रविवार, सितंबर 29, 2013

अपने इस वतन को बचाओ...



अंधेरी ये  निशा है,
भयानक हर दिशा है,
केवल  दीप तो जलाओ,
इस अंधकार  को मिटाओ...

उजड़ गया है देखो  चमन,
मुर्झा गये हैं  सब सुमन,
केवल  पुष्प तो लगाओ,
उजड़े चमन को महकाओ...

बंजर हो रही देखो  धरा,
हर खेत चाहिये हरा भरा,
पुनः सभी फसले उगाओ,
इस भुखमरी को मिटाओ...

जर जर हो गया देश आज,
पथ भ्रष्ट हो गया देखो समाज,
हर बच्चे  को भरत,  राम  बनाओ,
अपने इस वतन को बचाओ...

बुधवार, सितंबर 18, 2013

मैं खुश हूं इस धरा पर...



न स्वर्ग की आस है,
न सितारों की तलाश है,
 सुंदर है सब से मेरा घर,
मैं खुश हूं इस धरा पर...

 श्रेष्ठ  है यहां सब से कर्म,
पथ प्रदर्शक है धर्म,
पीर पैगंबर स्वर्ग से आये,
मैं खुश हूं इस धरा पर...

मां की मम्ता की छाया मिली,
पिता के स्नेह से जिंदगी खिली,
संबंध अनेकों अनेक बने,
मैं खुश हूं इस धरा पर...

पाप करें या पुन्य कमाएं,
मंदिर या मधुशाला जाएं,
बुद्धि, विवेक से सोचना है ये,
मैं खुश हूं इस धरा पर...

जो चहा, उसने  वोही पाया,
 मिट्टी को भी स्वर्ण बनाया,
दुख सुख दोनों का  साथ है,
मैं खुश हूं इस धरा पर...


बुधवार, सितंबर 11, 2013

कह रही है हमसे हिंदी...

क्यों कम हुआ है मेरा महत्व,
आज खतरे में है मेरा अस्तित्व,
मुझे कैसे तुमने कमजोर समझा,
कह  रही है हमसे हिंदी...

भूल गये तुम मेरी मम्ता,
न पहचान सके मेरी क्षमता,
सुना तुमने जो औरों ने कहा
कह  रही है हमसे हिंदी...

मैंने रचा तुम्हारा इतिहास,
वर्ना क्या था तुम्हारे पास,
मैं न होती तुम स्वतंत्र न होते,
कह  रही है हमसे हिंदी...

राज विदेशियों का भगाया,
बाकी सब कुछ उनका  अपनाया,
कैसे कहोगे तुम हिंदी हो,
कह  रही है हमसे हिंदी...

  असीम है  मेरा शब्द भंडार,
फिर भी  समझी गयी  लाचार,
मोह लिया तुम्हे अंग्रेज़ी ने,
कह  रही है हमसे हिंदी...

शालीनता और शुद्ध उच्चारण,
नहीं है ऐसा किसी का व्यकरण
देवनागरी  सी  न लिपी दूसरी,
कह  रही है हमसे हिंदी...

रोता है मेरा स्वाभिमान,
कहां गया मेरा संमान,
तुम आजाद हुए मैं गुलाम बनी,
कह  रही है हमसे हिंदी...
कहा किसने हिंदी दिवस मनाना,
न   मेरी रूह को तड़फाना,
एक दिन क्यों ढौंग रचाना,
कह  रही है हमसे हिंदी...

समझते हो तुम जिसे विज्ञान,
जन्मा है वो मुझसे ज्ञान,
है जनक सब के वेद पुर्ाण,
कह  रही है हमसे हिंदी...

ठुकराया है जिसने मां को,
सदा ही पछताया है वो,
जागो अभी भी समय है,
कह  रही है हमसे हिंदी...

रविवार, सितंबर 08, 2013

कल तक कहते थे खुद को खुदा...

कल तक कह रहे थे खुद को खुदा,
आज कैसे कहेंगे खुद को इनसान,
औरों को उपदेश देते थे,
नहीं था  खुद को धर्म का ज्ञान...
 श्रधा     से श्रधालू   आते थे,
सिर चर्णों में झुकाते थे,
खुद तो  भूखे रह कर भी,
करते  थे जी भर के दान...

कला बोलने की सीखकर,
कहलाते थे चतुरवेदी,
कुकर्म  ऐसा कभी न करते,
पढ़े होते वेदपुर्आण...

क्या कहा कृष्ण ने, औरों कोसमझाया,
इस पावन धर्म को,  व्यवसाय  बनाया,
जो सिखाया  औरों को, खुद  भी करते,
न होताफिर  ये अंजाम...

न राम ने कभी उपदेश दिये,
केवल उत्तम कर्म किये,
आदर्शों  को श्री राम के,
पूजता है सकल जहान...