पावन स्थान प्रभू का, बन गया शमशान,
स्कूल सराए ढै गये, करहा
रहा इनसान...1
मन्नते रह गयी मन में, छूट
गये परिवार,
कुझ तो नींद में सो गये,
कुछ हो गये लाचार...2
लाशों के जेब टटोल रहे, कयी
पापी शैतान,
जो हैं जिवित बचे, उन्हें कुचल रहै हैवान...3
पूजा पाखंड हो गयी, बन गये
धर्म मजाक,
प्रभ को पत्थर कह रहे, तभी
हुआ सब खाक...4
मंदिर को हम समझ रहे, बस
केवल दुकान,
चढ़ावा खूब चढ़ाके, न खुश
होंगे भगवान...5
जब जब हमने की है, प्कृति
से छेड़छाड़ड़,
आया है कभी भुकंप, कभी आयी
है बाड़...6
न काटो वृक्ष धरा से, न
रोको नदि बहाव,
प्रेम करो प्रकृति से, कौमल
है इसका स्वभाव...7
भूले जब जन भ्रम को,न रहे
इश्वर पर विश्वास,
समझे खुद को इश्वर, होता है
विनाश...8
कोई भूख से मर रहा, कोई
मांगे रजाई,
सब कुछ देखो बह गया कैसी ये तबाही...10
नेता को मत देखिये, यान में
वो यहां आये,
भविष्य अपना देख रहे, जंता उनकी हो जाए...11
विर सिपाही देश के,
निभा रहे मानव धर्म,
नव निर्माण करने हेतु, कर
रहे हैं युवा कर्म...12
भूल हुई क्षमा करो, हे नील
कंठ भगवान,
पीड़ितों को स्वस्थ करो, दो मृतकों को स्थान...13
सच ही तो है ,प्रकृति से छेड़छाड़ का ही तो ये
जवाब देंहटाएंदुष्परिणाम है जो हम सभी भुगत रहे हैं....
बहुत सुन्दर भावप्रणव काव्य..मगर ये दोहे नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंदोहा एक मात्रिक छन्द है और इसमें मात्राओं की मर्यादा निभाना अनिवार्य होता है।
आप सृजन मंच ञनलाइन में योगदान कीजिए न!
जवाब देंहटाएंहमारे सहयोगी आपको छन्दों का मर्म समझा देंगे।
http://srijanmanchonline.blogspot.com/
चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
जवाब देंहटाएंदिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
*श्मशान
धन्यवाद आप सब का...
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