न खुश हैं
वो
जिन के पास
पैसा बेशुमार हैं।
सोने के लिये
मखमल के बिसतर है
पर क्या करे
नींद नहीं आती।
भूख नहीं लगती
देखो उन्हे
जिनका एक वक्त का खाना ही
हजार जनों की रोटी से महंगा है...
क्योंकि वो
भाग रहे हैं
पैसे के पीछे
पैसा फिर भी कम लगता है।
वो और तेज
भागते हैं
जब नींद आना चाहती है
या खाने का वक्त होता है।
भाग्यशाली वो नहीं
जिसके पास सब कुछ है,
नसीब उसका है
जो थोड़े में आनंद लेता है...
वो
जिन के पास
पैसा बेशुमार हैं।
सोने के लिये
मखमल के बिसतर है
पर क्या करे
नींद नहीं आती।
भूख नहीं लगती
देखो उन्हे
जिनका एक वक्त का खाना ही
हजार जनों की रोटी से महंगा है...
क्योंकि वो
भाग रहे हैं
पैसे के पीछे
पैसा फिर भी कम लगता है।
वो और तेज
भागते हैं
जब नींद आना चाहती है
या खाने का वक्त होता है।
भाग्यशाली वो नहीं
जिसके पास सब कुछ है,
नसीब उसका है
जो थोड़े में आनंद लेता है...
बहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंमातृत्व की तैयारी
सच संतोष से बढ़कर कोई धन नहीं ..लेकिन संतोष किसी को नहीं सब भागे जा रहे है पैसे के पीछे पीछे और इंसानियत दूर होती जा रही है
जवाब देंहटाएंकहा गया है ..
सच संतोष से बढ़कर कोई धन नहीं ..
जब आवे संतोष धन सब धन धूरि सामान
सटीक रचना ।
जवाब देंहटाएंमेरी २००वीं पोस्ट में पधारें-
"माँ सरस्वती"