मैंने अपना मत
दिया था जिसे,
मतगणना में
उसे शिकस्त मिली।
न क्षेत्र देखा
न जाती
न हवा की तरफ
अपना मत बदला।
दल को मैं
महत्व नहीं देता,
आशवासन, भाषण
बहुत सुन चुका।
देखा था मैंने
व्यक्तित्व उसका
वो बदल सकता था
देश की इस धुंधली तसवीर को।
मैं अकेला हूँ , लेकिन फिर भी मैं हूँ.मैं सबकुछ नहीं कर सकता , लेकिन मैं कुछ तो कर सकता हूँ, और सिर्फ इसलिए कि मैं सब कुछ नहीं कर सकता , मैं
वो करने से पीछे नहीं हटूंगा जो मैं कर सकता हूँ.-हेलेन केलर
यहां प्रकाशित रचनाएं मेरी अपनी हैं।
ये सभी प्रकार की साहित्य विधाओं में प्रयुक्त शिल्प, छंद, अलंकार और शैली आदि से बिलकुल मुक्त है। ये केवल मेरे मन का मंथन है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
देश की इस धुंधली तस्वीर को कोई एक अकेला इंसान नहीं बदल सकता कुलदीप जी। मेरा ऐसा मानना है कि जब तक देश में रहने वाला हर एक देशवासी अपने देश को अपना घर नहीं मान लेता तब तक इस देश का कुछ नहीं हो सकता। क्यूंकि परिवर्तन की शुरुआत हमेशा पहले खुद से करने की जरूरत होती है।
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