एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
नदियों की तरह।
ये नदियां भी
कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।
एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।
उस नदि की
कल कल करती
आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास खामोशी का।
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
नदियों की तरह।
ये नदियां भी
कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।
एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।
उस नदि की
कल कल करती
आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास खामोशी का।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सुंदर प्रस्तुति. अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं