जयचंद
और
पृथ्वीराज
दोनों का ही
जन्म होता है
हर काल में
हर देश में।
गौरी को
तलाश रहती है
हर हमले से पहले
जयचंद की
वह जानता है
बिना जयचंद के
मुमकिन नहीं विजय।
पृथ्वीराज
अगर पहचान जाए
जयचंद को
तो दंड देता है,
न पहचान सका तो
खुद ही मारा जाता है।
और
पृथ्वीराज
दोनों का ही
जन्म होता है
हर काल में
हर देश में।
गौरी को
तलाश रहती है
हर हमले से पहले
जयचंद की
वह जानता है
बिना जयचंद के
मुमकिन नहीं विजय।
पृथ्वीराज
अगर पहचान जाए
जयचंद को
तो दंड देता है,
न पहचान सका तो
खुद ही मारा जाता है।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंमीर ज़ाफ़र को भूल गए
वो जयचंद का सगा भाई था
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-01-2016) को "अब तो फेसबुक छोड़ ही दीजिये" (चर्चा अंक-2223) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
सुन्दर व सार्थक
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक
जवाब देंहटाएंजयचंदों की कमीं नहीं आज ...अच्छी सामयिक चिंतन प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएं