मंगलवार, फ़रवरी 09, 2016

पथ और मंजिल।

मेरा हर कदम
बढ़ रहा है
यूं तो
मंजिल की ओर ही।
पर मुझे
मंजिल नहीं
प्रीय तो
पथ ही है।
आज मेरे पास
केवल पथ है
मंजिल तो
कोसों दूर है।
मंजिल तो
मिले न मिले
 पथ तो
मेरे पास है।
जब मिला मुझे
ये पथ
चाह हुई तभी
मंजिल पाने की।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-02-2016) को ''चाँद झील में'' (चर्चा अंक-2248)) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    चर्चा मंच परिवार की ओर से स्व-निदा फाजली और अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।

    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर रचना ।

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  3. सुन्दर रचना ।

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