शुक्रवार, मार्च 04, 2016

राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।

kकभी राष्ट्र गीत का विरोध,
कभी गायत्रि मंत्र का
कभी पाकिस्तानी झंडा लहराना
 कभी राष्ट्र विरोधी नारे।
तब कहते सुना है सब को,
ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
  वंदे मातरम,   भारत माता की जय।
 नारे लगाने वालों को
राष्ट्रप्रेम की बात करने वालों को
सामप्रदाइक कहा जाता है।
देश के नेता सत्ता के लिये
कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं।
मां भारती को गाली भी दे सकते हैं,
मां के लिये गाली भी सुन सकते हैं।
 मैं सोचता हूं,
अच्छे थे गुलामी के दिन
क्योंकि उस समय भारतीयों का
राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-03-2016) को "ख़्वाब और ख़याल-फागुन आया रे" (चर्चा अंक-2273) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मैं सोचता हूं,
    अच्छे थे गुलामी के दिन
    क्योंकि उस समय भारतीयों का
    राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।
    ..बिलकुल सही ..गुलामी के दिनों में राष्ट्र प्रेम नहीं होता तो आज तक गुलाम ही बने रहते ..अब उसकी कीमत सस्ती हो गयी है देशद्रोहियों के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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