मेरी भारतीय रुह भी
आहत होती है
ऊधम सिंह की
रुह की तरह
जब देखती हैं मानव संहार
कहीं भी
भारत से दूर
मदन लाल ढींगरा
या ऊधम सिंह की
फांसी की खबर सुनकर
वो भी बहुत रोई थी
अपने वतन में
अपनों के साथ।
भगत सिंह, सुखदेव
और राजगुरु
की फांसी से
भारत मां के साथ
मेरी रुह भी
आहत है आज तक
आज तक मेरी रुह
फांसी को केवल
निर्मम हत्या मानती थी
क्योंकि ये सब निर्दोष थे
फांसी केवल
निर्दोषों को मिला करती थी।
पर आज जब
अफजल, कसाब
या मेमन को
फांसी दी गयी
मेरी आत्मा आहत नहीं हुई
क्योंकि वो भी भारतीय है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-08-2015) को "गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम" {चर्चा अंक-2054} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गुरू पूर्णिमा तथा मुंशी प्रेमचन्द की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सही
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