बन जाएंगे कड़े कानून, थम जाएगी देश में
क्रांति,
कोई दरिंदा दानव आकर, फैला देगा फिर अशांति,
इस शोर गुल से कुछ न होगा, नारी तुम और
सशक्त बनो।
सीता महिनों लंका में रही, न आ सका रावण
उसके पास,
झलकता था भय सीता में उस को, नारी तुम और सशक्त बनो।
देख लक्ष्मी बाई की तलवार, मान गए थे
फिरंगी हार,
कांप रहा था बृटिश राज, नारी तुम और सशक्त बनो।
कल्पना चावला से पूछो, क्या थी नारी,
किरण वेदी को देखो, क्या है नारी,
नारी का कल का इतिहास पढ़ो, नारी तुम और
सशक्त बनो।
हीरण का शिकार करते हैं सभी, सिंह को कोई
न हाथ लगाता,
विक्राल हाथी भी देखो, सिंह के न पास
जाता।
जो आज हुआ है कल न होगा, नारी तुम और
सशक्त बनो।
शानदार लेखन,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!!
http://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_28.html
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंअनु
बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंअनु
बहुत अच्छा संदेश
जवाब देंहटाएंनारी सशक्त है पर ताकत में हार जाती है ... सुंदर संदेश देती रचना
जवाब देंहटाएंसशक्त शब्द-भाव
जवाब देंहटाएंसशक्त भाव लिए रचना..... प्रभावित करते विचार
जवाब देंहटाएं