मैं
वर्षों से
जिंदगी पर
एक किताब लिख रहा था...
हर दिन
सोचता था
आज ये किताब
पूरी हो जाएगी...
पर तभी
अतीत की
कोई न कोई घटना
याद आ जाती थी.....
एक के बाद एक
नया पन्ना
मेरी किताब में
शामिल हो रहा था...
पर कल
देखा मैंने
पुराने लिखे पनेने
दिमकों ने नष्ट कर दिये हैं...
मैंने
नष्ट हुए
सारे पन्ने
निकाल कर फैंक दिये...
अब मेरी
ये किताब
बचे हुए
पन्नों के साथ ही पूरी होगी...
वर्षों से
जिंदगी पर
एक किताब लिख रहा था...
हर दिन
सोचता था
आज ये किताब
पूरी हो जाएगी...
पर तभी
अतीत की
कोई न कोई घटना
याद आ जाती थी.....
एक के बाद एक
नया पन्ना
मेरी किताब में
शामिल हो रहा था...
पर कल
देखा मैंने
पुराने लिखे पनेने
दिमकों ने नष्ट कर दिये हैं...
मैंने
नष्ट हुए
सारे पन्ने
निकाल कर फैंक दिये...
अब मेरी
ये किताब
बचे हुए
पन्नों के साथ ही पूरी होगी...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.10.2015) को "आलस्य और सफलता "(चर्चा अंक-2145) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
जिंदगी की किताब कभी पूरी नहीं होती न हो सकती है। ज़िंदगी की तो सागर की उन लहरों की तरह होती है जो अनगिनत होती है। ठीक उसी तरह ज़िंदगी जब तक ज़िंदगी है एनआईटी नया रंग नित नया पल देती ही रहती है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग से पैसे कमाए । क्लिक कर अकाउंट बनाए और एड द्वारा पैसे कमाए ।http://www.revenuehits.com/lps/v41/?ref=@RH@hO_s2e6JclRo7OroF4JNeA
जवाब देंहटाएंसमय. की दीमक कुछ क्या सारे ही पन्ने नष्ट कर देती है एक दिन।
जवाब देंहटाएंBahut Umda Rachna
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