सदियों से
अटूट समझा जाता था
भाई-भहन का
पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...
जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...
ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...
अटूट समझा जाता था
भाई-भहन का
पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...
जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...
ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...
प्रिय कुलदीप जी -- बहुत ही चिंतनपरक रचना है | आपने सही लिखा राखी का अटूट बंधन अब दरकने लगा है शायद उसका कारण धन के आगे स्नेहासिक्त रिश्तों का फीका पड़ जाना है | जागी बहनों में अब सहनशीलता का अभाव होता जा रहा है |गह्त्रें रचना | सस्नेह --
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