मैं ऐसा गीत बनाना चाहता
हूं,
आदमी को आदमी के पास लाना
चाहता हूं,
जाती धर्म की दिवारेम, हमने
बनाई है,
न लड़ो इश्वर के नाम पर, ये
समझाना चाहता हूं।
कर रहे हैं शिक्षित बच्चों
को,
उच्च डिगरी ले पैसे कमाए,
दर दर भटकते मां बापों के,
किस्से सुनाना चाहता हूं।
देखो हम सब दौड़ रहे हैं,
जाना है कहां हम नहीं
जानते,
इस दिशाहीन भाग दौड़ से,
मैं सब को बचाना चाहता हूं।
काट डालो ये नफरत का वृक्ष,
प्रेम का अंकुर फूटने
दो,
जो नफरत है हमारे दिलों
में,
बच्चों की उस से दूरी बनाना
चाहता हूं।
सब से बड़ा है देश,
देश से बड़ा कुछ भी नहीं,
हर गली मौहले में,
ये क्रांती लाना चाहता हूं।
आपके जज़बात को नमन
जवाब देंहटाएंकाश
आप जो सोच रहें हैं
सच हो जाये
आमीन
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत अच्छा लिखा है जनाब
जवाब देंहटाएंआपके भावों ने तो शब्द बन्धन भी तोड दिए……
जवाब देंहटाएंबहुत शुद्ध अन्तरमन से निकले जज़बात और उनकी पूर्णता के लिए शुभकामनाएं
बहुत अच्छा लिखा है आप ने , मुझे आप की रचना बहुत अच्छी लगी , आप ऐसे हे लिखते रहे शुभकामनाएं,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आप ने , मुझे आप की रचना बहुत अच्छी लगी , आप ऐसे हे लिखते रहे शुभकामनाएं,
जवाब देंहटाएंये सुंदर भाव सबके दिल में आ जाय यही कामना बहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .......!!
जवाब देंहटाएंये सुंदर भाव सबके दिल में आ जाय यही कामना बहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .......!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं .....यही जज़्बा बनाए रहें और बांटे भी ...॥अगर पढ़कर कुछ ही लोगों का मन पलटे तो समझें क्रांति आ गई ...
जवाब देंहटाएंसुंदर जज़्बा ....शुभकामनायें ....
shabdo ko badi bariki se piroya hai
जवाब देंहटाएंअच्छी संदेश परक रचना बधाई ।
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