न सिंहासन मांगा
न जंग थी किसी से
फिर क्यों छलनी किया
एक संत को निज गोली से।
कांपते हाथों से तुमने
प्राण लिये जिसके
वो केवल मानव नहीं
युगपुरुष थे।
भस्म हो जाते तुम वहीं
अगर अहिंसा के पुजारी बापू
राम राम कहते हुए
तुम्हे क्षमा न करते।
युगपुरुष की हत्या
होती है ऐसे ही
मारा था माधव को भी
छल से एक शिकारी ने।
क्यों दी फांसी
इस अश्वस्थामा को
जलने देते सदा
प्राश्चित की आग में।
न जंग थी किसी से
फिर क्यों छलनी किया
एक संत को निज गोली से।
कांपते हाथों से तुमने
प्राण लिये जिसके
वो केवल मानव नहीं
युगपुरुष थे।
भस्म हो जाते तुम वहीं
अगर अहिंसा के पुजारी बापू
राम राम कहते हुए
तुम्हे क्षमा न करते।
युगपुरुष की हत्या
होती है ऐसे ही
मारा था माधव को भी
छल से एक शिकारी ने।
क्यों दी फांसी
इस अश्वस्थामा को
जलने देते सदा
प्राश्चित की आग में।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !