बुलाया था हमने मेघा आना,
बरसकर हरियाली लाना,
तुम बरसे प्रलय बनकर,
जाओ मेघों लौट जाओ...
मिटा दिये हचारों इनसान,
घर शहर बना दिये शमशान,
धन संपत्ति नष्ट हो गयी,
जाओ मेघों लौट जाओ...
तुम क्या जानो मानव की
पीड़ा,
तुम तो करते हो अपनी कृड़ा,
तबाही का ये मंजर देखो,
जाओ मेघों लौट जाओ...
खिलखिलाते थे बच्चे तुम्हे
देखकर,
आती थी मुस्कान किसानों के
मुख पर,
पर आज सभी कह रहे हैं,
जाओ मेघों लौट जाओ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
.बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
जवाब देंहटाएंमैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
जवाब देंहटाएं--
पूर्व के कमेंट में सुधार!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
सूचनार्थ...!
--
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने , किस राह से बचना है , किस छत को भिगोना है !
जवाब देंहटाएंटिपणी ?
जवाब देंहटाएंबेजिझक ?
bahut sateek rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकहा मान लो बादलों.......
जवाब देंहटाएंअनु
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post केदारनाथ में प्रलय (भाग १)
वाह , अब तो सच में ही मेघो से डर लगने लगा है, सुंदर रचना , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे कुलदीप जी
बहुत उम्दा प्रस्तुति...
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