आता हूं मैं मंदिर में,
निर्मल मन से, धूप जलाने,
ईश्वर मेरी सुनें, न सुनें,
आता हूं मैं अपनी सुनाने...
राम-नाम का एक शब्द,
महकाता है मेरी रुह को,
शोर-गुल से दूर यहां,
आता हूं मैं मन बहलाने...
कभी खोना, कभी पाना,
होता रहता है जीवन में,
आता हूं कभी नम आंखों से,
कभी खुशियों के पल बिताने...
अरज है बस एक मेरी,
बुलाते रहना इस दर पे,
आता रहूं, पुष्प लेकर,
बस तुम्हारा आशीश पाने...
निर्मल मन से, धूप जलाने,
ईश्वर मेरी सुनें, न सुनें,
आता हूं मैं अपनी सुनाने...
राम-नाम का एक शब्द,
महकाता है मेरी रुह को,
शोर-गुल से दूर यहां,
आता हूं मैं मन बहलाने...
कभी खोना, कभी पाना,
होता रहता है जीवन में,
आता हूं कभी नम आंखों से,
कभी खुशियों के पल बिताने...
अरज है बस एक मेरी,
बुलाते रहना इस दर पे,
आता रहूं, पुष्प लेकर,
बस तुम्हारा आशीश पाने...
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का...
हटाएंउसके दरवाजे तो हमेशा खुले रहता हैं ... सच्चे मन से आने की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने...
हटाएंधन्यवाद।
अपनी सुना और चलता बन।
जवाब देंहटाएं--
हाँ ...यही तो हो रहा है अब।
धन्यवाद सर...
हटाएंइंसान केवल अपना कष्ट को ही सुनाता है ,उनकी इशारा नहीं समझता !
जवाब देंहटाएंरब का इशारा
धन्यवाद सर....
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आप का...
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