अब जब भी चाहो
कहीं भी
कर लेते हैं
बातें जी भरके
मुबाइल पर
एक दूसरे के साथ...
पर बार बार
बातें करने में भी
नहीं मिलता वो आनंद
जो मिलता था
बार बार एक ही
चिठ्ठी पड़ने में...
मिट गये हैं
दूरियों के फांसले
मगर दिलों की दूरियां
बढ़ती जा रही है
आज सब के पास ही मोबाइल है
पर किसी की काल का इंतजार नहीं है...
कहीं भी
कर लेते हैं
बातें जी भरके
मुबाइल पर
एक दूसरे के साथ...
पर बार बार
बातें करने में भी
नहीं मिलता वो आनंद
जो मिलता था
बार बार एक ही
चिठ्ठी पड़ने में...
मिट गये हैं
दूरियों के फांसले
मगर दिलों की दूरियां
बढ़ती जा रही है
आज सब के पास ही मोबाइल है
पर किसी की काल का इंतजार नहीं है...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-08-2015) को "देखता हूँ ज़िंदगी को" (चर्चा अंक-2078) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबात तो हो जाती है पर वो गले मिलना हाथों का स्पर्श कुछ भी नहीं
जवाब देंहटाएंक्या बात है !!!!!! सचमुच पत्र सा आनन्द इस मोबाइल के संवाद में कहाँ ? सचमुच बातों की अतिशयता से रिश्तों की मिठास खो सी गयी है | पर इस उच्चतर तकनीक के जमाने में अगर किसी के नाम कोई पत्र आता है तो वह अत्यंत भाग्यशाली है | आपको रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रिय कुलदीप जी |
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