गुरुवार, अक्तूबर 29, 2015

जिंदगी की किताब...

मैं
वर्षों से
जिंदगी पर
एक किताब लिख रहा था...
हर दिन
सोचता था
आज ये किताब
पूरी हो जाएगी...
पर तभी
अतीत की
कोई न कोई घटना
याद आ जाती थी.....
एक के बाद एक
नया पन्ना
मेरी किताब में
शामिल हो रहा था...
पर कल
देखा मैंने
पुराने लिखे पनेने
दिमकों ने नष्ट कर दिये हैं...
मैंने
नष्ट हुए
सारे पन्ने
निकाल कर फैंक दिये...
अब मेरी
ये किताब
बचे हुए
पन्नों के साथ ही पूरी होगी...

गुरुवार, अक्तूबर 22, 2015

पावन चरित्र सीता का...

श्री राम
सामान्य पुरूष नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम
आदर्श राजा थे...
ईश्वर थे
भले ही राम
पर सीता   के बिना
 पूर्ण  नहीं थे...
सुख में भी
वो  साथ   रही
दुख  में भी
साथ दिया...
महलों में रही
या वनों में
पालन किया
पतिव्रत धर्म  का...
अगर न होती
अग्नि परीक्षा
 शंका के बादल
बार-बार घिर आते...
आदर्श राजा
कहलाते कैसे
रघु-कुल की रीत
बचाते कैसे...
अग्नि परीक्षा
ने दिखाया  जग को
पावन चरित्र
 सीता का...  
न छुह सका रावण
न जला सकी अग्नि
देकर अग्नी  परीक्षा
सर्वश्रेष्ठ,   बनी...
श्री राम ने
नारी का
सदा ही
 संमान किया......
राम को जानो
 सीता  को पहचानो
राजा के धर्म को 
अन्याय न कहो...


मंगलवार, अक्तूबर 20, 2015

राम नहीं मिलते...

आज हम
अपने बच्चों को
उच्च शिक्षा देकर
बड़ा  आदमी बनाने का
ख्वाब देखते हैं
ख्वाब पूरा भी हो जाता है...
पर हम भूल जाते हैं
उच्च शिक्षा के साथ
बच्चों के सामने
चरित्र निर्माण के लिये
राम का चरित्र होना चाहिये... 
इसी लिये आज
रावण की तरह
बड़े तो बहुत हैं
भरत, Laxman,
राम नहीं मिलते...

शुक्रवार, अक्तूबर 16, 2015

विश्वास....

जब तक
विश्वास था
 मुझे तुम पर
अटूट प्रेम था
मुझे तुम से...
जिंदगी
 और रंग-मंच
एक नहीं
 अलग हैं
जिंदगी हकीकत है....
विश्वास तोड़ने
से पहले ही
तुम कह देती
मैं मिट जाता
प्रेम  तो न मरता....
विश्वास
मात्र  शब्द नहीं
हृदय में
प्रेम का दीप
जलाने वाला तेल है....
जब तक तेल है
दीपक में
जलता है दीपक
 तब तक ही
वर्ना दीपक  दिखावा है...

गुरुवार, अक्तूबर 15, 2015

पुष्प और कवि....

मैं पुष्प हूं
भावनाओं से युक्त
मुझे माली नहीं
कवि प्रीय है...
कवि  मुझे
कभी नहीं तोड़ता
न वो केवल
सौंदर्य ही देखता है...
वो  अक्सर
आता है
पूछता है मुझसे
मेरे मन की बात...
दिखावा तो
करते हैं सब
प्रेम हम से भी
करता है कवि ही...
मुझे माली ने
लगाया भी
और पाला भी
पर स्वार्थ के लिये...
कौन कहता है
मैं नशवर हूं
मेरा मिटना तो
परोपकार का संदेश है...

सोमवार, अक्तूबर 05, 2015

हमेशा के लिये ही...

ऐ आंसू
मैं रिणी हो गया
आज से तुम्हारा
शायद ये रिण
न चुका पाऊंगा
आजीवन ही...
मन  से निकलकर
 तुम आँखों में उतरे
 मैंने देखा तुमको
गिरते हुए भी
क्षण भर में ही
तुम गये कहां
दे कर  शीतलता
मेरे मन को...

तुमने मेरा साथ
दिया तब
जब मैं अकेला ही
अपने मन का दर्द
मन में दबाए
भटक रहा था
उस परवाने की तरह
शमा ने जिसे
जलाना  तो चाहा
पर उसके प्राण नहीं निकल सके...

तुम सा
परोपकारी भी
कौन होगा जग में
ले गया बहाकर
मेरे मन  के दर्द को
और खुद मिट गया
हमेशा के लिये ही...