तुम बिन पिताजी
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम जलाएंगे दीपक
करेंगे प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम जानते हैं
तुम्हे अपने घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
एक दीपक अवश्य जलाएंगे....
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम जलाएंगे दीपक
करेंगे प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम जानते हैं
तुम्हे अपने घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
एक दीपक अवश्य जलाएंगे....
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपिता के लिए असीम अनुराग भाव से लबरेज सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"मधुर-मधुर मेरे दीपक जल" चर्चामंच 2761
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दीप पर्व शुभ हो । सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब, दीप पर्व की शुभकामनाएँ
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