मंगलवार, सितंबर 29, 2015

कल के लिये....

बालक बनकर
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी  तब.....
 जवानी में
अथक काम करके
महल बनाए
खूब पैसा कमाया
न तपती धूप
से डगमगाया
न शरद  रातों
 को ही  सोया
काम किया बस
कल के लिये...
देखते ही देखते
आ गया गल भी
यानी तीसरा दिन
जीवन का
ये तीसरा दिन
कल  के काम का नहीं है
इस लिये अर्जुन
बिछा  रहा है
बाणों की एक और शया 
सोना पड़ेगा मृत्यु  तक
अब केवल उस पर ही...

गुरुवार, सितंबर 24, 2015

जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मैं सोचता था
भ्रष्टाचार केवल
नेता, अधिकारी,
बड़े व्यपारी
या सरकारी तंत्र के
लोग  ही करते हैं
इन्हे करते देखा भी है...
जब मैंने देखा
1 माह का बच्चा
दूध की बौटल को
मुंह से दूर करते हुए
 जैसे मानो कह रहा हो
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार
रोते हुए अपनी मां  को
तुम भी भ्रष्टाचारी हो
जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मंगलवार, सितंबर 22, 2015

हम दूर हो गये...

सोचा था
कुठ गीत लिखुंगा
आयेगा जब
समय सुहाना...
दिन बीते
बीत गये वर्ष
पर आज तक
न वो गीत लिखे...
चला एक दिन
चमन की ओर
पर चमन तब तक
उजड़ चुका था...
नींद में ही सही
हसीन ख्वाब  देखूं
पर रातों  को
कभी  नींद न आयी...
तुम्हारा हमारा
मिलन था तन का
मन मिले बिना ही
हम दूर हो गये...

सोमवार, सितंबर 21, 2015

यही है सैनिक धर्म मेरा...

मैं और तुम
नहीं  जानते
एक दूसरे को
न मिले कभी
न हम दोनों का
बैर है कोई...

अगर मिलते
दिल्ली या लाहौर में
पूछता तुम से परिचय
परिचय देता अपना भी
संकट में होते
मदद भी  करता...

हो भले ही
तुम भी मुझसे
आज जंग है
दो देशों में
यहां तो  हम  केवल
  शत्रु हैं...

पर आज
हम दोनों का मिलन
रण-क्षेत्र में
हुआ है
हम दोनों को ही आज
सैनिक धर्म निभाना है...

हम दोनों में
जो मारा गया
वो शहीद कहलाएगा
जो  जिवित बचेगा
वो संमान पाएगा
अपने देश में...


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जिवित तुम्हे
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...

शनिवार, सितंबर 05, 2015

देश पर संकट है...

देख भारत की
दुर्दशा आज
उमीद है
परिवर्तन होगा
विश्वास है सब को
तुम आओगे...

जब जब भी
आया संकट
हम डरे नहीं
बुलाया तुमको
एक बार नहीं
 हर बार आये हो...

तुम्हारा दिया
गीता का ज्ञान
अब नहीं आता
समझ में किसी के
पुनः दो
हमे  वोही ज्ञान...

आज सनातन
धर्म फिर
बुला रहा है
श्याम तुम को
सनातन का  खतरा ही
देश पर संकट है...

गुरुवार, सितंबर 03, 2015

केकयी सा ही अनादर होता है...

मां केकयी को
आज सभी
मानते हैं दुर्ात्मा,
 दोनों माओं की तरह ही
 वो भी  एक
 महान नारी थी...
नहीं जानना चाहा किसीने
भरत से अधिक
प्रीय थे जेसे   राम
फिर पल भर में ही
क्यों मांग लिया
 श्री राम को वनवास...

उन्हे तो केवल
देवताओं ने
भ्रमित करके
मांगने भेजे दो वचन,
 ताकि राम वनों में जाए
वध करे रावण का...


भरत की जननी
श्रीराम की मां
दशरत की रानी
उच्च कुल की बेटी
कुल वधु अवध   की
दुर्ात्मा कैसे...


किसी का किया
एक तुच्छ कर्म
उसके जीवन के
सारे उच्च कर्मों  को
नष्ट नहीं कर सकता
ये हमारी भूल है...

कभी कभी पराई मां भी
एक पुत्र को
उसकी जननी से भी
अधिक प्रेम करती है
पर उसका  सदा ही
केकयी सा ही अनादर होता है...