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मंगलवार, अक्टूबर 11, 2016

विजयदशमी का संदेश यही है।

हम जलाते हैं हर बार,
पुतला केवल रावण का,
जिसने अपनी बहन के अपमान का
बदला लेने की खातिर
सीता जी का हरण किया।
न स्पर्श किया,
न अपमान किया,
अशोक-वाटिका में,
अतिथि सा मान दिया।
हम दशहरे के दिन,
 भूल जाते हैं,
आज के उन रावणों को,
जिन्हें न तीन वर्ष की बेटी की,
मासूमियत दिखती है,
न कौलिज जाने वाली बेटी की,
 मजबूरी ही।
वे केवल मौका पाकर,
उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं।
आज के ये रावण भी,
रावण का पुतला जलाते हैं,
इन्हें दंड दिये बिना,
हम कैसा दशहरा मनाते हैं।
श्री राम हमारे आदर्श हैं,
रावण फिर भी घूम रहे हैं,
हम केवल पुतले जलाकर,
मस्ति में झूम रहे हैं।
रावण मेघनाथ के पुतले जलाना,
विजयदशमी नहीं है,
अधर्मियों को दंडित करना,
विजयदशमी का संदेश यही है।
  

गुरुवार, अगस्त 18, 2016

राखी बांधते हुए, अपने भाइयों से कह रही है।

आज हर बहन खुद को
असुर्क्षित महसूस कर रही है।
राखी बांधते हुए
अपने भाइयों  से कह रही है।
केवल मेरी ही नहीं,
हर लड़की की    करना रक्षा,
भयभीत है आज सभी,
 सभी को चाहिये सुर्क्षा।
जानते हो तुम भया,
 दुशासन खुले   घूम रहे  हैं,
अकेली असहाय लड़कियों को,
तबाह करने के लिये  ढूंढ़ रहे  हैं।
 ये  रूपए, उपहार,
 मुझे नहीं चाहिये,
जो मिले  मां-पिता  से  
तुम में वो संस्कार चाहिये।
ये रक्षा का  अटूट बंधन,
भारत में है  सदियों पुराना,
मुझे ये वचन देकर
तुम भी इसे सदा निभाना।
आप सभी को पावन पर्व रक्षाबंधन की असंख्य शुभकामनाएं...

शुक्रवार, अप्रैल 08, 2016

ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।


हुआ नव वर्ष का  आगमन,
कह रहा प्रकृति का कण कण 
न जरूरत किसी  केलेंडर की
न हो पास पंचांग  भी,
प्रकृति और आकाश  को देखो,
ये सब  खुद बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
दिवाली,  दशहरा,  होली,
 विवाह  शुभ मुहूर्त, यज्ञ,  कथा,
 सभी  महापुरुषों के  जन्म दिवस,
हिंदू  संवत के अनुसार मनाते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
उदय हुआ था प्रथम सूरज जब,
उस दिन को क्यों भूल जाते हैं।
क्यों भारत में  हम नव वर्ष,
पोष  माह में मनाते हैं,
नहीं दिखती कहीं  नवीनता ह
उपवन खेत बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
मैकाले की शिक्षा याद रही,
वेद-पूराण हम  भूल गये,
बस इंडिया ही याद रहा,
भारत को हम भूल गये।
आया है हमारा नव वर्ष,
चैत्र नवरात्र बताते हैं।
 हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
 आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..

 

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2016

कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

 आती है  जब
बसंत पंचमी
झूमती है
समस्त प्रकृति
 हर्षित होता है
हर जीव
गाती है धरा
यौवन के गीत...
 विद्यालय की दिवारें भी
करती हैं प्रतीक्षा
सोचती हैं
होगा उतसव
मां सरस्वती के
जन्मदिवस  पर
पूजा तक भी नहीं होती
बस  वेलेन्टाइन डे की चर्चा...
मां शारदे 
की पूजा से
आती है विद्या
विद्या से विनम्रता,
विनम्रता से पात्रता,    
 पात्रता से धन,
धन से खुशहाली।... 
हम शिक्षित हैं
धन भी हैं
अधिक से ज्यादा
पर संतोष नहीं है।
हम भूल चुके हैं
शिक्षा की देवी को
इसी लिये आज
कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

बुधवार, जनवरी 13, 2016

कर रही है लोहड़ी   आवाहन सबसे।

आयी लोहड़ी ,
लेकर खुशिया।
बदली रुत
दूर हुई ठंड
आलस्य सुस्ती
दूर हुई अब।
लोहड़ी  जलाओ
जी भर के खाओ,
नशवर है जीवन
बस नाचो-गाओ...
लोहड़ी    केवल
पर्व नहीं है।
लोहड़ी   है
एक  संदेश,
नफरत भुलाओं,
न रखो क्लेश।
बच्चों की हुडदंग
बालाओं के गीत
जलता अलाव
है भाईचारे की जीत...
कर रही है लोहड़ी  
आवाहन सबसे।
न डाकू कहो
दुल्ला भट्टी को,
न होने देता था
अन्याय वो।
वो लूटता था
लुटेरों का खजाना,
चाहता था देश में
पुनः स्वराज लाना...

शनिवार, अगस्त 29, 2015

...बहनें अब जाग रही हैं...

सदियों से
अटूट समझा जाता  था
भाई-भहन का
 पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...

जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...

ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
 छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...

शुक्रवार, अक्टूबर 24, 2014

नहीं चाहते थे दीप बुझना....

नहीं चाहते थे दीप बुझना,
चाहते थे प्रकाश फैलाना,
भाता है दीपों को,
बस केवल जगमगाना...
कुछ बुझाए हवाओं ने,
कुछ में तेल कम था,
कुछ जलते रहे भोर तक,
था लक्ष्य थिमिर को  मिटाना...
बुझते हुए दीपों ने,
कहा बस हम से ये,
जब जब भी अंधकार हो,
केवल हमे ही जलाना...

बुधवार, अक्टूबर 22, 2014

दिवाली सभी मनाते हैं...


[आप सब को पावन दिवाली की शुभकामनाएं...]
दुख अनेक हों फिर भी देखो,
दिवाली सभी मनाते हैं...
प्रथम गणेश की वंदना करके,
मां लक्ष्मी  को बुलाते हैं...

सब शुभ हो, मंगलमयी हो,
घर घर में समृधि आये,
उमंग, उल्लास, उत्कर्ष हो,
सभी यही चाहते हैं...

घर बाहर हर तऱप,
करते हैं दीपों   से प्रकाश,
जिन घरों में आज भी अंधकार है,
हम उन्हे भूल जाते हैं...

केवल मिट्टी  के दीप जलाएं,
लड़ियों से न ढौंग रचाएं,
गरीब  की खुशहाली  हैं   इनमे,
वो निज हाथों से इन्हे बनाते हैं...

 इस दिवाली पर सुख समृधि,
जन जन को, घर घर में देना,
 पर पहले मां उनके पास  जाना,
जो सड़कों पर रैन बिताते हैं...

शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2014

ये है दशहरे का संदेश...


जीत हुई श्री राम की,
साथ था उनके धर्म,
छल, कपट, और   अत्याचार
थे रावण के कर्म।
धन वैभव और नारी,
थे रावण के पाष,
क्रोध,  लोभ, अहंकार से,
होता है केवल  विनाश,
कैसे जीत होती रावण की,
जब घर में ही था क्लेश,
सत्य की जीत होती है सदा,
ये है दशहरे का संदेश...
[आप सब को इस महान पर्व की शुभकामनाएं...]


रविवार, अगस्त 17, 2014

आओ श्याम, बंसीधर...


[पावन पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं...]



आहत यमुना तुम्हे बुलाए,
गायें     पीड़ा किसे सुनाएं,
आस है सब की तुम्ही पर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

दुष्ासन  छिपा है, हर मोड़ पे आज,
बचाओ हिंद की बेटी की लाज,
    व्याप्त है केवल मन में  डर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

पाषाण हो गयी भावनाएं,
न रही अब मर्यादाएं,
हिंसा, भोग-विलास है अब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

मात-पिता ही  शड़ियंत्र रचाते,
अजन्मी बेटी का अस्तित्व मिटाते,
सूना है,  बेटी बिन घर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

भाई-भाई में बैर है,
सुत के लिये, मां गैर  है,
खंडित हो गये रिश्ते सब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

सूनी है,  ब्रज की गलियां,
सूख गयी है,  मधुवन की कलियां,
मौन है,  वृक्ष  सब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

कहा था तुमने,  आओगे,
 धर्म, मानवता  को, बचाओगे,
कहता भारत, आओ अब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

शनिवार, अगस्त 09, 2014

राखी के इस धागे में...

[पावन पर्व रक्षाबंधन की असंख्य शुभकामनाएं...]

भाई बहन का संबंध,
पावन है सब से,
ये संदेश है,
राखी के इस धागे में...

बहन का  प्रेम,
भाई का वचन,
सावन की खुशबू है,
राखी के इस धागे में...

प्राचीन परंपरा,
रिशते की पावनता,
भारत का गौरव है,
राखी के इस धागे में...

राष्ट्र प्रेम,
धर्म की रक्षा,
नारी सन्मान है,
राखी के इस धागे में...

बहन  का त्याग,
भाई  का बलिदान,
दिखावा नहीं, निष्ठा है,
राखी के इस धागे में...

शनिवार, नवंबर 02, 2013

आयी दिवाली मिलकर मनाएं...




***आप***सब को****पावन***पर्व***दिवाली की***अनंत***शूभकामनाएं****
दोस्त दुशमन साथ आयें,
गिले-शिकवे सब भूल जाएं,
पर्व है ये मानवता का,
आयी दिवाली, मिलकर मनाएं,

हिन्दू सिख मुस्लमान,
है एक धरा के सब इनसान,
लड़ने के लिये हमने मजहब बनाए,
आयी दिवाली, मिलकर मनाएं,

लड़ियां ,  मौमबत्तियां भले जलाना,
दिपक को मत भूल जाना,
परंप्रा  को  न भुलाएं,
आयी दिवाली, मिलकर मनाएं,

जी भरके करना दान,
सब अधरों पर लाना मुस्कान,
कहीं निर्धनों  को न भूल जाएं,
आयी दिवाली, मिलकर मनाएं,

मां से मांगना केवल ये वर,
दरिद्र न रहे कोई धरा पर,
हर घर में अपना स्थान बनाएं,
आयी दिवाली, मिलकर मनाएं,


शुक्रवार, अप्रैल 12, 2013

आया है अपना नव वर्ष।




आज उमंग तरंग है मन में,
आज खुशियां भरी है  तन में,
कह रहा है  कण कण आज,
आया है अपना नव वर्ष।

झूम रही है प्रकृति सारी,
लग रही है धरा स्वर्ग से प्यारी,
घर घर में पूजन हो रहा है,
आया है अपना नव वर्ष।

भर गए हैं  अन्न के भंडार,
हर तरफ है केवल बहार,
पतझड़ को कह के अलविदा,
आया है अपना नव वर्ष।

सजे  हैं मां के प्यारे दरवार,
जगदंबा की है कृपा अपार,
हो रही है सब पर कृपा की वर्षा,
आया है अपना नव वर्ष।


सब मिलकर नव वर्ष मनाना,
दिखावे के न इसे वस्त्र पहनाना,
ये वेदों का संदेश है लाया,
आया है अपना नव वर्ष।


नवसंवत 2070 की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं।

बुधवार, मार्च 27, 2013

मना रहे हैं सब मिलकर होली।

आती है होली हर बार,
लेकर रंगों की भरमार,
महक रही है प्रेम से धर्ती,
मना रहे हैं सब मिलकर होली।

सभी गले मिल रहे हैं,
प्रेम के फूल खिल रहे हैं,
देकर इक दुजे  को शुभकामनाएं,
मना रहे हैं सब मिलकर होली।

नफरत की जगह है दिलों में प्यार,
न जाती धर्म की है दिवार,
गिले शिकवे सब भूलकर,
मना रहे हैं सब मिलकर होली।

है होली का ये संदेश,
न नफरत न रखो क्लेश,
ऐसे लगे नित्य धरा पर,
मना रहे हैं सब मिलकर होली।
मना रहे हैं सब मिलकर होली।

रविवार, नवंबर 11, 2012

दिवाली


अमन के रथ पर आयी दिवाली, चारों ओर है खुशहाली।

भूल जाओ अब सारे दुःख, लाई है दिवाली ढेरों सुख।

 सब अधरों पर मुस्कान पाओ, घर में दीपक तभी जलाओ।


जिस गेह में हो अन्धेरा, उस घर में कर दो सवेरा।

आज की रात कोई रोए, भूखे पेट कोई सोए।

रोते हुए बच्चों को हंसाओ, घर में दीपक तभी जलाओ।


अमावस्य की ये काली निशा, दीपों से जगमगाए हर दिशा।

दीपक तो हर घर में जलाए, पर कोई पतंगा मरने पाये।

पहले किसी का घर सजाओ, घर में दीपक तभी जलाओ।


कहता है दिवाली का त्योहार, आपस में सभी करो प्यार।

मज़हब की सभी दिवारे तोड़ो, मानवता से नाता जोड़ो।

दुशमनों को गले लगाओ, घर में दीपक तभी जलाओ।