गुरुवार, अगस्त 08, 2013

अब अपने गांव में...



 मेरा गांव ऐसा था,
बिलकुल स्वर्ग जैसा था,
लेकिन  सब कुछ बदल गया है,
अब अपनेगांव में...

दादा दादी नहीं रहे,
पुराने वृक्ष ढै गये,
केवल उनकी यादें हैं,
अब अपनेगांव में...

न रस्म रिवाज न  मर्यादाएं,
तोड़दी  सब परंप्राएं,
दीपक नहीं,  जलाते हैं  लड़ियां,
अब अपनेगांव में...

सड़कें तो पक्की बन गयी,
गलियां भी साफ हो गयी,
फिर भी कोई नहीं जाता,
अब अपनेगांव में...

लंबी कहानियां, सुहानी राते,
वृक्ष के नीचे न होती बाते,
न मेलों की धूम न झूलों की मस्ती,
अब अपनेगांव में...

न लगते थे घर में ताले,
बेझिझक आते थे आने वाले,
पुलिस चौकी की  आवश्यक्ता है,
अब अपनेगांव में...

दिखता था केवल भ्रात्रिभाव,
फूलों सा था सब का स्वभाव,
अजनवी से   लगते हैं सभी,
अब अपनेगांव में...

बीस  सदस्यों का होता था परिवार,
अब परिवार में है सदस्या चार,
फिर भी लड़ाई झगड़ें हैं,
अब अपनेगांव में...


6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुंदर

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  2. सार्थक अभिवयक्ति......

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  3. अब तो बस यादें ही शेष हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. कल 11/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. जहाँ प्रगति ने गाँवों का रूप बदल दिया ...वहां एक टीस भी जन्म दी......

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

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