सोमवार, दिसंबर 25, 2017

इनकी शहादत तक भूल गये

 13 पौष तदानुसार    26 दिसंबर 1705 को    जब देश में मुगलों का शासन था और सरहिंद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के दो मासूम बेटों सात वर्ष के जोरावर सिंघ तथा पाँच वर्ष के फतेह सिंघ   को दीवार में जिंदा चुनवाया गया था....
कहते हैं कि  साहिबज़ादों को कचहरी में लाकर डराया धमकाया गया। उनसे कहा गया कि यदि वे इस्लाम अपना लें तो उनका कसूर माफ किया जा सकता है और उन्हें शहजादों जैसी
सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु साहिबज़ादे अपने निश्चय पर अटल रहे। उनकी दृढ़ता थी कि सिक्खी की शान केशों श्वासों के सँग निभानी हैं। उनकी दृढ़ता को
देखकर उन्हें किले की दीवार की नींव में चिनवाने की तैयारी आरम्भ कर दी गई किन्तु बच्चों को शहीद करने के लिए कोई जल्लाद तैयार न हुआ।
अकस्मात दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग अपने एक मुकद्दमें के सम्बन्ध में सरहिन्द आये। उन्होंने अपने मुकद्दमें में माफी का वायदा लेकर साहिबज़ादों
को शहीद करना मान लिया। बच्चों को उनके हवाले कर दिया गया। उन्होंने जोरावर सिंघ व फतेह सिंघ को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ
कर दी।
बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंघ के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंघ दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो
जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंघ छोटा हैं। दुनियाँ
में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंघ को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।
छोटे भाई फतेह सिंघ ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:
चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।।
इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।।
इन दोनों शहीदों को मेरा कोटी-कोटी नमन....




मैं पौष  हूं, मैंने देखे हैं,
महाभारत से युद्ध भी  होते हुए,
रक्त के सागर देखे हैं,
पर न  देखा मुझे कभी  रोते हुए....
रोता हूं मैं भी हरबार,
 याद आती है सरहिंद की दिवार,
जब  दो भाइयों को इसमे चिनवाते देखा,
छोटे के लिये बड़े को रोते देखा....
गंगु रसोइया , सुच्चा नँद ,
ये दोनों धब्बे हैं हिंदू  धर्म पर,
सबसे महान था वो पठान,
कहा नवाब से, इन पर दया कर....

धन्य है दशम  गुरु,
धन्य थे ये दोनों  लाल,
प्राण दिये पर धर्म न छोड़ा,
शहादत की   जलाई मशाल....
क्रिसमस और नव-वर्ष का,
हम खूब  जश्न मना रहे हैं,
इनकी शहादत   तक भूल गये,
सोचो हम कहां जा रहे हैं?....

शनिवार, दिसंबर 23, 2017

ओ जाते हुए वर्ष,

ओ जाते हुए वर्ष,
जब तु आया था,
जोष था, उमीदे थी,
सब ओर हर्ष छाया था....
मुझे भी प्रतीक्षा थी तेरी,
कई दिनों पहले से ही,
अभिनंदन मैंने भी किया था तुम्हारा,
उमीद में कुछ नये की....
पर तब मैं नहीं जानता था,
तु मेरे लिये  नया कुछ भी  नहीं लाया है,
जो तब मेरे पास था,
तु उसे मुझसे छीनने  आया है....
हम पुराने से अच्छा
नये को मानते हैं,
नया क्या लेकर आयेगा,
हम नहीं जानते हैं....
जब भी कुछ नया होता है,
अच्छा होगा, हम मन को बहलाते हैं,
होनी तो होकर रहती है,
चंद पलों के लिये खुश हो जाते हैं.....

गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

होनी....

नहीं करते कल्पना जिसकी,
जीवन में वो भी घट जाता है,
ये कैसे हुआ, क्यों हुआ,
आदमी सोचता रह जाता है....
नहीं जानता ये मनुज,
कल क्या होने वाला है,
वो तो अपने हिसाब से,
शुभ-शुभ सोचता जाता है.....
हमने अलिशान महल को,
खंडर होते देखा है,
हरे-भरे उपवन  को भी,
बंजर होते देखा है....
होनी तो होकर रहती है,
मानव चाहे जो भी कर,
वक्त एक दिन बदलेगा,
रख भरोसा ईश्वर पर.....

सोमवार, दिसंबर 04, 2017

अब प्रतीक्षा है हमे तुम्हारे निज धाम आने की...




<iframe>ओ श्री राम,
तुम्हे त्रेता में भी वनवास मिला
इस कलियुग में भी।
वो वनवास चौदह वर्ष के लिये था
ये वनवास न जाने कितना लंबा होगा....</iframe>
<iframe>अगर तुम्हे वनवास न मिलता,
अहिलया का उधार कैसे होता,
मां शबरी की इच्छा अधूरी रह जाती,
न सुगरीव को न्याय मिल पाता,
असुरों का विनाश कौन करता....</iframe>
<iframe>जब मिलता है तुम्हे वनवास
प्रसन्न होते हैं देवगण
क्योंकि वे जानते हैं
वनवास के दिनों में ही तुम,
धरा को असुरों से मुक्त करते हो....</iframe>
<iframe>न शक्ति थी किसी में
मंदिर का एक  पत्थर भी हिला सके,
धर्म की रक्षा के लिये ही
फिर तुम्हे धाम त्यागना पड़ा होगा,
ये  देवों की इच्छा से हुआ होगा....</iframe>
<iframe>ये आतंकवादी दानव
जालिम है असुरों से भी
ये जेहादी  बेवजह ही
कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं,
मुक्त कर दो धरा को इनसे...</iframe>
 <iframe>कांप रही है  धरा
भयभीत हैं देवगण
जेहादियों  के आतंग से
खतरे में है मानवता,
अब श्री राम पर ही विश्वास है....</iframe>


सोमवार, नवंबर 13, 2017

आओ हम बाल-दिवस मनाएं, इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,

मेरे भारत में सब के लिये रोटी हैं?
न जाने इन बच्चों को भोजन क्यों नहीं मिलता।
आंगनबाड़ी स्कूल में,
दोपहर का भोजन मिलता है,
डिपुओं में निशुल्क   भाव में,
ससता राषण दिया जाता है,
हर गाड़ी के आते ही,
क्यों ये हाथ फैलाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

ये किस पिता के लाल हैं,
ये किस मां की संतान हैं,
जो हर रोज यहां आते हैं,
केवल झूठन ही खाते हैं।
 माता-पिता का   करतव्य था,
 क्या केवल इन्हे जन्म देना?
पशु-पक्षी भी निज बच्चों के लिये,
भोजन खुद लाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

आओ हम बाल-दिवस मनाएं,
इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,
जिन माता-पिता ने इन्हे जन्म दिया,
रोटी देना भी उन्ही की जिमेवारी है,
जो पिता नशे  में मस्त हैं,
वो दंड के अधिकारी हैं।
कुछ पिता नशे के लिये,
सब कुछ ही खा जाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

सोमवार, अक्तूबर 23, 2017

हम भारत के मत दाता है....

हम भारत के मत दाता है....
हमारे पास मत देने का अधिकार
आज से नहीं त्रेता युग से है,
हमने तब भी
अपना मत दिया था
श्रीराम को राजा बनाने के लिये
"श्री राम हमारे राजा होंगे"
पर श्री राम को वनों में भेजा गया
हमने नहीं पूछा
तब भी राजा से
हमारे मत के अधिकार का क्या हुआ?
 हम भारत के मत दाता है....
हमारे पास मत देने का अधिकार
द्वापर में भी था
हमने सर्वमत से
युधिष्ठिर को राजा बनाया
पर शकुनी की एक चाल ने
द्युत खेल कर
पांचों पांडवों को वनवास भेज दिया।
हम महाभारत से युद्ध में
हाथी घोड़ों की तरह
मर सकते हैं,
पर राजा से
अपने मत के अधिकार के लिये
नहीं लड़ सकते।
 हम भारत के मत दाता है....
हैं तो हम बहुत भाग्यशाली
क्योंकि ये मत का अधिकार
आज भी हमारे पास हैं
शताबदियां बदल गयी
युग बदल गये
पर हम आज भी
नहीं बदले,
क्योंकि हम अपना मत देकर
आज भी नहीं पूछते
हमारे मत का क्या हुआ?

सोमवार, अक्तूबर 16, 2017

हम  जलाएंगे  दीपक करेंगे  प्रकाश, तुम्हारे लिये....

तुम बिन पिताजी
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम  जलाएंगे  दीपक
करेंगे  प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम  जानते हैं
तुम्हे अपने  घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम  ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
 एक दीपक अवश्य जलाएंगे....

शुक्रवार, अगस्त 18, 2017

....हमारी ओर से भी अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....

आज़ादी की 71वीं वर्षगाँठ पर
पूछता हूं मैं,
भ्रष्ट नेताओं से
बिके हुए अधिकारियों से,
  स्वतंत्रता दिवस पर
या गणतंत्रता दिवस पर
तुम तिरंगा क्यों लहराते हो?
...तुम  क्या जानो  तिरंगे का मोल...


एक वो थे,
जो आजादी के लिये मर-मिटे
एक ये हैं,
जो आजादी को मिटा रहे
नेताओं को  चंदा मिल रहा,
और अधिकारियों को कमिशन
फिर राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाते हो?
...तुम क्या जानों इन पर्वों  का मोल....
कल हम अंग्रेजों के गुलाम थे,
और आज भ्रष्टाचार के
कल जयचंद के कारण गुलाम हुए,
आज भी कुछ लोग हैं उसी  परिवार के,
जो रक्षकों पर पत्थर बरसा रहे,
चो वंदे मातरम न गा रहे,
 होने वाला है कृष्ण का अवतार अब,
...तुम क्या जानो श्री-कृष्ण कौन है....
देख लिया कौरवों को
हस्तिनापुर देकर भी,
हमारे बापू भिष्म ने
झेली पीड़ा विभाजन की।
अब न तुम्हारे पास भिष्म है
न द्रौण, न करण,
तुम्हारे पास भले ही आज भी  शकुनी है,
....हमारी ओर से भी  अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....

गुरुवार, जुलाई 20, 2017

ओ गुड़िया!


ओ गुड़िया!
तुम ने भी तो
हवस के उन दरिंदों से
अपनी रक्षा के लिये.
द्रौपदी   की तरह
ईश्वर को ही
पुकारा  होगा
पर तुम्हे बचाने 
....ईश्वर भी नहीं आए....

ओ गुड़िया!
तुम भी तो
उसी देश की बेटी थी
जहां बेटियों को
 देवी समझकर पूजा जाता है
जहां की संस्कृति  में
कन्या ही दुर्गा का रूप है.
ओ मां चंडी!
क्या कलियुग में तुम ने   भी
असुरों को दंड देना छोड़ दिया?
....ये जालिम  तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....

 ओ गुड़िया!
तुमने भी सपने देखें थे
झांसी की रानी,  कल्पना चावला
और भी ऊंची उड़ान भरने के,
ऊंची  उड़ान भरने से पहले ही
 तुम्हे नोच दिया
उन जालिम दरिंदों ने.
न तुम रो सकती हो अब
न तुम जी सकती थी अब
...तुम्हे पाषाण बना दिया है  इन जालिमों ने....

ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
 मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
 एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
 लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....

मंगलवार, जुलाई 11, 2017

पर सब ईश्वर नहीं बनते।....

[दिनांक 28 जून 2017 को पूजनीय पिता श्री की समृति में जन सेवा के उदेश्य से एक पीने के पानी का नल स्थापित किया गया साथ ही पूजा उपरांत पिता जी की फोटो दिवार पर स्थापित की गयी]
 ओ पिता जी
अब तो तुम भी
ईश्वर बन गये हो,
तभी तो
ईश्वर की तसवीर के साथ
तुम्हारी तसवीर भी
हार पहनाकर
दिवार पर टांग दी गयी है....

ये तुम्हारी तसवीर भी
जैसे मानो कह रही हो हम से
मैं मरा नहीं,
अभी भी   जीवित  हूं,
घर की हर चीज में,
तुम्हारी यादों में भी।
मरते तो हर रोज कई हैं।
पर सब ईश्वर  नहीं बनते।....




शनिवार, जून 24, 2017

पर खुद भूखे मर रहे हैं।

किसान आज से नहीं,
सदियों से आत्महत्या कर रहे हैं,
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
मैंने एक और किसान कि
 आत्महत्या के बाद
आंदोलन कर रही भीड़ के
एक बूढ़े किसान से पूछा
वो किसान क्यों मरा?
"बेटा वो मरा नहीं
आज तो वो   जिवित हुआ,
मरा तो वो पहले कई बार,
  एक बार नहीं हजार बार
न तब कोई आंदोलन हुए,
न कोई चर्चा,
ये केवल वोट के भूखे,
इस आग को सुलगा रहे हैं"
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
वो बुढ़ा किसान
कांपते स्वर में फिर बोला,
"ये आंदोलन थम जाएगा,
एक और किसान की आत्महत्या तक,
यही  हुआ है, होगा भी यही,
बंटे  हुए हैं जब तक किसान,
जब तक हम सभी किसान,
आत्महत्या कर रहे किसानों की पीड़ा को
अपनी पीडा नहीं मान लेते,
 आंदोलन हम स्वयम् नहीं,
इशारों से करते रहेंगे,
तब तक किसान भी
आत्महत्या करते ही रहेंगे।
हमे आपस में बांट कर,
वो  कुर्सी के लिये पथ बना रहे हैं"
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।


सोमवार, मई 22, 2017

ओ मेरे  पूज्य    पिता जी,


[दिनांक 30 अप्रैल 2017 को मेरे पूजनीय पिता जी श्री ठाकुर  ईश्वर सिंह इस भू लोक को त्याग कर चले गये...
जीवन में उनकी कठिन तपस्या से ही आज हम   सुखद जीवन जी पा रहे हैं....]
"हे ईश्वर मेरे पूजनीय पिता जी को....अपने पावन चरणों में स्थान देना...."

ओ मेरे  पूज्य    पिता जी,
कल तक मैं
खुद को  दुनिया का
 सब से बड़ा आदमी  समझता था
क्यों कि मेरे सिर पर
 तुम्हारा हाथ था....
हम नहीं जानते
हम कौन हैं,
पर तुम भिष्म थे,
जिन्होंने  हमारे घर रूपी हस्तिनापुर को
चारों ओर से सुर्क्षित कर के ही,
ये भू लोक त्यागा...
जब से दुनिया में आएं हैं,
न ईश्वर को देखा कभी
ब्रह्मा   थे तुम
हमे जन्म देने वाले,
विष्‍णु    थे तुम ही
हमारा पालन करने वाले....
तुम तो
नील-कंठ शिव थे,
जिन्होंने हमे तो अमृत दिया,
पर हमारे भाग का
सारा विष ही,
आजीवन ही पीते रहे....
मैं जानता हूं
राजा-महाराजाओं की तरह
तुम्हारा इतिहास नहीं लिखा जाएगा,
जिन पर तुमने उपकार किये थे,
वो भी भूल जाएंगे तुम्हे,
पर मेरे मन मंदिर में तो तुम,
कभी नहीं मरोगे....



मंगलवार, अप्रैल 11, 2017

...केवल संस्कार दो...

शूल की चुभन,
बहुत पीड़ा देती है,
पर शायद
उतनी पीडा नहीं,
जितनी फूल की चुभन,
....देती है....
वो बेटे
भूल चुके हैं  सब कुछ
अपने  मां-बाप को भी,
उन के सप नों को भी,
जिन्हे  याद है अब
...केवल नशा ...
जो माएं
मांगती रही दुआ
लंबी आयु की
अपने बेटों  के लिये
आज वो भी अपनी दुआ में,
....
अपनी खुशियांं  ही मांग रही है...
वो माएं   सब से
यही कह रही है
बच्चों  के लिये
न मांगो लंबी आयु की दुआ
न धन दौलत
...केवल संस्कार दो...

बुधवार, फ़रवरी 01, 2017

तुम बैठे हो आसन पर आज हम शोर मचाएंगे,

तुम बैठे हो आसन  पर
आज हम शोर मचाएंगे,
तुम्हारे अच्छे कामों को भी,
मिट्टी में ही  मिलाएंगे...
तुमने भी यही किया,
अब हम भी यही करेंगे,
पहले तुमने हमे गिराया,
अब फिर   तुम्हे गिराएंगे...
जंता तो है घरों में बैठी,
वो क्या जाने सत्य क्या है,
किसी पर झूठे आरोप लगे हैं,
कोई दोषी  भी बच जाएंगे...
कभी जो  गले मिलते थे,
आज हाथ भी नहीं मिलाते,
ये राजनितिक समिकरण है भाई,
क्या पता फिर एक हो जाएंगे...
कभी दल बदला, कभी दल बनाया,
कभी गधे को भी बाप बनाया,
जानते हैं ये जनता को,
कुछ दिनों में सब भूल जाएंगे...


शनिवार, जनवरी 28, 2017

हम हिंदूस्तान को भूल गये,

इंडिया-इंडिया कहते-कहते,
हम हिंदूस्तान को भूल गये,
आजाद हो गये लेकिन फिर भी,
अपनी पहचान ही भूल गये।...
जलाते हैं दिवाली में पटाखे,
खेलते हैं रंगों से होली,
याद रहा रावण को जलाना,
राम-कृष्ण को भूल गये...
नहीं पता अब बच्चों को,
बुद्ध,  महावीर, गोविंद  कौन हैं?
मुगलों का इतिहास याद है,
पृथवीराज, राणा को भूल गये...
मां-बाप को आश्रम में भेजकर,
घर में हैं  कुत्ते  पाले,
फेसबुक, ट्वीटर   पर  दोस्त कई हैं,
अपने परिवार को भूल गये...
इतिहास में पढ़ाते हैं,
कब कब किसने यहां शासन किया,
हम क्यों विदेशियों के  गुलाम हुए,
ये पढ़ाना ही भूल गये...
वापिस लाओ, अपना  स्वर्णिम अतीत,
वो संस्कृति, वो सभ्यता,
वर्ना हो जाएंगे फिर गुलाम,
अगर भारत को भूल गये...

शुक्रवार, जनवरी 27, 2017

गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।

जो समझते रहे हमें वोट,
हार उन्हे पहनाते रहे,
गणतंत्र-दिवस मनाते-मनाते,
 गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।
दिया किसी ने आरक्षण,
किसी ने सस्ती दालें दी,
खाकर सभाओं में लड्डू,
बस तालियां बजाते रहे,
गिराकर मंदिर-मस्जिद,
बस करा दिये दंगे,
उनको तो मिल गया राज,
हम व्यर्थ ही खून बहाते रहे।
हीरन सिंह  भी  एक  साथ,
रहते थे राम राज्य में,
हम सब तो हैं इनसान,
क्यों नफरत के शूल बिछाते रहे।
न देंगे हम अब वोट,
जाति, धर्म क्षेत्र के नाम पर,
पटेल, शास्त्रि की जगह हम,
गिरगिट, उलुओं को  जिताते रहे।

बुधवार, जनवरी 18, 2017

इस कड़ाके की सर्दी में... 

इस कड़ाके की सर्दी में,
वो इकठ्ठा परिवार ढूंढता   हूं।
 दादा दादी की कहानियां,
चाचा-चाची का प्यार ढूंढता   हूं...
खेलते थे अनेकों खेल,
लगता था झमघट बच्चों का,
मोबाइल, टीवी के शोर में,
बच्चों का संसार ढूंढता  हूं...
लगी रहती थी घर में,
अतिथियों  से रौनक,
पल-पल सुनाई देती आहटों में,
कोई पल यादगार ढूंढता   हूं...
बदल गया है अब समय,
 आग नहीं  अब हीटर जलते हैं,
न जाने क्यों मैं आज भी,
पुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...

शुक्रवार, जनवरी 13, 2017

दुनियां में।

हम आए अकेले, इस दुनियां में,
न लाए साथ कुछ दुनियां में,
शक्स ही रहे तो मर जाएंगे,
बनो शक्सियत इस दुनियां में।
जो भी मन में प्रश्न हैं,
उनका उत्तर गीता में पाओ,
जब ज्ञान दिया खुद ईश्वर ने,
क्यों भटक रहे हो दुनियां में।
जो ज्ञान न मिला भिष्म  को,
न द्रौण को, न विदुर को,
वो ही  ज्ञान अब  गीता का,
सब के पास है दुनियां में।
फिर भी सभि भ्रमित हैं,
अकारण ही चिंतित हैं,
न अर्जुन न दुर्योधन रहे,
उनके कर्म रहे इस दुनियां में।