प्कृति ने मेरा स्वागत
किया,
जैसे धरा ने नव रूप लिया,
गा रहे है झरने, नदियां
गान,
भर रहे हैं पंछी ऊंजी
उड़ान,
आ रहे हैं मेघ मुझे मिलने,
कहा है ये सावन ने मुझसे...
पर पाषाण हो गया आज आदमी,
जिसे सुद नहीं है मेरे आने
की,
न मेलों में रौनक न वो खान
पान,
खिले हैं फूल, पर उपवन
सुनसान,
न झूलों की मस्ति न कागज की
कशति,
कहा है ये सावन ने मुझसे...
न करती कोई मेरी प्रतीक्षा,
न हो रहा है प्रेम
का ही संचार,
न तरस रही है मिलन को
विरहन,
दिखावा सा लगा प्रीयसी का
शृंगार,
न सुनायी देता वो गीत,
संगीत,
कहा है ये सावन ने मुझसे...
सुंदर रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
दिल चाहता है
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_971.html
बहुत सुंदर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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