भोर हो गयई नींद से जागो, कागज को हाथ में उठा लो,
जंता को बताओ सत्य क्या है, मेरी कलम कहती है मुझ से।
मैंने लिखी रामायण व गीता, बताया समाज को पवित्र थी सीता,
मचल रही हूं लिखने को आज भी, मेरी कलम कहती है मुझ से।
मैंने प्राधीन भारत की पीड़ा लिखी, सोए हिंदुस्तानियों को जगाया,
खून से आजादी की कहानी लिखी, मेरी कलम कहती है मुझ से।
चाहती हूं भ्रष्टाचार मिटाना, पुनः राम राज्य लाना,
स्वतंत्र होती मैं कोई मुजरिम न बचता, मेरी कलम कहती है मुझ से।
बहुत कुछ है लिखने को मेरे पास, न है वालमीकि न है व्यास,
कौन लिखेगा, सत्य आज, मेरी कलम कहती है मुझ से।
कालीदास आज भयभीत है, कलम का सिपाही गिन रहा है पैसे,
मैं तो दासी हूं लिखने वाले की, मेरी कलम कहती है मुझ से।
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंसुन्दर !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति |
आभार ||
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
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जवाब देंहटाएंदिनांक 24 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकलम कुछ कहती है मुझसे...खूब
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