हर आते जाते मुसाफिर से पूछ
रही है भारत मां,
मां का प्राणों से प्यारा,
पुत्र आखिर गया कहां,
कोई कहता जीवित है, शायद
शहीद हो गये
इस असीम संसार में, नेता जी
कहीं खो गये।
न यान मिला न शव मिला, न
मानती सत्य अनुमान को,
खोज रही
है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,
बहुत स्नेह था तुम्हे मां
से, क्यों मां को छोड़ चले गये हो,
मां को जिंदगी भर की,
असहनीय पीड़ा दे गये हो,
समय बहुत बीत गया है, पुष्प
उमीद के बिछाते हुए,
कंठ मां का सूख गया है,
पुत्र को बुलाते हुए।
अंग्रेज न जाने कहां ले
गये, नेता जी के यान को,
खोज रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,
नेता जी के प्राक्रम ने,
फिरंगियों को हिला दिया,
आखिर गोरों ने डरकर, भारत
को स्वतंत्र किया,
नेता जी के परियासों से,
जंग तो हम जीत गये,
नेता जी वापिस न आये, कयी
वर्ष अब बीत गये।
छोड़ दो हे युग पुरुष, उस
अज्ञात स्थान को,
खोज रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,
वाह !क्या जज्वा है !!
जवाब देंहटाएंसुभाष.तुम्हें हटा कर इन लोगों ने सब चौपट कर दिया !
जवाब देंहटाएंbahut umda, dil ko chu gaya
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति .कुलदीप जी.
जवाब देंहटाएंखोज रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को
नेता जी के पराक्रम ने, फिरंगियों को हिला दिया
आखिर गोरों ने डरकर, भारत को स्वतंत्र किया
अच्छी रचना है
आदरणीय कुलदीप ठाकुर जी !
औरों के लिए प्रेरणा बने ,आपकी लेखनी से निरंतर ऐसा श्रेष्ठ सृजन होता रहे...
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार