जो कल थे वो आज नहीं है,
जो आज है कल जाएंगे,
जग में रौनक कम न होगी,
कल कोई और ही आयेंगे।
आना जाना जीवन मृत्यु,
यही तो संसार है...
स्वार्थ से ही बंधे हैं,
सब रिशते नाते व परिवार,
मोह माया में लिप्त है
केवल,
है खुद पर सब को अहंकार,
वैवनस्य, नफरत और घृणा,
यही तो संसार है...
बेहिसाब करता है धन अर्जित,
जैसे साथ ले जाना है,
शड़यंत्र लड़ाई जघड़ों में,
बिताता जीवन सारा है,
झल लोभ और महत्वाकाक्षाएं,
यही तो संसार है...
चड़ते सूरज को स्लाम,
पत्थर को मारते हैं ठोकर,
सब कुछ यहां नशवर है,
उदास न होना कुछ भी खोकर,
जहां श्री राम सुखी न रह
सके,
यही तो संसार है...
सुंदर भाव ,शुभकामनाये,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_909.html
बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
जवाब देंहटाएंयथार्थ सन्देश!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों का सटीक प्रगटीकरण-
जवाब देंहटाएंबधाई आदरणीय-
सत्य सर्वथा सत्य है, शब्द शब्द है सत्य |
चढ़ते सूरज का सदा, जग में है अधिपत्य-
sundar bhav
जवाब देंहटाएंयही संसार है...
जवाब देंहटाएंबातों में सार है!
सुन्दर भावों को शब्द दिए हैं !!
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंनिसंदेह साधुवाद योग्य लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंfantastic thought ...behatrin
जवाब देंहटाएंप्रिय कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव रचना के सब नश्वर है इस मर्त्य लोक में कुछ भी साथ जाने वाला नहीं फिर अहं क्यों ....
हिंदी बनाते समय शब्दों का ध्यान रखें तो आनंद और आये जैसे
रिश्ते-नाते , बैमनस्य , षड्यंत्र, झगड़ों , छल , चढ़ते
अभिनंदन आप का भ्रमर का दर्द और दर्पण में पधारने हेतु /ब्लॉग के समर्थन हेतु अपनी राय भी देते रहिये लिखते रहें
भ्रमर ५