न रह गयी है रिशतों में पावनता, लहू तो वन गया है पानी,
न रह गयी कोई मर्यादाएं, परमप्रायें बन गयी है कहानी।
टूट गये दिलों के बन्धन, न आपसी भाईचारा है,
पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।
बचपन बीत जाता है, चन्द किताबे पढ़ने में,
कट जाती है जवानी, धन अर्जन
करने में,
बुढ़ापे में आकर जग, ढूंढ़ता कोई सहारा है,
पैसे का जनून है सब को, बदली
जीवन की धारा है।
बन्द कमरे में बैठा जन, मशीनों का दास है,
प्रकृति प्रेम से वंचित, गुमसुम और उदास है।
लबों पर कृत्रिम हंसी, काँति हीन सितारा है।
पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।
अशांत मन अतृप्त आंखे, महत्वाकांक्षी इनसान है,
पथभ्रष्ट हो गया है, न मंजिल का ज्ञान है।
लड़ाई और षड़यंत्रों में, जाता
जीवन सारा है,
पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।
यथार्थ का आईना दिखती पोस्ट .समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.co.uk/
जवाब देंहटाएंगाफिल जी अति व्यस्त हैं, हमको गए बताय ।
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना देख के, चर्चा मंच ले आय ।
भौतिक सुख के वास्ते,लगी हुई है होड़
जवाब देंहटाएंनाता धन से जोड़ते , रिश्ते नाते तोड़
रिश्ते नाते तोड़ ,मोड़ते मुख अपनों से
मिला किसे सुखधाम,तिलस्मी इन सपनों से
निर्मल निश्छल नेह, बिना सुख नहीं अलौकिक
लगी हुई है होड़,कमाने को सुख भौतिक ||
सुंदर भाव, सार्थक रचना......
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती सुंदर रचना
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जवाब देंहटाएंन रह गयी है रिशतों में पावनता, लहू तो वन गया है पानी,.........रिश्तों ........
न रह गयी कोई मर्यादाएं, परमप्रायें बन गयी है कहानी।................परम्पराएं बन गईं हैं ,कहानी
अशांत मन अतृप्त आंखे, महत्वाकांक्षी इनसान है,........इंसान है .........
पथभ्रष्ट हो गया है, न मंजिल का ज्ञान है।
हमारे वक्त से सीधे संवाद करती है यह रचना ,दो टूक प्रेक्षण आज के निस्संग मशीनी साईबोर्ग का ,चुकती संवेदनाओं का रोबोटीय इंतजाम का .राष्ट्रीय फलक भी तो इससे
जुदा नहीं .बहुत बढ़िया रचना .समीक्षा स्पैम बोक्स खा जाएगा स्साला कांग्रेसी है .सर्वभक्षी है .
बहुत बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:- ओ कलम !!
यथार्थ परक बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंपैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।
जवाब देंहटाएंसत्य है