शनिवार, जनवरी 28, 2017

हम हिंदूस्तान को भूल गये,

इंडिया-इंडिया कहते-कहते,
हम हिंदूस्तान को भूल गये,
आजाद हो गये लेकिन फिर भी,
अपनी पहचान ही भूल गये।...
जलाते हैं दिवाली में पटाखे,
खेलते हैं रंगों से होली,
याद रहा रावण को जलाना,
राम-कृष्ण को भूल गये...
नहीं पता अब बच्चों को,
बुद्ध,  महावीर, गोविंद  कौन हैं?
मुगलों का इतिहास याद है,
पृथवीराज, राणा को भूल गये...
मां-बाप को आश्रम में भेजकर,
घर में हैं  कुत्ते  पाले,
फेसबुक, ट्वीटर   पर  दोस्त कई हैं,
अपने परिवार को भूल गये...
इतिहास में पढ़ाते हैं,
कब कब किसने यहां शासन किया,
हम क्यों विदेशियों के  गुलाम हुए,
ये पढ़ाना ही भूल गये...
वापिस लाओ, अपना  स्वर्णिम अतीत,
वो संस्कृति, वो सभ्यता,
वर्ना हो जाएंगे फिर गुलाम,
अगर भारत को भूल गये...

शुक्रवार, जनवरी 27, 2017

गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।

जो समझते रहे हमें वोट,
हार उन्हे पहनाते रहे,
गणतंत्र-दिवस मनाते-मनाते,
 गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।
दिया किसी ने आरक्षण,
किसी ने सस्ती दालें दी,
खाकर सभाओं में लड्डू,
बस तालियां बजाते रहे,
गिराकर मंदिर-मस्जिद,
बस करा दिये दंगे,
उनको तो मिल गया राज,
हम व्यर्थ ही खून बहाते रहे।
हीरन सिंह  भी  एक  साथ,
रहते थे राम राज्य में,
हम सब तो हैं इनसान,
क्यों नफरत के शूल बिछाते रहे।
न देंगे हम अब वोट,
जाति, धर्म क्षेत्र के नाम पर,
पटेल, शास्त्रि की जगह हम,
गिरगिट, उलुओं को  जिताते रहे।

बुधवार, जनवरी 18, 2017

इस कड़ाके की सर्दी में... 

इस कड़ाके की सर्दी में,
वो इकठ्ठा परिवार ढूंढता   हूं।
 दादा दादी की कहानियां,
चाचा-चाची का प्यार ढूंढता   हूं...
खेलते थे अनेकों खेल,
लगता था झमघट बच्चों का,
मोबाइल, टीवी के शोर में,
बच्चों का संसार ढूंढता  हूं...
लगी रहती थी घर में,
अतिथियों  से रौनक,
पल-पल सुनाई देती आहटों में,
कोई पल यादगार ढूंढता   हूं...
बदल गया है अब समय,
 आग नहीं  अब हीटर जलते हैं,
न जाने क्यों मैं आज भी,
पुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...

शुक्रवार, जनवरी 13, 2017

दुनियां में।

हम आए अकेले, इस दुनियां में,
न लाए साथ कुछ दुनियां में,
शक्स ही रहे तो मर जाएंगे,
बनो शक्सियत इस दुनियां में।
जो भी मन में प्रश्न हैं,
उनका उत्तर गीता में पाओ,
जब ज्ञान दिया खुद ईश्वर ने,
क्यों भटक रहे हो दुनियां में।
जो ज्ञान न मिला भिष्म  को,
न द्रौण को, न विदुर को,
वो ही  ज्ञान अब  गीता का,
सब के पास है दुनियां में।
फिर भी सभि भ्रमित हैं,
अकारण ही चिंतित हैं,
न अर्जुन न दुर्योधन रहे,
उनके कर्म रहे इस दुनियां में।