उस दिन मैं, जब मिला था तुम से,
वो दिन याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...
साक्षी है वो वृक्ष आज भी,
छाया मैं जिसकी बैठे थे,
मंद-मंद वो शीतल पवन,
देती है शीतलता, आज भी मुझ को...
चाहता था मैं साथ चलना,
तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को...
शायद तुम भूल गयी हो,
वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
प्रेम के फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...
वो दिन याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...
साक्षी है वो वृक्ष आज भी,
छाया मैं जिसकी बैठे थे,
मंद-मंद वो शीतल पवन,
देती है शीतलता, आज भी मुझ को...
चाहता था मैं साथ चलना,
तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को...
शायद तुम भूल गयी हो,
वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
प्रेम के फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...
बहुत सुंदर रचना कुलदीप ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर....
हटाएंइसी प्रकार स्नेह रखें...
सादर।
आदरणीय शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंआपने मुझे मंच पर चर्चा में स्थान दिया आभार...
चाहता था मैं साथ चलना,
जवाब देंहटाएंतुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को..
बेमिसाल अभिव्यक्ति
स्नेहाशीष
आप का धन्यवाद...
हटाएंइसी प्रकार आशीश मिलता रहेगा...
बहुत सुन्दर यादों का सफ़र !
जवाब देंहटाएंकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
धन्यवाद...
हटाएंशायद तुम भूल गयी हो,
जवाब देंहटाएंवो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
प्रेम के फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...
--यही तो सच्चा प्यार है। .
बहुत बढ़िया
आप का बहुत बहुत धन्यवाद...
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लौग पर आये, टिप्पणी देकर मेरा मान बढ़ाया...
हटाएंआभार।
खुबसूरत रचना....
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