जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
जनतंत्र ही होगा,
राज्य राम का
न खंडित होगा
न होता जयचंद
हम गुलाम न होते,
कई सदियों तक
गुम नाम न होते।
हमे एक दल नहीं
स्वदेश चाहिये,
केवल देश नहीं
अखंड भारत देश चाहिये।
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
जनतंत्र ही होगा,
राज्य राम का
न खंडित होगा
न होता जयचंद
हम गुलाम न होते,
कई सदियों तक
गुम नाम न होते।
हमे एक दल नहीं
स्वदेश चाहिये,
केवल देश नहीं
अखंड भारत देश चाहिये।
बेहद प्रभावशाली.....बहुत बहुत बधाई.....
जवाब देंहटाएं