उदय होता सूरज
जगाता है मुझे
मैं कौन हूं
बताता है मुझे।
नशवर है जीवन
ओस की बूंदों सा
मिटाकर उन्हे
दिखाता है मुझे।
पूछता है मुझसे
मेरे मन की पीड़ा
जलकर खुद ही
दिखाता है मुझे।
केवल कर्म करो
करता हूं जैसे मैं
फल तो मिलेगा ही
समझाता है मुझे।
जगाता है मुझे
मैं कौन हूं
बताता है मुझे।
नशवर है जीवन
ओस की बूंदों सा
मिटाकर उन्हे
दिखाता है मुझे।
पूछता है मुझसे
मेरे मन की पीड़ा
जलकर खुद ही
दिखाता है मुझे।
केवल कर्म करो
करता हूं जैसे मैं
फल तो मिलेगा ही
समझाता है मुझे।
कर्म हही जीवन है ... अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
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