मंगलवार, जुलाई 16, 2013

कहा है ये सावन ने मुझसे...




प्कृति ने मेरा स्वागत किया,
जैसे धरा ने नव रूप लिया,
गा रहे है झरने,  नदियां  गान,
भर रहे हैं पंछी ऊंजी उड़ान,
आ रहे हैं मेघ मुझे मिलने,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

पर पाषाण हो गया आज आदमी,
जिसे सुद नहीं है मेरे आने की,
न मेलों में रौनक न वो खान पान,
खिले हैं फूल, पर उपवन सुनसान,
न झूलों की मस्ति न कागज की कशति,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

न करती कोई मेरी प्रतीक्षा,
न हो रहा है   प्रेम का ही संचार,
न तरस रही है मिलन को विरहन,
दिखावा सा लगा प्रीयसी का शृंगार,
न सुनायी देता वो गीत, संगीत,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

6 टिप्‍पणियां:

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