हर राज सब को बताए नहीं जाते,
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर जिंदगी यूं तो
एक फूल की तरह होती है
खिलते हैं फूल प्रेम से
नफरत से हैं मुर्झाते...
कौन कहता है
आदमी एक बार मरता है,
दुनिया के ठुकराए हुए,
बस दफनाए नहीं जाते...
कहने वाले समझते हैं
वो अब हमारा घर है,
मासूम हैं वो कहने वाले
जो मकान को घर हैं बताते...
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर जिंदगी यूं तो
एक फूल की तरह होती है
खिलते हैं फूल प्रेम से
नफरत से हैं मुर्झाते...
कौन कहता है
आदमी एक बार मरता है,
दुनिया के ठुकराए हुए,
बस दफनाए नहीं जाते...
कहने वाले समझते हैं
वो अब हमारा घर है,
मासूम हैं वो कहने वाले
जो मकान को घर हैं बताते...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-12-2015) को "पल में तोला पल में माशा" (चर्चा अंक-2203) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर अल्फाज.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं।
जवाब देंहटाएं