बोझ बैग का उठाना है मुशकिल,
करेंगे कैसे ये पढ़ाई,
खेल के लिये वक्त नहीं है,
चेहरे पे है उदासी छाई...
पग-पग पे स्कूल खुले हैं,
फिर घरों में बच्चे क्यों?
सरकार की दूरदर्शी योजनाएं,
सेवाएं क्यों न काम आयी...
अभी बोलना भी न सीखा,
कैसे पढ़ेगा वो किताब,
बनाना चाहते हैं बच्चों को मशीन,
जैसे मानव ने है मशीन बनाई...
दिनभर स्कूल, शाम को ट्यूशन,
अब हमेशा ही है टैस्ट की चिंता,
प्रथम आना है कक्षा में,
मां बाप ने ये रट है लगाई...
वो शिक्षा क्या, जिससे बचपन मुर्झाए,
खेल खेल में बच्चों को पढ़ाएं,
प्रकृति से न इन्हे दूर ले जाएं,
वेदों में ये बात समझाई...
करेंगे कैसे ये पढ़ाई,
खेल के लिये वक्त नहीं है,
चेहरे पे है उदासी छाई...
पग-पग पे स्कूल खुले हैं,
फिर घरों में बच्चे क्यों?
सरकार की दूरदर्शी योजनाएं,
सेवाएं क्यों न काम आयी...
अभी बोलना भी न सीखा,
कैसे पढ़ेगा वो किताब,
बनाना चाहते हैं बच्चों को मशीन,
जैसे मानव ने है मशीन बनाई...
दिनभर स्कूल, शाम को ट्यूशन,
अब हमेशा ही है टैस्ट की चिंता,
प्रथम आना है कक्षा में,
मां बाप ने ये रट है लगाई...
वो शिक्षा क्या, जिससे बचपन मुर्झाए,
खेल खेल में बच्चों को पढ़ाएं,
प्रकृति से न इन्हे दूर ले जाएं,
वेदों में ये बात समझाई...
सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 1 . 10 . 2014 दिन बुद्धवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
जी बिल्कुल सही मुद्दा उठाया है आपने। सुन्दर प्रस्तुति। स्वयं शून्य
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