शनिवार, मार्च 16, 2013

मिलन न होगा...

कहा था तुमने कभी मुझसे,
सदा मुस्कुराना...
होंठों की इस मुस्कान को,
कभी न मिटाना...

उस वक्त मैंने भी आप से ये
वादा किया था...
तुम्हारे प्रेम  का तुम से,
सुंदर तोफा लिया था...
न जान सका तुम कहां गई,
नामुमकिन था तुम्हे भूल जाना...

फिर तुमसी जीवन में कोई और मिली,
चंद क्षणों के लिए प्रेम की कली खिली,
सोचा तुम फिर आ गयी,
पर वो तुम नहीं थी...
वो मिटाने आई थी मेरे अधरों की मुस्कान,
वो नागिन है, मैंने न पहचाना...
अब न प्रीय तुम हो,
न अब वो पहले सी  मुस्कान है,
तुम कहां हो, मैं कहां हूं,
हम दोनों ही अंजान  है...
मिलन न होगा चाहत है दिल में,
भाता है मन को, तुम पर कविता बनाना...

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया आदरणीय-

    सौतन से मिल लो जरा, जहर पिलाती आय |
    युगल अधर चिपके पड़े, देह अधर में जाय ||

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात :)
    होंठों की इस मुस्कान को,
    कभी न मिटाना...
    शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं

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