कुंति गांधारी और द्रौण
ये सभी जीवन भर
करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
एक अध्यापक से
पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता है...
पांडव धर्म के पथ पे चले
क्योंकि उन्हे श्रीकृष्ण मिले
कौरवों को साथ मिला
कपटी शकुनी का
वो अधर्मी बनाए गये...
मां केकेयी धर्मआत्मा थी
सब से प्रीय थे उसे राम
मंथरा की प्रेर्णा से
एक असंभव कार्य को भी
पल भर में संभव किया...
मैं सोचता हूं कि
वास्तविक चरित्र निर्माण
संगत से होता है
जैसी संगत होती है
वैसी ही रंगत दिखती है...
कोई आसमान छूता है
या तबाह होता है
ये उस पर निर्भर नहीं करता
ये उसके मित्र, साथी या
प्रेरक पर निर्भर करता है...
ये सभी जीवन भर
करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
एक अध्यापक से
पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता है...
पांडव धर्म के पथ पे चले
क्योंकि उन्हे श्रीकृष्ण मिले
कौरवों को साथ मिला
कपटी शकुनी का
वो अधर्मी बनाए गये...
मां केकेयी धर्मआत्मा थी
सब से प्रीय थे उसे राम
मंथरा की प्रेर्णा से
एक असंभव कार्य को भी
पल भर में संभव किया...
मैं सोचता हूं कि
वास्तविक चरित्र निर्माण
संगत से होता है
जैसी संगत होती है
वैसी ही रंगत दिखती है...
कोई आसमान छूता है
या तबाह होता है
ये उस पर निर्भर नहीं करता
ये उसके मित्र, साथी या
प्रेरक पर निर्भर करता है...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'