझ से भी कुछ कहना चाहता है...
जिसकी छाया में हम,
बैठकर घंटों,
बाते किया करते थे...
हम सोचा करते थे,
यहां आस पास कोई नहीं है,
पर वो खामोश वृक्ष,
सब कुछ सुना करता था...
इसी लिये वो वृक्ष भी,
हम दोनों के जुदा होने पर,
बुलाता है तुम्हे अक्सर,
मुझ से भी कुछ कहना चाहता है...
बिछुड़ने का दुःख सबको रहता है कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त
जवाब देंहटाएंठीक कहा है आपने...
हटाएंसादर।
भावप्रणव प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद...
हटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंthanks sir>
हटाएंवृक्ष प्राचीन काल से साक्षी रहे हैं ,बोल भले न पायें ,पर सुनते तो हैं ही !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
हटाएंआपका