हुआ नव वर्ष का आगमन,
कह रहा प्रकृति का कण कण
न जरूरत किसी केलेंडर की
न हो पास पंचांग भी,
प्रकृति और आकाश को देखो,
ये सब खुद बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।
दिवाली, दशहरा, होली,
विवाह शुभ मुहूर्त, यज्ञ, कथा,
सभी महापुरुषों के जन्म दिवस,
हिंदू संवत के अनुसार मनाते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।
उदय हुआ था प्रथम सूरज जब,
उस दिन को क्यों भूल जाते हैं।
क्यों भारत में हम नव वर्ष,
पोष माह में मनाते हैं,
नहीं दिखती कहीं नवीनता ह
उपवन खेत बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।
मैकाले की शिक्षा याद रही,
वेद-पूराण हम भूल गये,
बस इंडिया ही याद रहा,
भारत को हम भूल गये।
आया है हमारा नव वर्ष,
चैत्र नवरात्र बताते हैं।
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।
आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..
हम पूरे अभी आजाद कहां
जवाब देंहटाएंईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।
सटीक कहा आपने ..
जाने कौन सी गुलामी में जीते रहते हैं पता ही नहीं। प्रकृति को देखने की फुर्सत नहीं है हमें तभी तो ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं
बहुत सुन्दर सामयिक रचना ..
आपको नवसंवत्सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
उस ढर्रे से छुटकारा पायें तभी तो अपना पथ बनायें!
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