रविवार, अक्तूबर 14, 2012

कुर्सी की पूजा


सुबह सुबह मैंने देखा, धूप देते नेता जी को।

वो भी आज कर रहे हैं पूजा  भगवान को गाली देते थे जो।


सारी सामग्री थी पूजा  की, मुर्ति वहाँ  न थी किसी की।

ये सोचकर मैं हुआ हैरान, कौन है नेता जी का भगवान,


मैंने उन पर व्यंग्य किया, उन्हे पुजारी का नाम दिया।

ये सुन उसने कहा मुझे, सच्चाई बताता हूँ तुझे,


भगवान को किसने  देखा है, कौन जाने कहाँ है वो,

पूजा  भी उसकी करो, वर्तमान में यहाँ है जो।


मैं कुर्सी की पूजा  करता हूँ, चुनाव में हारने से डरता हूँ।

मैंने हैं कयी सपने सजाये, बस एक बार कुर्सी मिल जाये।


इस कुर्सी पर बैठकर  मैं, अरब पती  बन जाऊंगा।

तेरे खुदा को पूजकर,  क्या खाक मैं पाऊंगा।


करके असंख्य घुटाले में,गिनिज़ में नाम लिखवाऊंगा,

इस वतन को बेचकर मैं, धनवान बन जाऊंगा।

4 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  2. :):) सही है .....कुर्सी का ही बोलबाला है

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ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
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