इस कड़ाके की सर्दी में,
वो इकठ्ठा परिवार ढूंढता हूं।
दादा दादी की कहानियां,
चाचा-चाची का प्यार ढूंढता हूं...
खेलते थे अनेकों खेल,
लगता था झमघट बच्चों का,
मोबाइल, टीवी के शोर में,
बच्चों का संसार ढूंढता हूं...
लगी रहती थी घर में,
अतिथियों से रौनक,
पल-पल सुनाई देती आहटों में,
कोई पल यादगार ढूंढता हूं...
बदल गया है अब समय,
आग नहीं अब हीटर जलते हैं,
न जाने क्यों मैं आज भी,
पुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...
वो इकठ्ठा परिवार ढूंढता हूं।
दादा दादी की कहानियां,
चाचा-चाची का प्यार ढूंढता हूं...
खेलते थे अनेकों खेल,
लगता था झमघट बच्चों का,
मोबाइल, टीवी के शोर में,
बच्चों का संसार ढूंढता हूं...
लगी रहती थी घर में,
अतिथियों से रौनक,
पल-पल सुनाई देती आहटों में,
कोई पल यादगार ढूंढता हूं...
बदल गया है अब समय,
आग नहीं अब हीटर जलते हैं,
न जाने क्यों मैं आज भी,
पुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति हरिवंश राय 'बच्चन' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंअपनों के बीच प्यारे पल वे दिन ..इसलिए याद आते हैं बार बार ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 20 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहीं कहां ......... आज वो पल कहीं खो गए हैं
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
सुन्दर ....,
जवाब देंहटाएंnice post.....
जवाब देंहटाएंThanks For Sharing
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों मैं आज भी,
जवाब देंहटाएंपुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...।
वाह!!!
बहुत लाजवाब।