रविवार, जून 30, 2013

उत्तरांचल की तबाही पर कुछ दोहे।



पावन स्थान प्रभू का,   बन गया शमशान,
स्कूल सराए ढै गये, करहा रहा इनसान...1

मन्नते रह गयी मन में, छूट गये परिवार,
कुझ तो नींद में सो गये, कुछ हो गये लाचार...2

लाशों के जेब टटोल रहे, कयी पापी शैतान,
जो हैं  जिवित बचे, उन्हें कुचल रहै हैवान...3

पूजा पाखंड हो गयी, बन गये धर्म मजाक,
प्रभ को पत्थर कह रहे, तभी हुआ सब खाक...4

मंदिर को हम समझ रहे, बस केवल   दुकान,
चढ़ावा खूब चढ़ाके, न खुश होंगे भगवान...5

जब जब हमने की है, प्कृति से छेड़छाड़ड़,
आया है कभी भुकंप, कभी आयी है  बाड़...6

न काटो वृक्ष धरा से, न रोको नदि बहाव,
प्रेम करो प्रकृति से, कौमल है इसका स्वभाव...7

भूले जब जन भ्रम को,न रहे इश्वर पर विश्वास,  
समझे खुद को इश्वर, होता है विनाश...8

कोई भूख से मर रहा, कोई मांगे रजाई,
सब कुछ देखो  बह गया कैसी ये तबाही...10

नेता को मत देखिये, यान में वो यहां आये,
 भविष्य अपना देख रहे, जंता उनकी हो जाए...11

विर सिपाही देश के, निभा  रहे मानव धर्म,
नव निर्माण करने हेतु, कर रहे हैं युवा कर्म...12

भूल हुई क्षमा करो, हे नील कंठ भगवान,
पीड़ितों  को स्वस्थ करो, दो मृतकों को स्थान...13

बुधवार, जून 19, 2013

मैं ऐसा गीत बनाना चाहता हूं।



मैं ऐसा गीत बनाना चाहता हूं,
आदमी को आदमी के पास लाना चाहता हूं,
जाती धर्म की दिवारेम, हमने बनाई है,
न लड़ो इश्वर के नाम पर, ये समझाना चाहता हूं।

कर रहे हैं शिक्षित बच्चों को,
उच्च डिगरी ले पैसे कमाए,
दर दर भटकते मां बापों के,
किस्से सुनाना चाहता हूं।

देखो हम सब दौड़ रहे हैं,
जाना है कहां हम नहीं जानते,
इस दिशाहीन भाग दौड़ से,
मैं सब को बचाना चाहता हूं।

 काट डालो ये नफरत का वृक्ष,
प्रेम का अंकुर फूटने दो, 
जो नफरत है हमारे दिलों में,
बच्चों की उस से दूरी बनाना चाहता हूं।

सब से बड़ा है देश,
देश से बड़ा कुछ भी नहीं,
हर गली मौहले में,
ये क्रांती लाना चाहता हूं।

सोमवार, जून 03, 2013

कल था जहां राम राज्य



हर तरफ खुशहाली थी, कहते थे सौने की चिड़िया,
जग अंबर का सूरज था भारत, साक्षी है सारी दुनिया।
कैसा देश पे संकट आया, भ्रष्टाचार का कोहरा छाया,
कल था जहां राम राज्य, आज लंकेश ने वहां राज पाया।
चाहते   हैं नेता कुर्सी पाना, देश से उन्हे क्या लेना,
देखती है जंता नेता को,  कहती है देश ने उन्हे क्या देना,
बस केवल वोट लेने के लिए, नेताओं ने ये भ्रमित  जाल बिछाया,
कल था जहां राम राज्य, आज लंकेश ने वहां राज पाया।
अब रण में केवल कौरव  है, न पांडवों का अब डर  सताता,
द्रौण तो हैं जो व्यू रचेंगे, न भिष्म अब  मार्ग दिखाता,
पर अब मित्र कर्ण नहीं है, दुर्योधन ये न समझ पाया,
कल था जहां राम राज्य, आज लंकेश ने वहां राज पाया।
विश्वास है कृष्ण के वचन पर, आयेंगे वो फिर  धरा पर,
पुनः राम राज्य आयेगा, चमकेगा ये  सूरज फिर विश्व पटल पर,
 मिटेगा अंधेरा होगा सवेरा, इस आस में सदा तिरंगा लहराया।
कल था जहां राम राज्य, आज लंकेश ने वहां राज पाया।